नियमित संसदीय प्रक्रियाओं को राजनीतिक विवाद का विषय बनाने पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद सदस्यों और राजनीतिक दलों से यह अनुरोध किया है कि वे समाचार बनाने के लिए नियमित संसदीय प्रक्रिया का उपयोग न करें। उन्होंने कहा कि एक संस्था के रूप में संसद की गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए।
सदस्यों से किसी प्रदर्शन, धरना, हड़ताल या अनशन आदि के लिए संसद परिसर का उपयोग न करने के संबंध में जारी सकरुलर के मुद्दे पर बोलते हुए, बिरला ने कहा कि यह एक नियमित प्रक्रिया है और इस तरह के सकरुलर प्रत्येक सत्र से पहले जारी किए जाते हैं।
बिरला ने संसद सदस्यों और राजनीतिक दलों से केवल समाचार बनाने के लिए नियमित संसदीय प्रक्रिया का उपयोग न करने की अपील करते हुए कहा कि एक संस्था के रूप में संसद की गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए।
इससे पहले लोक सभा अध्यक्ष ने विपक्षी दलों को नसीहत देते हुए हुए यह भी कहा कि उन्हे बिना किसी तथ्यों के लोक सभा, राज्य सभा या किसी भी राज्य की विधान सभा पर राजनीतिक आरोप नहीं लगाने चाहिए।
उन्होने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त करने के लिए कार्य करना चाहिए, क्योंकि सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं ( विधायिका ), चाहे वो केंद्र की हो या राज्यों की, पूरी जिम्मेदारी और जवाबदेही से कार्य करती है। उनकी कोशिश होती है कि सभी सदस्यों को मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने मुद्दों को सार्थक तरीके से सदन में रखने का मौका मिले।
दरअसल, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस तरह के आदेश की एक कॉपी को शेयर करते हुए ट्वीट कर कहा था, विश्वगुरु का नया काम धरना मना है। इस आदेश के मुताबिक, संसद भवन परिसर में कोई सदस्य धरना, हड़ताल, भूख हड़ताल नहीं कर सकेगा और इसके साथ ही वहां कोई धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित नहीं हो सकेगा।
आपको बता दें कि, 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। इससे महज कुछ दिन पहले, गुरुवार को विपक्षी नेताओं ने असंसदीय शब्दों को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया, तो वहीं अगले दिन, शुक्रवार को प्रदर्शन, धरना, हड़ताल या अनशन आदि के लिए संसद परिसर का उपयोग न करने के संबंध में जारी सकरुलर को मुद्दा बना दिया।
विपक्षी दलों के आरोपों का जवाब देने के लिए दोनों ही दिन लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला स्वयं सामने आए।
लोक सभा सचिवालय द्वारा जारी असंसदीय शब्द 2021 में शामिल शब्दों और वाक्यों पर जारी विवाद पर जवाब देते हुए लोक सभा स्पीकर ओम बिरला ने गुरुवार को कहा कि देश में भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए। किसी शब्द को बैन नहीं किया गया है, लोक सभा सचिवालय ने कुछ असंसदीय शब्दों को, जो लोकतंत्र की गरिमा के अनुकूल नहीं थे, को विलोपित किया है। इसमें संसद और कुछ राज्यों के विधानसभाओं की कार्यवाही का भी संदर्भ दिया गया है। यह संसद की प्रक्रिया है जो 1954 से चली आ रही है। चर्चा के समय जब भी आरोप-प्रत्यारोप के दौरान इस तरह के शब्दों का प्रयोग होता है तो अध्यक्षीय पीठ पर बैठे व्यक्ति उसे संसदीय कार्यवाही से निकाल देते हैं। उन्होंने इसे लेकर सरकार की भूमिका को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह पूरी तरह से पीठासीन अधिकारी का विशेषाधिकार होता है और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
शुक्रवार को लोक सभा अध्यक्ष तल्ख शब्दों में यह अपील करते नजर आए कि सिर्फ खबरों में आने के लिए राजनीतिक दलों और सांसदों को नियमित संसदीय प्रक्रियाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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Source : IANS