देश में एनपीआर को फिर से अपडेट करने की जरूरत : गृह मंत्रालय
केंद्रिय गृह मंत्रालय ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की जरूरत बताई है. ऐसा असम राज्य को छोड़कर पूरे देश में करने की बात कही गई है. गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है. इसके जरिए देश में हुए जन्म, मौतों और प्रवासन के कारण जनसांख्यिकीय आंकड़ों में हुए बदलावों की पहचान की जा सकेगी. यही नहीं हर परिवार और प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित जानकारी भी दर्ज की जा सकेगी.
नई दिल्ली:
केंद्रिय गृह मंत्रालय ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की जरूरत बताई है. ऐसा असम राज्य को छोड़कर पूरे देश में करने की बात कही गई है. गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है. इसके जरिए देश में हुए जन्म, मौतों और प्रवासन के कारण जनसांख्यिकीय आंकड़ों में हुए बदलावों की पहचान की जा सकेगी. यही नहीं हर परिवार और प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित जानकारी भी दर्ज की जा सकेगी.
गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण एनपीआर अपडेट करने का काम और अन्य फील्ड एक्टिविटी रुक गई थीं. गृह मंत्रालय ने बताया है कि एनपीआर डेटा को लोग खुद भी अपडेट कर सकते हैं. अपडेशन के दौरान किसी भी तरह के दस्तावेज या बायोमीट्रिक्स को इकट्ठा नहीं किया जाएगा. केंद्र सरकार ने इसके लिए 3941 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत कर दिया है.
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि एनपीआर नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत बनाए गए नागरिकता नियम, 2003 के विभिन्न प्रावधानों के तहत तैयार किया गया है. साल 2015 में इसमें नाम, लिंग, जन्म तिथि और जन्म स्थान, निवास स्थान और पिता का और माता का नाम अपडेट किया गया और आधार, मोबाइल और राशन कार्ड नंबर एकत्र किए गए. वहीं मंत्रालय ने कहा कि जन्म, मृत्यु और प्रवास के कारण हुए परिवर्तनों को शामिल करने के लिए, इसे फिर से अपडेट करने की आवश्यकता है.
गौरतलब है कि एनपीआर को साल 2010 में पहली बार तैयार किया गया था और 2015 में इसे अपडेट किया गया था. तब इसका कई विपक्षी दलों ने विरोध किया था और कहा था कि यह नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानी एनआरसी बनाने की दिशा में एक कदम है. हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि इसका एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अप्रैल, 2021 से 31 दिसंबर, 2021 तक देश भर में 1414 लोगों को नागरिकता कानून 1955 के तहत नागरिकता के प्रमाण पत्र दिए गए हैं.
गृह मंत्रालय ने ये भी बताया कि सरकार की ओर से 29 जिलों के जिलाधिकारी और 9 राज्यों के गृह सचिवों को यह अधिकार दिया गया है कि वह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को जांच पड़ताल कर भारतीय नागरिकता दे सकें.
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