चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इधर के कुछ दिनों में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का निरीक्षण दौरा किया। तिब्बत की राजधानी ल्हासा में वे 22 जुलाई की दोपहर बाद विशेष तौर पर द्रपंग मठ, बाखुओ सड़क और पोताला महल चौक गये।
द्रपंग मठ ल्हासा शहर से पश्चिम में दस किलोमीटर दूर एक पहाड़ पर स्थित है। वह तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा मठ है और गलुक समुदाय के 6 मुख्य मठों में से सबसे अहम है। द्रपंग मठ, गानतान मठ और सरा मठ ल्हासा के तीन बड़े मठों के नाम से मशहूर है। उसकी स्थापना वर्ष 1416 में हुई। आज का द्रपंग मठ एक विशाल भवन समूह है। त्सोछिन महाहोल द्रपंग मठ के केंद्र में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 4500 वर्गमीटर है। भव्य अर्चना होल में 183 स्तंभ हैं और 221 कमरे हैं।
जब राष्ट्रपति शी चिनफिंग वहां पहुंचे तो धार्मिक वाद्ययंत्र एक साथ बजने लगे। मठ प्रबंधन समिति के प्रमुख ने उनके सम्मान में हाता प्रदान किया। लामाओं ने परंपरागत तरीके से उनकी अगवानी की। शी ने त्सोछिन महल का दौरा किया। उन्होंने इधर के कुछ साल द्रपंग मठ के सक्रिय योगदान की प्रशंसा की और बल दिया कि हमें पूरी तरह पार्टी के धार्मिक कार्य की नीतियां लागू कर आम लोगों की धार्मिक आस्था का सम्मान करना चाहिए।
बाखुओ सड़क ल्हासा के पुराने शहर में स्थित है, जिसका इतिहास 1300 साल से अधिक है। यहां ल्हासा का मशहूर चक्र चलाने का रास्ता है और समृद्ध वाणिज्यिक केंद्र भी है। बाखुओ सड़क क्षेत्र में संपूर्ण रूप से पुराने शहर के परंपरागत ²श्य और वास्तु भवन देखने को मिलते हैं। यहां कई पर्यटन वस्तुओं की दुकानें हैं। नेपाल और भारत से आये बहुत-सी चीजें भी देखी जाती हैं। तिब्बती संस्कृति को महसूस करने के लिए बाखुओ सड़क एक आदर्श स्थान है । अपनी यात्रा में शी चिनफिंग ने बाखुओ सड़क पर लोगों से हाथ हिलाकर अभिवादन किया और स्टाल में प्रवेश कर पर्यटन व संस्कृति संभाल की स्थिति का पता लगाया ।
पोताला महल के सामने एक विशाल चौक है। वर्ष 1995 में इसका निर्माण हुआ और वर्ष 2005 में उसका विस्तार किया गया। पोताला महल विश्व में सबसे ऊंचा शहरी चौक है। दक्षिण से उत्तर तक उसकी लंबाई चार सौ मीटर है और पूर्व से पश्चिम तक 600 मीटर है। पोताला चौक पास पुस्तकालय, बच्चों के पार्क और बाजार भी हैं। चौक के दक्षिण में तिब्बत की शांतिपर्ण मुक्ति दिवस स्मारक स्थापित है, जिसकी उंचाई 37 मीटर है। पोताला चौक पर शी चिनफिंग ने बताया कि तिब्बत का इतिहास विभिन्न जातियों द्वारा एक साथ लिखा गया है। तिब्बती जाति और अन्य जातियों के बीच आदान-प्रदान होता रहता है। उन्होंने विभिन्न जातियों की जनता को च्राशीदले यानी शुभकामनाएं दी।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS