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अमेरिका का दुश्मन वास्तव में कौन है?

अमेरिका का दुश्मन वास्तव में कौन है?

Updated on: 30 Nov 2021, 07:25 PM

बीजिंग:

हाल के दिनों में अमेरिकी अधिकारियों ने एक बार फिर चीन, रूस और अन्य देशों को तथाकथित खतरा बता दिया है। इस तरह के अतार्किक विचारों ने कुछ जगहों पर कुछ प्रशंसा हासिल की है। यह सच है कि अमेरिका वास्तव में बहुत सारे आंतरिक और बाहरी दबावों का सामना कर रहा है, लेकिन वर्तमान में अमेरिकी संकट का वास्तविक कारण क्या है? कहा जाता है कि किला हमेशा भीतर से बिखरने लगता है। अमेरिका के लिए वास्तविक खतरा बाहरी विरोधी नहीं है, बल्कि उस देश के भीतर गहरे सामाजिक अंतर्विरोध हैं।

अमेरिकी समाज में असंतुलित आर्थिक विकास के कारण सामाजिक वर्गों के बीच संघर्ष तो हैं, पर साथ ही साथ जातीय समूहों के बीच संघर्ष भी हैं जिन्हें समेटना मुश्किल है, और इनके अतिरिक्त भयंकर वैचारिक संघर्ष भी हैं। अमेरिका ने सबसे पहले वैश्वीकरण की वकालत की थी। शीर्ष अमेरिकी डिजाइनरों की ²ष्टि के अनुसार अमेरिका के नेतृत्व में विश्व अर्थव्यवस्था को एकीकृत किया जाएगा, और अमेरिका विश्व पिरामिड के शीर्ष पर बैठेगा। इसलिए अमेरिका ने उच्च-उत्सर्जन वाले निम्न- और मध्य-श्रेणी वाले उद्योगों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया है, और केवल अपनी मुख्य प्रौद्योगिकी और मौद्रिक और वित्तीय नियंत्रण को बरकरार रखा है। हालांकि, पिछले 40 वर्षों में वैश्वीकरण अमेरिका की इच्छा के अनुसार विकसित नहीं हुआ है। वर्तमान में अमेरिका में विश्व फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से केवल 121 हैं, जो चीन के 129 से कम है। इसके अलावा, दुनिया भर से अमेरिकी कंपनियों द्वारा अर्जित अधिकांश धन उच्च वर्ग द्वारा छीन लिया गया है, और मध्यम वर्ग और ब्लू-कॉलर वर्ग की आय कम और कम हो गयी है। यह अमेरिकी समाज में गहरे बैठे अंतर्विरोधों का मूल कारण है। जो अमेरिका में हुई संकटों का मूल कारण है और यहां तक कि कैपिटल हिल पर कब्जा लेने जैसे भयभीत घटना भी घटित हुई।

वर्ग विरोधाभासों के अलावा अमेरिका में एक अघुलनशील विरोधाभास है, यानी नस्लीय भेदभाव। अमेरिका में सबसे पहले श्वेत अप्रवासी ब्रिटिश प्रोटेस्टेंट चर्च के प्यूरिटन थे। उन्होंने हिंसक नरसंहार के माध्यम से उत्तर अमेरिका के इन्डियन्स से जमीन के बड़े हिस्से को छीन लिया, और क्रूर तरीकों से अफ्रीका से बड़ी संख्या में काले दासों को लूट लिया। इससे अमेरिका में श्वेत और अश्वेत जातीय समूहों के प्रभुत्व वाले बहु-नस्लीय समाज का गठन किया गया। 21वीं में प्रवेश होने से अफ्रीकी अमेरिकियों की आय में गिरावट जारी है। अश्वेतों की गरीबी दर 22.5 प्रतिशत रही है, जो श्वेतों की तुलना में दोगुने से अधिक है, और हिंसक कानून प्रवर्तन के अधीन अश्वेतों की संख्या श्वेतों का चार गुना अधिक है। विश्व जेल बुलेटिन के आंकड़ों के अनुसार, पूरे अमेरिका में कैदियों की संख्या 2.2 मिलियन है, जिनमें से एक तिहाई अश्वेत हैं। हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने भी कई उपाय किए हैं, लेकिन नस्लीय अंतर्विरोधों को अभी तक सुलझाया नहीं गया है, लेकिन वे अधिक से अधिक तीव्र हो गए हैं। यहां तक कि पिछले साल के बीएलएम आंदोलन ने अमेरिकी समाज में गंभीरता से विभाजित किया है।

उपर्युक्त के अलावा, अमेरिका में भी बहुसंस्कृतिवाद तथा विभिन्न नए विचारों का संघर्ष, वास्तविक अर्थव्यवस्था का दमन करने वाली आभासी अर्थव्यवस्था, और उच्च तकनीक वाले उद्यमों द्वारा पारंपरिक निर्माण का उन्मूलन जैसे अंतर्विरोध हैं। विभिन्न अंतर्विरोध गहरे और विकसित होते रहते हैं, जो अमेरिकी समाज की नींव को हिला सकेंगे। लेकिन अगर कोई पूर्वाग्रह नहीं, तो ये सभी विरोधाभास किसी भी विदेशी खतरों के कारण नहीं हैं। हालांकि, अमेरिकी राजनेताओं का एक अजीब तर्क है, यानी कि जब तक वे कुछ विदेशी देशों को लक्षित करते हैं, तो अपने देश के भीतर के अंतर्विरोधों को कम किया जा सके। अब चीन, रूस और अन्य देशों के खिलाफ अमेरिका ने व्यापार युद्धों और तकनीकी अवरोधों को अपनाया है, अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को भी उकसाने की कोशिश की है, अंतरराष्ट्रीय तंत्रों को स्थापित कर दिया है और तथाकथित मानवाधिकार मुद्दों का औजारों के रूप में इस्तेमाल किया है।

निष्कर्ष स्पष्ट है, यानी कि अमेरिका का असली दुश्मन बाहर नहीं, बल्कि अंदर है। यदि वह अपनी मुख्य शक्ति से घरेलू समस्याओं को हल करने के बजाय, बाहरी खतरों की कल्पना करना जारी रखता है, तो यह अमेरिका के सामाजिक संघर्षों को कम करने के लिए फायदेमंद नहीं होगा। वर्तमान महामारी के प्रभाव में अमेरिकी समाज को अभूतपूर्व संकट का सामना पड़ता है। अमेरिका को जो करना चाहिए वह है कि मानव के साझा भाग्य समुदाय के ²ष्टिकोण से दुनिया में दूसरे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ ईमानदारी से बातचीत करेगा, उभय जीत सहयोग के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार लेगा, और इसके साथ अपने स्वयं के संकटों को हल करेगा। यह सही नहीं है कि अमेरिका अपने को विश्व सभ्यता के केंद्र के रूप में समझकर, विभिन्न विचारधाराओं वाले देशों के खिलाफ अधिपत्य रुख जारी रखेगा।

(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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