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देश के सबसे बड़े न्‍यायाधीश के ऑफिस के कामों के बारे में भी जान सकेंगे लोग, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने देश के प्रधान न्‍यायाधीश के कार्यालय को पब्‍लिक अथॉरिटी माना है. इस लिहाज से यह सूचना का अधिकार कानून के अधीन आएगा.

Updated on: 13 Nov 2019, 03:06 PM

नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश के प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) के कार्यालय को पब्‍लिक अथॉरिटी (Public Authority) माना है. इस लिहाज से यह सूचना का अधिकार कानून (Right To Information Act 2005) के अधीन आएगा. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता (Judicial Liberty) और जिम्मेदारी साथ-साथ चलती है. लोगों के हित में जानकारी का सार्वजनिक होना ज़रूरी है. कोर्ट ने आगे कहा कि निजता और गोपनियता का अधिकार (Right to Privacy) भी अहम है. जस्‍टिस संजीव खन्‍ना ने बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा, प्रधान न्‍यायाधीश के कार्यालय जानकारी देते हुए एक संतुलन कायम रहे, इसका ध्यान रखा जाना ज़रूरी है. इस फैसले से अलग राय रखते हुए जस्टिस एनवी रमन्‍ना (NV Ramanna) ने कहा, आरटीआई को न्‍यायिक क्षेत्र में सर्विलांस के तौर पर इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. सभी जजों ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले (CJI ऑफिस को आरटीआई के दायरे में रखे जाने) पर एक राय दी है. हालांकि कुछ मामलों में जजों ने अलग-अलग टिप्‍पणियां दी हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के मुख्‍य अंश

  • CJI का दफ्तर पब्लिक अथॉरिटी है.
  • CJI का ऑफिस RTI के तहत आता है.
  • सूचना देने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती.
  • न्यायिक स्वतंत्रता और जिम्मेदारी साथ-साथ चलती है.
  • 2010 का दिल्लीहाई कोर्ट का फैसला बरकरार.
  • CJI ऑफिस से जानकारी देते वक़्त कुछ सूचनाओं की गोपनीयता का ध्यान रखा जाना चाहिए.

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बता दें कि मुख्‍य सूचना आयुक्‍त ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश के कार्यालय को आरटीआई के दायरे में रखा था. 10 जनवरी 2010 को मुख्‍य सूचना आयुक्‍त के फैसले को दिल्‍ली हाई कोर्ट ने सही ठहराया था. दिल्‍ली हाई कोर्ट ने सूचना का अधिकार कानून की धारा 2(H) के तहत CJI को पब्लिक अथॉरिटी बताया था. दिल्‍ली हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने इसी साल (2019 में) 4 अप्रैल को इस बारे में फैसला सुरक्षित रखा था.

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मनमोहन सिंह की सरकार ने 2005 में सूचना का अधिकार कानून (RTI) लागू किया था. आरटीआई के चलते देश में कई घोटालों का खुलासा हुआ. कोई भी नागरिक RTI के जरिए जानकारी मांग सकता है. इसके लिए महज 10 रुपये की फीस लगती है. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को 10 रुपये भी नहीं देना होगा. संस्थानों को आवेदन के 48 घंटे से 30 दिन के भीतर जवाब देना जरूरी होता है. सूचना का अधिकार कानून की धारा 24 (1) के तहत केंद्रीय जांच एजेंसियां RTI के दायरे से बाहर हैं.