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SC का OBC Reservation पर ऐतिहासिक फैसला, कहा-सामाजिक न्याय के लिए जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस, बीडीएस और सभी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक तौर पर सही ठहराया है.

Updated on: 20 Jan 2022, 01:13 PM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सबसे अहम बात सामाजिक न्याय पर हुई
  • पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक तौर पर सही ठहराया है
  • कोर्ट ने कहा, मेरिट को सामाजिक ताने बाने के साथ देखा जाना चाहिए.

नई दिल्ली:

OBC Reservation/Quota सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा  है कि आरक्षण और मेरिट एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं. सामाजिक न्याय  के लिए आरक्षण जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस, बीडीएस और सभी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक तौर पर सही ठहराया है. हालांकि कोर्ट ने ये फैसला पहले ही सुना दिया था, लेकिन आज कोर्ट ने उस पर अपना विस्तृत निर्णय सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सबसे अहम बात सामाजिक न्याय पर हुई.  आमतौर पर स्पेशलाइज्ड कोर्स में आरक्षण के विरोध में किया जाता है.   ऐसा कहा जाता है कि इन कोर्स में आरक्षण नहीं होना चाहिए. आरक्षण देने से मेरिट पर असर पड़ता है. मगर आज सुप्रीम कोर्ट ने इस विचार पर अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि मेरिट और आरक्षण एक दूसरे के बिल्कुल भी विपरीत नहीं हैं. दरअसल आरक्षण सामाजिक न्याय के लिए जरूरी है.

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जहां कहीं भी प्रतियोगिता या परीक्षा से दाखिला होता है, उसमें सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को नहीं देखा गया है. कुछ समुदाय आर्थिक और सामाजिक तौर पर आगे होते हैं. परीक्षा में इस बात को नहीं देखा जाता. ऐसे में मेरिट को सामाजिक ताने बाने के साथ देखा जाना चाहिए.

एक अन्‍य मामले में शीर्ष अदालत ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से जुड़े आंकड़े अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के समक्ष पेश करे ताकि इनकी सत्यता की जांच हो सके. स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें हो सकें. शीर्ष अदालत ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) को निर्देश दिए हैं कि वह राज्य सरकार से सूचना मिलने के दो हफ्ते के अंदर संबंधित प्राधिकारियों को अपनी अंतरिम रिपोर्ट को सौंप दे. 

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘महाराष्ट्र ने इस अदालत से अन्य पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य के पास पहले से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर चुनाव की अनुमति देने के लिए कहा है. आंकड़ों की जांच करने की बजाय इन आंकड़ों को राज्य द्वारा नियुक्त आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना उचित कदम होगा जो इनकी सत्यता की जांच कर सकता है.’