चीन और अमेरिका के बीच रिश्ते काफी समय से ठीक नहीं चल रहे हैं। विश्व की दो सबसे बड़ी व प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के संबंधों का असर व्यापक रूप से वैश्विक स्तर पर भी नजर आता है। हमने देखा कि ट्रम्प प्रशासन के दौरान अमेरिका ने चीन पर कई तरह की पाबंदियां लगानी शुरू कीं, जो अभी भी चल रही हैं। इस बीच कोरोना वायरस के प्रसार व स्रोत को लेकर भी अमेरिका द्वारा चीन पर बार-बार आरोप लगाया जाता रहा है। जबकि हांगकांग व शिनच्यांग से जुड़े चीन के घरेलू मामलों में भी अमेरिकी नेता हस्तक्षेप करने में पीछे नहीं रहते।
इस सब के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आरोप-प्रत्यारोप और प्रतिबंध लगाने से किसी को भी दीर्घकालिक लाभ नहीं होने वाला है। चीन-अमेरिका मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ भी ऐसा ही मत रखते हैं।
कोरोना वायरस के बहाने दुनिया में चीन को अलग-थलग करने की बात पश्चिमी देश कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान के वैश्विक परि²श्य में यह संभव नहीं लगता है। यह भी निश्चित है कि विवादों और मतभेदों का अंत में बातचीत के जरिए ही सुलझाना होगा। कहने का मतलब है कि अमेरिका या किसी भी दूसरे देश द्वारा चीन पर पाबंदी लगाने का परिणाम नकारात्मक होगा। उसके बाद फिर चर्चा व बातचीत का सहारा ही लेना पड़ेगा।
यहां बता दें कि वर्तमान दौर में लगभग सभी राष्ट्र किसी न किसी चीज के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में उनको एक मंच पर आना ही होगा। जाहिर सी बात है कि विश्व की फैक्ट्री बन चुके चीन को आरोप लगाकर किनारे करना आसान नहीं है।
वहीं अमेरिका स्थित चीनी राजदूत छिन कांग के शब्दों में चीन की सोच और समझ को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि चीन-अमेरिका संबंधों के दरवाजे खुल चुके हैं, वे कभी बंद नहीं होंगे। इससे जाहिर होता है कि रिश्तों में जारी खटास के बाद भी चीन अमेरिका के संबंध नहीं तोड़ना चाहता है। भले ही दोनों देशों के रिश्ते कितने भी उतार-चढ़ाव भरे क्यों न रहे हों, आज के दौर में उन्हें एक-दूसरे की जरूरत है। हालांकि अमेरिका व चीन की राजनीतिक व्यवस्थाएं, कार्यशैली व परंपरागत मान्यताएं भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन विश्व शांति व विकास में दोनों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
(लेखक :अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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Source : IANS