थोरियम परमाणु बिजली स्टेशन पर चीन-भारत सहयोग
थोरियम परमाणु बिजली स्टेशन पर चीन-भारत सहयोग
बीजिंग:
कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता के साथ-साथ ऊर्जा की मांग में वृद्धि जारी है। जिसमें हाल ही में उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत में नव-निर्मित थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका साबित हो जाएगी। पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र यूरेनियम का उपयोग करते हैं, और ऐसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा अधिक नहीं है। और दुनिया में यूरेनियम का भंडार सीमित है। थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र उच्चतम सुरक्षा और उच्च बिजली उत्पादन क्षमता वाला परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। उधर एक किलोग्राम थोरियम 3,500 टन कोयले के बराबर ऊर्जा पैदा कर सकता है।वर्तमान में, भारत और चीन के पास दुनिया में थोरियम का सबसे समृद्ध भंडार है। चीन की वर्तमान बिजली की मांग के अनुसार परमाणु ईंधन के रूप में थोरियम अगले 20 हजार वर्षों तक ऊर्जा की मांग को पूरा कर सकेगा। इसके अलावा, थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र में पानी से ठंडा नहीं होने की विशेषताएं भी हैं। वर्ष 2011 से चीनी वैज्ञानिकों ने निकल-आधारित सुपर ऑलॉय, ग्रेफाइट सामग्री और पिघला हुआ नमक तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण प्रगतियां हासिल की है, जो थोरियम-आधारित परमाणु रिएक्टरों में आवश्यक है। भविष्य में चीन परमाणु ऊर्जा, हाइड्रोजन, पिघला हुआ नमक ताप भंडारण और फोटोवोल्टिक बिजली उत्पादन जैसे व्यापक निम्न-कार्बन मिश्रित ऊर्जा प्रणालियों का उपयोग करेगा।
वर्तमान में, दुनिया में 400 से अधिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाए गए हैं, लेकिन वे केवल 10 प्रतिशत ऊर्जा प्रदान करते हैं। हालांकि, परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक यूरेनियम 235 की आपूर्ति सीमित है। लेकिन थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर यूरेनियम रिएक्टर से इस मायने में अलग है कि यह पानी नहीं बल्कि पिघला हुआ नमक का प्रयोग करता है। इस तरह ऑपरेशन के दौरान परमाणु अपशिष्ट जल की कोई आवश्यकता नहीं होती है। थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र रेगिस्तान में बनाए जा सकते हैं, और फिर बड़े शहरों में बिजली पहुंचाने के लिए यूएचवी ट्रांसमिशन तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टरों का ऑपरेटिंग तापमान लगभग 700 डिग्री है, और थर्मल ऊर्जा दक्षता 45 प्रतिशत -50 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जबकि यूरेनियम केवल 33 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र पानी का उपयोग नहीं करता है, और जापान में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र और चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र की तरह रिसाव का कोई खतरा नहीं है। थोरियम रिएक्टर द्वारा उत्पादित परमाणु अपशिष्ट 300 वर्षों के बाद प्राकृतिक अयस्क के उत्सर्जन मानक तक पहुंचेगा। जबकि यूरेनियम के परमाणु कचरे में कम से कम दसियों हजार साल लगते हैं। इसलिए थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्र सुरक्षित हैं।
इसके अलावा, थोरियम परमाणु हथियारों के निर्माण के लिए उपयुक्त सामग्री नहीं है। इसलिए थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के विकास से परमाणु हथियारों के प्रसार को रोका जा सकता है। संक्षेप में बिजली उत्पादन के लिए थोरियम आधारित पिघला हुआ नमक रिएक्टरों का उपयोग भविष्य की प्रवृत्ति है। भविष्य में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए हम बिजली उत्पादन के लिए कोयले नहीं, पर थोरियम का उपयोग कर सकेंगे। परमाणु ऊर्जा के विकास के इतिहास का सिंहावलोकन करते हुए चीन और भारत का विकास पश्चिमी देशों की तुलना में पिछड़े हुए थे। पर चीन और भारत के पास थोरियम का सबसे समृद्ध भंडार है। यदि थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी का विस्तार किया जाए, तो चीन और भारत को विदेशी ऊर्जा पर निर्भर रहने की स्थिति से पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा। इसका दुनिया भर में परमाणु ऊर्जा, पर्यावरण, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। अब चीन की थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी पर पश्चिमी देशों का ध्यान आकर्षित है, और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चीन के साथ सहयोग करने की उम्मीद प्रकट की है। थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी में चीन और भारत के बीच सहयोग की व्यापक संभावनाएं भी हैं।
( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
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