जापान की राजधानी टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों में चीन पदक तालिका में शीर्ष पर बना हुआ है। चीन पहले दिन से ही सर्वाधिक पदक जीतने के साथ ही नंबर वन स्थान पर काबिज है। वहीं, भारत की बात करें तो अभी भारत की झोली में केवल 2 पदक ही आये हैं। खैर, भारत की स्वर्ण पदक पाने की उम्मीद अभी भी बनी हुई है।
वास्तव में, इस बार का रुझान पिछले ओलंपिक मुकाबलों की तरह ही नजर आ रहा है, जहां चीन पदक तालिका में शीर्ष पांच देशों में शामिल है। टोक्यो में भी अब तक इसका प्रदर्शन ओलंपिक सुपर पावर की तरह रहा है। चीन ने दिखा दिया है कि उसे पदक हासिल करने की जबरदस्त भूख है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत को पदक हासिल करने की भूख कम है?
देखिए एक समय था, जब भारत में खेलकूद को सिर्फ मनोरंजन का हिस्सा माना जाता था, लेकिन आज के दौर में बच्चे सिर्फ पढ़ाई से ही नहीं, बल्कि खेलकूद कर भी दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। आज खेलों की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। बहुत-से स्कूलों में खेल को जरूरी कर दिया गया है, यानी अगर पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह है। खुद को फिट रखने के लिए खेलकूद एक उत्तम विकल्प भी है।
हालांकि, यह सच है कि खेल और पढ़ाई साथ चलाने के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे चीन में छोटे-छोटे बच्चे करते हैं। चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिमनास्टिक्स, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं। अधिकांश चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं, जहां उन्हें सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जाता।
चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर ऑपशन लगता है। वहीं, भारत में, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने और बाद में नौकरी करवाने पर खासा ध्यान देते हैं।
सब जानते हैं कि खेल की दुनिया में चीन ने ऐसा दबदबा कायम किया कि वह ओलंपिक खेलों में सुपरपावर बन गया। उसके लिए खेल का महत्व किसी युद्ध से कम नहीं है। उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया और अपनी पदक तालिका को मजबूत बनाता गया।
दरअसल, 1980 के ओलंपिक खेलों के बाद से चीन की खेल प्रणाली काफी हद तक मजबूत हुई, और ओलंपिक खेलों में बहुत अधिक स्वर्ण पदक हासिल करने के बारे में चीन सरकार ने सोचना शुरू किया, और बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी की। चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल विज्ञान के आधार पर ज्यादा जोर देकर करवाई जाती है, जिससे वो पदक प्राप्त करने में कामयाब होते हैं।
इतना ही नहीं, चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान पर लाखों डॉलर खर्च करता है। चीन उन खेलों में विकासशील कार्यक्रमों पर विशेष जोर देता है जिनमें बहुत अधिक इवेंट्स होते हैं और बहुत सारे पदक जीतने की संभावना होती हैं, जैसे शूटिंग, जिमनास्टिक, तैराकी, नौकायन, ट्रैक एंड फील्ड आदि।
भारत में स्पोर्ट्स को हर सतह पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की जरूरत है और समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता देनी होगी। भारत में खेल और खिलाड़ियों के स्तर को बेहतर करने के लिए उन्हें ऊंचे स्तर के परीक्षण और रोजगार दिलाना जरूरी है। हालांकि, भारत में धीरे-धीरे बेहतरी आ रही है, लेकिन वो गति वाकई बहुत धीमी है।
लेकिन चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियन सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, चच्यांग फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स स्कूल और अन्य हजारों छोटे-बड़े ट्रेनिंग केंद्र। दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में हैगन स्पोर्ट्स ट्रेनिंग बेस चीन का सबसे बड़ा खेल प्रशिक्षण कैंप है। अतिरिक्त 3,000 स्पोर्ट्स स्कूल टैलेंट की पहचान और उनका पोषण करने का जिम्मा संभालते हैं।
इन स्पोर्ट्स स्कूल में कम उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं। इस तकलीफ को सहकर ही वे चैंपियन बनने की कला सीखते हैं। तभी तो ओलिंपिक हो या एशियन गेम्स, हर इवेंट्स में गोल्ड जीतने के लिए चीनी खिलाड़ी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। भले ही चीनी एथलेटिक्स अन्य देशों से आगे हों, लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसी कारण लगभग हर खेलों में चीनी खिलाड़ियों की धूम रहती है।
(अखिल पाराशर, पेइचिंग)
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Source : IANS