फ्रांस स्थित चीनी दूतावास ने हाल ही में कोरोनावायरस स्रोत की खोज में राजनीतिक हेरफेर नहीं किया जा सकता शीर्षक एक लेख प्रकाशित किया।
लेख में कहा गया कि कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप होने के बाद अमेरिका लगातार चीन के खिलाफ बदनाम किया। इस दौरान वायरस के प्रयोगशाला से उत्पन्न और कृत्रिम निर्माण वाले थ्योरी का प्रचार करना उसका साजिश बन गई।
हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुफिया विभाग से प्रयोगशाला रिसाव थ्योरी को लेकर जांच करने का आदेश दिया। लोगों को लगता है कि अमेरिका की यह हरकत शिनच्यांग जैसे मुद्दे की ही तरह चीन को बदनाम करना चाहता है, ताकि चीन को दबाया जा सके।
वास्तव में अमेरिका के कथाकथित प्रयोगशाला रिसाव थ्योरी को अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान जगत द्वारा खारिज कर दिया गया है। इस वर्ष मार्च महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन-डब्ल्यूएचओ वायरस के स्रोत का पता लगाने वाली संयुक्त रिपोर्ट जारी की। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि वायरस प्रयोगशाला से लोगों तक संक्रमित होना बिलकुल असंभव है। अमेरिका इसे अनदेखा कर ट्रम्प झूठ से बाइडेन सच्चाई तक अजीब बात करता रहा है। जाहिर है कि उसकी हरकत बिलकुल राजनीतिक हेरफेर के आधार पर है, वह तथ्य और सच्चाई पर ख्याल नहीं रखता, और न ही संजीदगी के साथ वैज्ञानिक तरीके से वायरस के स्रोत का पता लगाना है।
लेख में यह भी कहा गया कि कोरोना महामारी ने विश्व भर में अभूतपूर्व झटका दिया है। इसका पता लगाने और रिपोर्ट देने वाले पहले देश के रूप में चीन ने प्रथम समय पर सबसे व्यापक, सख्त और पूरी तरह से रोकथाम और नियंत्रण उपायों को अपनाया और नए स्थानीय मामलों को शून्य पर वापस करने में लगभग 2 महीने लगते थे। इससे जाहिर है कि कोरोनावायरस पूरी तरह से रोकथाम, नियंत्रण और इलाज किया जा सकता है।
लेकिन चीन के विपरीत, सबसे प्रचुर चिकित्सा संसाधनों और सबसे उन्नत तकनीक वाला देश होने के नाते अमेरिका में कुछेक राजनीतिज्ञों ने विज्ञान से घृणा करते हुए लोगों के जीवन की उपेक्षा करते हैं, और अपने स्वार्थ हितों के लिए राजनीतिक हेरफेर के इच्छुक से महामारी अपने ही देश में फैल गई और फैलती रही। वह एक से अधिक साल में इसका नियंत्रण करने में सक्षम नहीं है।
( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
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Source : IANS