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हवाई प्रांत के सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा-भारत लोकतंत्र का पालना है

हवाई प्रांत के सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा-भारत लोकतंत्र का पालना है

Updated on: 16 May 2022, 05:50 PM

सोनीपत:

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल और हवाई प्रांत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ड्यू प्रोसेस, रूल ऑफ लॉ एंड डेमोक्रेसी: कम्पेरेटिव पर्सपेक्टिव्स फ्रॉम इंडिया एंड द यूनाइटेड स्टेट्स विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अमेरिका के हवाई प्रांत के सुप्रीम कोर्ट के जज माइकल सी. विल्सन ने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रशंसा की।

जज माइकल सी. विल्सन ने कहा कि लोकतंत्र का आधार यह है कि वहां के नागरिक सभी लोगों के साथ शालीनता और करुणा के साथ व्यवहार करें तथा समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को समझें और उनके समर्थन में खड़े हों। उन्होंने कहा कि कानून और वकीलों ने समतावादी मूल्यों को बनाये रखने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर को प्रेरित करने वाले महात्मा गांधी भी वकील थे।

जस्टिस विल्सन ने कहा , मैं अक्सर भारत को लोकतंत्र का पालना मानता हूं। भारत का इतिहास दुनिया और अमेरिका के लिये बहुत मायने रखता है।

इस दो दिवसीय सम्मेलन में कानून की उचित प्रक्रिया के अनुपालन की गारंटी, कानून व्यवस्था के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच जरूरी सह संबंध तथा भारत और अमेरिका पर उनके प्रभाव के बारे में चर्चा की गई।

हवाई के सुप्रीम कोर्ट की अन्य जज जस्टिस सबरीना मैककेना ने कहा, हमें लोकतांत्रिक सरकार को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने की आवश्यकता है। हमें लोकतंत्र और कानून के शासन में जनता का भरोसा बनाये रखना चाहिये। इसकी आधारशिला कानून की उचित प्रक्रिया का पालन है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिये न्यायिक स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। सच्चा लोकतंत्र कानून के शासन से शासित होता है न कि ताकत या प्रभावित करने की क्षमता से।

विविधतापूर्ण न्यायपालिका के महत्व पर प्रकाश डालते हुये जस्टिस मैककेना ने कहा , न्यायपालिका में विविधता कानून के शासन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कहा था कि जब न्याय देने वाले पुरुष और महिलायें उस समुदाय की तरह दिखते हैं, जिसकी वे सेवा करते हैं, तो न्याय प्रणाली के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ जाता है। विविधता के मामले में, हवाई उन चार प्रांतों में से एक है, जहां 50 प्रतिशत से अधिक पूर्णकालिक महिला जज हैं। मुझे वास्तव में उम्मीद है कि भारत कानून के शासन के इस सिद्धांत को पूरा करेगा। मैं महिला जजों की संख्या बढ़ाये जाने खासकर सुप्रीम कोर्ट में उनकी संख्या बढ़ाने की मुखर समर्थक रही हूं।

अपने विशेष संबोधन में, हवाई प्रांत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस टॉड डब्ल्यू एडिन्स ने कहा, कानून के शासन को उन अंतर्निहित अधिकारों की रक्षा के लिए संचालित करना है, जो मानव जाति के सदस्य के रूप में हम सभी के पास हैं। उचित प्रक्रिया स्वतंत्रता की रक्षा करती है और मौलिक अधिकारों में सरकार के हस्तक्षेप के खिलाफ व्यक्ति की रक्षा करती है। यदि सरकार एक अंतर्निहित मानव अधिकार का उल्लंघन करती है, तो अदालतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बुनियादी मानवाधिकार सरकार की पहुंच से बाहर रहें।

जस्टिस एडिंस ने कहा कि कानून के शासन का उद्देश्य राज्य की शक्ति के मनमाने उपयोग को रोकना है। उन्होंने कहा, सभी को समान नियमों और समान कानूनों से बंधे रहने की आवश्यकता है। पद और दर्जा महत्वहीन हैं। कोई भी कानून से परे नहीं है। कानून का शासन निष्पक्ष है। कानून के शासन का मतलब यह भी है कि कानूनों पर खुली बहस हो और सार्वजनिक भागीदारी के बाद ही उन्हें लागू किया जाये। उन्हें प्रकाशित भी किया जाये ताकि हर कोई उनके बारे में जान सके।

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के संस्थापक कुलपति प्रो (डॉ.) सी. राज कुमार ने कहा, हालांकि, यह सच है कि हम लोकतांत्रिक संस्थानों को विकसित करने में, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने में और सत्ता के आसान हस्तांतरण में सक्षम रहे हैं, वास्तविकता यह है कि कानून के शासन की परीक्षा जारी है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब कानून व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास और भरोसे को चुनौती दी गई, उसे कमतर किया गया और कई मामलों में उसका उल्लंघन भी किया गया। इस उल्लंघन की सजा भी दी जाती रही है और भय यह है कि अगर इसे रोका नहीं गया तो लोग कानून के शासन की रक्षा करने में और हमारे लोकंतत्र को बेहतर बनाने में मदद करने में लोकतांत्रिक संस्थाओं की क्षमता के प्रति भरोसा खो देंगे।

ट्रस्ट लीगल के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर सुधीर मिश्रा ने मुख्य भाषण देते हुये कहा, भारत में, चाहे वह राजद्रोह का मामला हो, अभिव्यक्ति की आजादी का मामला हो या ऑक्सीजन या पर्यावरण का मामला हो, हमारी न्यायपालिका वास्तव में अब भी आम लोगों के लिये अंतिम सहारा है। वे न्यायपालिका पर भरोसा करते हैं और अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। जब मीडिया से भरोसा उठ जाता है, जब विधायिका और कार्यपालिका से भरोसा उठ जाये तो लोग न्यायपालिका की शरण में आते हैं।

इस सम्मेलन के संदर्भ और विषय का परिचय देते हुये प्रो. (डॉ.) एस.जी. श्रीजीत, प्रोफेसर और कार्यकारी डीन, जेजीएलएस और निदेशक, सेंटर फॉर इंटरनेशनल लीगल स्टडीज ने कहा, इस तरह का सम्मेलन लोकतंत्र में हमारे सामाजिक-राजनीतिक सह अस्तित्व को प्रतिबिंबित करने का एक अवसर देता है। यह भारत और अमेरिका में लोकतंत्र के के ऐतिहासिक विकास को याद करने का एक अवसर देता है।

दो दिनों के दौरान सम्मेलन में कुल छह सत्रों का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में जज, वकील और शिक्षाविदों ने द इगलिटेरियन ट्रायड: ड्यू प्रोसेस, रूल ऑफ लॉ एंड डेमोक्रेसी, द पोलेमिक्स ऑफ लिबर्टी एंड इक्वलिटी, द इवोल्यूशन ऑफ ड्यू प्रोसेस डॉक्ट्रिन, ड्यू प्रोसेस मोमेंट्स इन कोट्सर्: कम्पेयरिंग लोचनर एंड मेनका गांधी, द डेमोक्रेटिक प्रॉमिस: रूल ऑफ लॉ इन द एज ऑफ कॉन्स्टीट्यूशनलिज्म, बिल्डिंग ए रिजीम: पॉलिटिकल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव डाइमेंशन ऑफ रूल ऑफ लॉ, और इमेजिनिंग ग्लोबली: लिबरल डेमोक्रेसीज एंड रूल ऑफ लॉ जैसे विषयों पर गहन चर्चा की।

सम्मेलन का समापन करते हुये प्रोफेसर और जेजीयू के रजिस्ट्रार, प्रोफेसर दाबीरू श्रीधर पटनायक ने कहा, छात्र और जागरूक नागरिकों के रूप में, अगर हम एक आकांक्षी समाज बनाना चाहते हैं तो क्षमता, ज्ञान और यहां तक कि इन मसलों के प्रति जिज्ञासा और ज्ञान के लिये लोकतंत्र, कानून के शासन और उचित प्रक्रिया को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना चाहिये। यह सिर्फ कानून और संविधान के बारे में ही नहीं है बल्कि कई अन्य पहलू भी इससे जुड़े हैं। उदाहरण के लिये तुलनात्मक कानून की आवश्यकता और राजनीतिक दर्शन को समझने की जरूरत और जिस तरह से कानून इतना व्यापक है। इन मुद्दों की एक पद्धतिगत समझ और भी महत्वपूर्ण है।

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