हाल के दिनों में, अफगानिस्तान की स्थितियों से भारतीय मीडियाओं की तीव्र प्रतिक्रिया पैदा हुई है। कुछ भारतीय आलोचकों ने अफगान तालिपान से नफरत की, और इंटरनेट पर मेरे कुछ भारतीय दोस्तों ने भी तालिबान के खिलाफ निरंतर निन्दा किए। उनका मानना है कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र मानवाधिकारों को गंभीरता से अतिक्रमण किया गया है और ऐसा लगता है कि अमेरिका की सैनिक वापसी के कारण अफगान लोगों को भयानक आपदा में डाला गया है।
लेकिन हमें अफगानिस्तान की वास्तविक स्थितियों की जानकारियों के आधार पर इस देश की चर्चा करनी चाहिये। हमें पहले यह समझना चाहिए कि अफगानिस्तान के केवल काबुल जैसे शहर नहीं हैं। अफगानिस्तान एक गरीब देश है जिसकी आबादी 39 मिलियन है, पर संसाधनों की बेहद कमी है। अफगानिस्तान में 90 प्रतिशत लोग गांवों और छोटे कस्बों में रहते हैं, और उनका जीवन मूल रूप से बाहरी सभ्यता से अलग है। हालांकि, बहुत कम मीडिया कभी अफगानिस्तान के गांवों में जाकर वहां रहने वाले लोगों की वास्तविक जीवन स्थितियों पर रिपोर्ट करता है। अमेरिकी सेना ने 20 साल पहले आतंकवाद विरोधी के नाम पर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था, लेकिन 20 साल बाद उन्हें अफगानिस्तान को छोड़कर हटना पड़ा। उधर तालिबान ने इस देश के अधिकांश क्षेत्रों को आसानी से कवर कर लिया। यदि हम हेगेल के सिद्धांतों के दर्शनशास्त्र में प्रसिद्ध कहावत को अभी भी याद करते हैं कि जो अस्तित्व है वह उचित है, तो हमें तर्कसंगत भावना के मार्गदर्शन में अफगानिस्तान की वास्तविकता को समझना होगा और अफगान लोगों की मदद करने के लिए अपनी कोशिश करनी होगी।
कुछ भारतीय मीडिया ने कहा कि अमेरिका की सैनिक वापसी के बाद अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को मास्क पहनना पड़ता है और पुरुषों को अपनी दाढ़ी बढ़ानी भी शुरू करनी है। पर हमें यह महसूस करना चाहिए कि दुनिया की सभ्यताएं विविध हैं, और सभी धर्मों में कट्टरपंथी प्रवृत्तियां हैं। अमेरिका के साथ सहयोगी बनाए रखने वाले कुछ देशों ने वास्तव में अधिक कट्टरपंथी नीतियों को अपनाया है, लेकिन उनकी पश्चिमी मीडिया द्वारा आलोचना नहीं की जा रही है। उधर अफगान तालिबान ने कभी भी अपने धार्मिक गुणों से इनकार नहीं किया है, तो उनकी थोड़ी कट्टरपंथी धार्मिक नीतियों के बारे में क्या समझ से बाहर है? इसके अलावा, अफगानिस्तान में ज्यादातर लोग हमेशा ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जो काबुल की महिला एथलीटों के साथ वास्तव में एक ही दुनिया में नहीं रहते हैं। अफगानिस्तान के बारे में बात करते समय, हमें पहले एक प्रश्न को स्पष्ट करना चाहिए कि अफगान लोग वास्तव में कौन कौन हैं?
बीस साल पहले, अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी के नाम पर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और वहां एक पश्चिमी शैली के लोकतांत्रिक किले की स्थापना के प्रयास में भारी शक्ति लगा दी। लेकिन बास साल बाद यह साबित है कि अमेरिका इस युद्ध को हार गया है। आतंकवादी ताकतें जैसी-वैसी रहती हैं, और काबुल जैसे शहरों में जबरन खड़ाये गये लोकतंत्र का पेड़ अफगान मिट्टी के अनुकूल नहीं है। उधर भारत के कुछ टिप्पणीकार जो अफगानिस्तान के लोकतंत्र और मानवाधिकारों की आलोचना करते हैं, वे या तो मुसलमान नहीं हैं, या उन्हें इस धर्म के प्रति सच्ची समझ का अभाव है। भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बीच पारस्परिक समझ का अभाव विभिन्न सभ्यताओं के टकराव का मूल कारण है। विविधता हमारी दुनिया की नींव है, और विभिन्न सभ्यताओं की आपसी समझ और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व विश्व शांति के लिए मूलभूत शर्त है।
पर क्या अफगानिस्तान में कोई मानवाधिकार समस्या नहीं है? बिल्कुल नहीं!
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के मानवीय प्रमुख ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में गंभीर खाद्य संकट होने की संभावना है। वर्तमान में, अफगानिस्तान में लगभग एक तिहाई लोग भूख का सामना कर रहे हैं। उधर अमेरिका ने अफगानिस्तान की विदेशी मुद्रा को फ्रीज कर दिया है और बाहरी सहायता की गंभीर कमी हुई है। इसका मतलब है कि अफगानिस्तान में तत्काल मानवीय संकट होगा। भोजन की कमी से लोगों के अस्तित्व को सीधे खतरे में डाला जाएगा, और इससे आतंकवाद को बढ़ाने की भी संभावना है। इसलिए, अफगान अर्थव्यवस्था को जल्दी से बहाल किया जाना चाहिये, ताकि लोग शांतिपूर्ण वातावरण में खेती और उत्पादन का काम कर सकें, और लोगों को भोजन और रोजमर्रा की सुविधाएं मिल सकें। यही वह मानवाधिकार है जिसकी अफगान लोगों को वास्तव में आवश्यकता है!
हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री बैठक में भाग लेते हुए कहा था कि चीन ने अफगानिस्तान को भोजन व दवा सहित 20 करोड़ युआन की आपातकालीन आपूर्ति प्रदान करने का फैसला किया है। और चीन भी अफगानिस्तान को न्यू कोरोना वायरस वैक्सीन की सहायता प्रदान करेगा। चीन अफगानिस्तान के शांतिपूर्ण पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास में मदद करने को तैयार है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन की मानवीय सहायता अफगान लोगों की कठिनाइयों से निपटनेके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता का सम्मान करने के आधार पर सकारात्मक कदम उठाना चाहिए ताकि अफगानिस्तान की जल्द से जल्द स्थिरता बहाल हो सके, लोगों की आजीविका का समाधान हो और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एकीकृत हो। क्योंकि यही मानवाधिकार का मुद्दा है जिसे अफगानिस्तान को वास्तव में हल करने की जरूरत है!
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
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Source : IANS