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अफवाहों की रात दिल्ली को ऐसे साफ बचा ले गए नए पुलिस कमिश्नर

दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूमों को आधे घंटे में ही 1880 से ज्यादा फर्जी झूठी सूचनाएं अलग-अलग इलाकों में हिंसा फैलने की मिली हों.

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Ravindra Singh
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दिल्ली में दंगे की अफवाह( Photo Credit : फाइल)

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दिल्ली के सबसे फिसड्डी और अंत में काम-चलाऊ साबित हुए पूर्व पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की तमाम कमियों पर नए पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की सूझबूझ ने रविवार रात परदा डाल दिया. परदा ही नहीं डाला, बल्कि अव्वल दर्जे की रणनीति के चलते वे रविवार की रात दिल्ली को 'अफवाहों की आग' में स्वाहा होने से भी बखूबी बचा ले गए. जिस राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का उत्तर पूर्वी जिला 4-5 दिन पहले बलवे की आग में धू-धू कर जला हो, 45 बेकसूर लोग जान गंवा चुके हों, जिस आग में करोड़ों रुपये की संपत्ति स्वाह हो चुकी हो, जिस आग ने तमाम मासूमों के सिर से अपनों का साया उठा लिया हो, जिसने घर में बैठी तमाम बेकसूर महिलाओं को विधवा बना डाला हो, उसी दिल्ली शहर में चंद दिन बाद रविवार को फिर से हिंसा फैलने की अफवाह फैल गई. एक साथ चंद मिनटों के भीतर भगदड़ का सा माहौल बन गया.

दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूमों को आधे घंटे में ही 1880 से ज्यादा फर्जी झूठी सूचनाएं अलग-अलग इलाकों में हिंसा फैलने की मिली हों. 40 से ज्यादा लोग गिरफ्तार कर लिए गए हों, तमाम मेट्रो स्टेशन के मुख्यद्वार बंद कर दिए गए हों, पुलिस कमिश्नर ने इससे चंद घंटे पहले ही दिल्ली में पुलिस आयुक्त की कुर्सी संभाली हो, सोचिए कि उस शहर में इन अफवाहों का नकारात्मक असर किस कदर शांत शहर को देखते-देखते तबाह कर सकता था. हुआ मगर इस तमाम सोच के विपरीत. कुछ घंटों के लिए अफवाहें पुलिस और पब्लिक पर भारी पड़ीं. नए पुलिस कमिश्नर ने मगर अमूल्य पटनायक की तरह खुद को बंगले में बंद नहीं किया. अफवाहों के फैलते के शुरुआती दौर में ही पुलिस सड़कों पर उतर आई.

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पुलिस ने सड़कों पर उतरकर भगदड़ होने से बचाव किया

थाने के एसएचओ से लेकर दिल्ली पुलिस के तमाम एसीपी, डीसीपी, ज्वाइंट कमिश्नर, स्पेशल कमिश्नर तक, सबके सब राजधानी की सड़कों पर बा-वर्दी खड़े थे. अधिकांश के हाथों में लाउडस्पीकर थे. अफवाहों से भयभीत इलाके के लोगों के बीच पुलिस पहुंची, तो जान बचाने को इधर-उधर भाग रहे लोग अपनी अपनी जगह पर रुके. लोगों ने खुद के बीच चंद मिनट में पुलिस की मौजूदगी देखकर शांत रहने में ही भलाई समझी. देखते ही देखते अफवाहों की तपिश में एकदम कमी आ गई. पुलिस को गली-कूंचों में खड़ा पाकर अफवाहें फैलाने वाले इधर-उधर दुबक गए. अगर पुलिस सड़कों पर न उतरती होती, तो शायद दहशतजदा लोग अपनी जान बचाने को भगदड़ में शामिल हो सकते थे. उन्हें शायद यही लगता कि कहीं फिर फिसड्डी पुलिस के पहुंचने के इंतजार में वे उत्तर-पूर्वी दिल्ली जिले की मानिंद दंगों की आग में न झुलस उठें.

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अफवाह फैलाने वालों से पहले दिल्ली पुलिस सड़कों पर थीं

चंद मिनट में देश की राजधानी में इतने सब बवाल-हड़कंप के बाद भी किसी को खरोंच तक नहीं आई. इसके पीछे अगर कोई ठोस वजह मानी जा रही है तो वो सिर्फ और सिर्फ, दिल्ली के नए पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव की सूझबूझ और तुरंत फैसला लेने की उनकी कुव्वत.दिल्ली पुलिस की ही एक महिला डीसीपी ने सोमवार को मीडिया को बताया, रविवार की रात जैसे ही एक साथ कंट्रोल रूम्स में अलग-अलग जगहों से हिंसा फैलने की खबरें आनी शुरू हुईं. हमारी स्पेशल सेल, क्राइम ब्रांच, स्पेशल ब्रांच मॉनिटरिंग (निगरानी) पर लग गई. सीपी साहब खुद भी हालात पर नजर रखे हुए थे. यहां तक कि ट्रैफिक पुलिस भी सड़कों पर अलर्ट मोड पर उतर चुकी थी. ईश्वर का शुक्र है कि अफवाह फैलाने वालों से पहले ही हम लोग (दिल्ली पुलिस) पब्लिक के बीच पहुंच गई.

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अफवाहें फैलने के साथ ही आदेश आया बाहर निकलने का

उत्तर-पूर्वी दिल्ली जिले के एक थाने में तैनात इंस्पेक्टर/एसएचओ ने मीडिया से नाम उजागर न करने की शर्त पर दो टूक कहा, हम क्या-क्या कर लें? जनाब (उच्चाधिकारी) न सीधे लें न उल्टे. इसलिए जुबान बंद रखते हैं. कान और आंखें खुली रखते हैं. जो ऊपर से आदेश आता है, उसे फॉलो कर लेते हैं. आदेश नहीं आता है तो आदेश मिलने का इंतजार करते हैं. संडे रात को अफवाहें फैलीं तो डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम से तुरंत थाने से बाहर इलाके में रवानगी का मैसेज आ गया. जितना फोर्स मेरे पास था, सबको लेकर इलाके में निकल गया. आदेश नहीं आता तो बताओ मैं क्या करता? क्या 24-25 फरवरी को जब उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे फैले, तब ऊपर से आदेश आने में देर हुई? पूछे जाने पर इसी इंस्पेक्टर ने मीडिया से बातचीत में बताया कि, महकमे की हर बात सबको नहीं बताई जाती.

Police Commissioner SN Srivastava delhi-violence rumours about riots in Delhi Delhi Riots rumours in Delhi
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