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गर्दन की इस हड्डी के टूटते ही निर्भया के हैवानों को मिली मौत

Nirbhaya Case: सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया कि निर्भया के गुनहगारों की जिंदगी का सफर फांसी के तख्ते पर ही खत्म होगा.

Updated on: 20 Mar 2020, 08:02 AM

नई दिल्ली:

Nirbhaya Case: सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया कि निर्भया के गुनहगारों की जिंदगी का सफर फांसी के तख्ते पर ही खत्म होगा. फांसी के तख्ते तक के सफर को लंबा खींचने के लिए दोषियों की ओर से याचिका डाली जा रही थी, लेकिन दोषियों की याचिका काम न आई और आखिरकार उन्हें फांसी ही मिली.

डॉक्टरों ने कहा है कि फांसी के वक्त गर्दन की सात हड्डियों में अचानक से झटका लगता है. इन्ही में से एक सेकंड सरवाइकल वर्टेब्रा पर झटका लगता है, जिससे ओंडोत वाइट्स प्रोसेस वाली हड्डी निकलकर स्पाइनल कॉर्ड में धंस जाती है. इससे शरीर न्यूरोलॉजिकल शॉक में जाते ही चंद मिनट में मौत हो जाती है. फांसी के फंदे पर दोषी के लटकने के चंद सेकेंड बाद ही दोषी दम तोड़ देता है.

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आपको बता दें कि फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी, फांसी और गला घोंटकर मारने के अलग-अलग लक्षण हैं, लेकिन ये फांसी जूडिशियल हैंगिंग है. खुदकुशी में फांसी लगाने से गर्दन व सांस की नली दबने या दोनों के एक साथ दबने से दिमाग में खून का प्रवाह बंद हो जाता है और 2 से 3 मिनट में मौत हो जाती है. वहीं, हत्या के इरादे से फंदे से लटकाया जाता है तो होमीसाइडल हैंगिंग कहा जाता है. कुछ मामलों में दुर्घटना में रस्सी या तार में गर्दन के उलझने से मौत हो जाती है. सभी मामलों के अपने-अपने लक्षण हैं.

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सेंट्रल जेल तिहाड़ के पूर्व जेलर ना कहना है कि उन्होंने अपने वक्त में तिहाड़ में 7 फांसी देखी हैं. उनका दावा है कि 1982 में जब रंगा और बिल्ला को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया था, तब दो घंटे बाद भी रंगा की पल्स चल रही थी. बाद में रंगा के फंदे को नीचे से खींचा गया और उसकी मौत हुई.