सीबीआई में मचे घमासान पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में निदेशक आलोक वर्मा और कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण की याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई के प्रभारी निदेशक एम नागेश्वर राव तब तक कोई नीतिगत फैसला नहीं करेंगे, जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले पर कोई फैसला नहीं ले लेती. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, सीवीसी और राकेश अस्थाना को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है. 12 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ में हुई.
कोर्ट ने शुरुआती सुनवाई में कहा कि सीवीसी को इस पूरे मामले की जांच फिर करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी से 10 दिन में जांच करने की बात कही तो सीवीसी ने कहा कि 10 में जांच संभव नहीं है. कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते में जांच पूरी होनी चाहिए. वहीं, कोर्ट ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजे जाने के बारे में कुछ नहीं कहा.
कोर्ट ने आज यह भी साफ किया कि कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव कोई भी नीतिगत फैसले नहीं ले पाएंगे. उल्लेखनीय है कि कोर्ट में फली नरीमन आलोक वर्मा का पक्ष रखे हैं. उन्होंने 1997 के विनीत नारायण मामले में दिए गए फैसले का हवाला भी दिया. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल कम से कम 2 साल तय किया था. नरीमन में कहा कि बिना कानूनी प्रकिया के पालन किये आलोक वर्मा को हटाने का आदेश जारी कर दिया गया. नरीमन ने DOPT और CVC के आदेश का हवाला दिया. कोर्ट ने रिटायर्ट जज एके पटनायक को इस जांच की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया.