राफेल मुद्दे पर विपक्षी दलों से बातचीत करना बेकार, संसद में रखा है तथ्य: सीतारमण

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जब सभी तथ्यों को संसद के समक्ष रखा जा चुका है तो इस मुद्दे पर विपक्षी दलों से बातचीत करना व्यर्थ है।

author-image
Deepak Kumar
एडिट
New Update
आपकी जरूरत की ये चीज हो जाएगी सस्ती, 2 दिन में हो सकता है बड़ा फैसला

निर्मला सीतारमण, रक्षा मंत्री (पीटीआई)

अरबों डॉलर रुपये के राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर मचे राजनीतिक हंगामे के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जब सभी तथ्यों को संसद के समक्ष रखा जा चुका है तो इस मुद्दे पर विपक्षी दलों से बातचीत करना व्यर्थ है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष देश को गुमराह कर रहा है और भारत की रक्षा तैयारियों से संबंधित एक संवेदनशील मुद्दे पर निराधार आरोप लगा रहा है। रक्षा मंत्री ने पत्रकारों के साथ रूबरू होने के दौरान गुरूवार को ये बातें कहीं।

Advertisment

रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि सीतारमण ने यह नहीं कहा था कि विपक्ष को इस मुद्दे में शामिल किया जाने का अधिकार नहीं है। सीतारमण ने कहा कि पाकिस्तान और चीन द्वारा स्टेल्थ लड़ाकू विमान शामिल कर अपनी हवाई शक्ति तेजी से बढ़ाए जाने के मद्देनजर सरकार ने आपातकालीन कदम के तहत राफेल लड़ाकू विमानों की केवल दो स्क्वाड्रन खरीदने का फैसला किया।

उन्होंने कहा कि क्या उन्हें (विपक्ष) बुलाने और सफाई देने का कोई मतलब है? वे देश को ऐसी चीज पर गुमराह कर रहे हैं जो यूपीए सरकार के दौरान हुई ही नहीं थी। आप आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि फर्जीवाड़ा हुआ है। आपने वायुसेना की अभियानगत तैयारियों की चिंता नहीं की।

रक्षा मंत्री से पूछा गया कि क्या सरकार विपक्षी दलों से उस तरह बात करेगी जिस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में विपक्ष को विश्वास में लिया था और अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार को अंतिम रूप देने के वास्ते मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनकी आशंकाओं का समाधान किया था। उन्होंने कहा, 'यह (राफेल सौदा) एक अंतर सरकारी समझौता है। आप (विपक्ष) हमसे सवाल पूछे हैं और मैं उनका जवाब संसद में दे चुकी हूं। तो मुझे उन्हें क्यों बुलाना चाहिए? मैं उन्हें जब बुलाऊंगी तो उन्हें क्या बताऊंगी?'

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने शनिवार को एक ट्वीट के जरिये रक्षा मंत्री की निंदा करते हुए कहा, 'जब किसी के पास कोई जवाब नहीं होता है तो झूठी वाहवाही और अहंकार दिखाता है।'

नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'अहंकार का प्रदर्शन किया जा रहा है। किसी भी सरकार को विपक्षी पार्टियों के साथ बातचीत से इनकार नहीं करना चाहिए।'

रक्षा मंत्री के प्रवक्ता ने शनिवार को स्पष्ट किया कि मंत्री ने इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया कि विपक्ष कुछ बताये जाने का हकदार नहीं है' और तर्क यह था कि तथ्य संसद के समक्ष रखे जा चुके हैं।

साक्षात्कार में रक्षा मंत्री ने यह भी कहा था कि राफेल सौदे की तुलना बोफोर्स मुद्दे से बिल्कुल नहीं की जा सकती है जैसा कि विपक्ष कोशिश कर रहा है, क्योंकि उन्होंने रक्षा मंत्रालय को बिचौलियों से पूरी तरह मुक्त कर दिया है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल मोदी सरकार पर हमला करता रहा है और आरोप लगाता रहा है कि वह फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान अत्यधिक ऊंचे दामों पर खरीद रही है।

कांग्रेस ने कहा है कि यूपीए सरकार ने 126 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा करते समय एक लड़ाकू विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये तय की थी, लेकिन वर्तमान सरकार प्रत्येक विमान के लिए 1,670 करोड़ रुपये का भुगतान कर रही है, जबकि विमानों पर हथियार और वैमानिकी विशेषताएं वैसी ही रहेंगी। सीतारमण ने कहा कि यूपीए द्वारा किए गए समझौते की तुलना में राफेल विमान में हथियार प्रणाली, वैमानिकी और अन्य विशिष्टताएं अत्यंत उच्च स्तर की होंगी।

मोदी सरकार ने 2016 में 58,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ सरकार से सरकार के बीच एक सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। यह पूछे जाने पर कि क्या राफेल से जुड़े विवाद के कारण रक्षा क्षेत्र में विदेशी पूंजी के प्रवाह पर असर पड़ेगा, सीतारमण ने कहा कि कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि यह स्पष्ट है कि आरोप निराधार हैं।

सीतारमण ने विपक्ष के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि सरकार समझौते से ऑफसेट शर्तों के तहत रिलायंस डिफेंस लिमिटेड (आरडीएल) को लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि राफेल निर्माता दसॉल्ट एविएशन द्वारा ऑफसेट भागीदार चुने जाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को कुल सौदा मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत हिस्सा कलपुर्जों की खरीद या अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठानों की स्थापना के जरिए भारत में खर्च करना होता है।

सीतारमण ने कहा कि आधिकारिक रूप से उन्हें नहीं पता कि दसॉल्ट कंपनी ऑफसेट दायित्वों के निर्वहन के लिए किस कंपनी के साथ साझेदारी कर रही है। उन्होंने कहा, 'मुझे क्या पता कि दसॉल्ट का ऑफसेट भागीदार कौन है...यह एक व्यावसायिक निर्णय है। ऑफसेट दायित्वों के निर्वहन की प्रक्रिया को जांचने के लिए एक तय प्रक्रिया है। न तो मैं स्वीकार कर सकती हूं, न ही मैं सुझाव दे सकती हूं, न ही मैं किसी के किसी के साथ जाने को खारिज कर सकती हूं।'

पिछले साल 27 अक्तूबर को दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस डिफेंस ने एयरोस्पेस कलपुर्जों के विनिर्माण और राफेल सौदे से जुड़े ऑफसेट दायित्व के निर्वहन के लिए नागपुर के पास एक विनिर्माण प्रतिष्ठान की आधारशिला रखी थी। विपक्ष पूछता रहा है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में कोई अनुभव न रखने वाली आरडीएल को कैसे ऑफसेट भागीदार के रूप में चुना जा सकता है, जबकि सरकार उल्लेख करती रही है कि आधिकारिक रूप से उसे इस तथ्य का नहीं पता कि दसॉल्ट ने ऑफसेट दायित्वों के निर्वहन के लिए आरडीएल से हाथ मिलाया है।

और पढ़ें- चुनाव में धन का दुरुपयोग निर्वाचन व्यवस्था की सबसे अहम चिंता: रावत

राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि देश के लोगों की निगाह में यह 'गैर मुद्दा' हो चुका है क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विश्वास है।

Source : News Nation Bureau

nirmala-sitharaman Opposition Rafale jets Defence Minister Rafale Deal
      
Advertisment