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निर्भया केस: SG तुषार मेहता बोले- सभी दोषियों को फांसी एक साथ देना जरूरी नहीं, अलग-अलग भी दी जा सकती है

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि दोषियों के रवैये से साफ है कि वो कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं

Updated on: 03 Feb 2020, 06:12 AM

नई दिल्ली:

निर्भया के दोषियों की फांसी की सजा टालने के पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में रविवार को विशेष सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा कि सभी दोषियों की फांसी की सजा एक साथ देना जरूरी नहीं है. सभी के कानूनी राहत के विकल्प खत्म होने का इतंजार करने की जरूरत नहीं है. दोषियों को अलग-अलग भी फांसी दी जा सकती है.

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सभी दोषी कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि दोषियों के रवैये से साफ है कि वो कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं. SG ने अलग-अलग दोषियों का हवाला देकर बताया कि कैसे वह एक-एक करके याचिका दायर कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद रिव्यू ,क्यूरेटिव फाइल करने में देरी हुई, ताकि मामले को लटकाया जा सके.

पवन ने जानबूझकर क्यूरेटिव और मर्सी पेटिशन दाखिल नहीं की

SG तुषार मेहता अब जेल नियम और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दोषियों ने एक युवती के साथ रेप किया. उसके शरीर में रॉड डाल दी और फिर उसे मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया, लेकिन जानबूझकर दोषी आपस में मिलकर कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. पवन ने जानबूझकर अभी तक क्यूरेटिव और मर्सी पेटिशन दाखिल नहीं की है.

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फांसी की सजा पर अमल तब नहीं हो सकेगा, जब...

SG ने कहा कि नियमों के मुताबिक किसी दोषी को फांसी केवल तब नहीं हो सकती जब SLP सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर एक अपराध में कई गुनाहगार हैं तो फांसी की सजा पर अमल तब नहीं हो सकेगा, जब तक सभी दोषियों की SLP का SC से निपटारा हो जाए, लेकिन दया याचिका के स्टेज पर ऐसा नहीं है. दया याचिका के स्टेज पर सबको एक साथ ही फांसी की सजा देने की बाध्यता नहीं है. अलग-अलग फांसी हो सकती है.

सभी दोषियों की दया याचिका निपटारा करने तक का इतंजार का कोई मतलब नहीं 

दिल्ली हाई कोर्ट में एसजी तुषार मेहता नियमों का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि जिनकी दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है, उन्हें फांसी दी जा सकती है. सभी दोषियों के विकल्प खत्म होने का इतंजार करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, दया याचिका के स्टेज पर स्थिती अलग हो जाती है. राष्ट्रपति किसी की दया अर्जी खारिज कर सकते हैं. किसी की सजा को माफ कर सकते हैं. ये हर केस में उनके विवेक पर निर्भर है तो फिर सभी दोषियों की दया याचिका निपटारा करने तक का इतंजार का कोई मतलब नहीं है.

एक गुनाह के दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती है

तुषार मेहता ने आगे कहा कि 1982 के हरबंस सिंह का केस अलग था. वो मामला सुप्रीम कोर्ट में SLP के स्टेज पर था, लेकिन यहां स्थिति अलग है. यहां तो SLP के बाद रिव्यू और क्यूरेटिव खारिज हो चुकी है. 1982 के हरबंस सिंह केस का निचली अदालत में दोषियों के वकील ने हवाला देते हुए कहा था कि एक गुनाह के दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती है, लेकिन यहां SG ये साबित कर रहे हैं कि वहां हालात अलग थे. वहां का स्टेज तब का था जब एक दोषी की SLP (special leave petition) SC में बाकी थी.

देश के सब्र की परीक्षा ले रहे हैं.

आपको बता दें कि यहां SLP (special leave petition) से आशय उस अर्जी से है जब दोषियों की ओर से सजा की पुष्टि वाले हाईकोर्ट के फैसले को SC में चुनौती दी गई थी. तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में दोषियों के कृत्य पाशविक था. उन्होंने बर्बरता की सारी हदों का पार कर दिया. उनके जघन्य अपराध ने सामाजिक चेतना को झकझोर दिया. आज वो दोषी कानून के साथ खिलवाड़ कर देश के सब्र की परीक्षा ले रहे हैं. न्यायपालिका की साख, उसमें लोगों का विश्वास दांव पर लगा है कि कोर्ट फांसी के फैसले पर अमल नहीं करवा पा रहा है. लोग न्यायपालिका में विश्वास खो रहे हैं. इसी वजह से तेलंगाना एनकाउंटर के बाद लोगों ने जश्न मनाया. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की दलील पूरी हो गई है.