द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका विश्व शक्ति पिरामिड के शीर्ष पर चढ़ गया और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति बन गया। उधर अमेरिका के आधिपत्य के पीछे दो मुख्य कारक हैं, यानी कि एक है शक्तिशाली अर्थव्यवस्था और अमेरिकी डॉलर के प्रतिनिधित्व वीली वित्तीय प्रणाली। दूसरा है अमेरिका के विमान वाहक और मिसाइलों से बनी सुपर सैन्य शक्ति। बेशक अमेरिका की शक्ति दूसरे किसी भी पक्ष के लिए अतुल्य रहती है और अमेरिका भी अपनी शक्ति के सहारे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में सख्ती से आधिपत्य का प्रयोग किया करता है।
अमेरिका का इतिहास युद्ध का इतिहास है। अमेरिका की स्थापना के दो सौ से अधिक वर्षों में अमेरिकी सेना ने 240 से अधिक युद्धों का अनुभव किया है। उन छोटे व मध्यम देशों, जो अमेरिका को पसंद नहीं है, के खिलाफ अमेरिकी सेना हर समय पर प्रहार करने को तैयार है। और वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की राय पर विचार कभी नहीं करता। विमान वाहक और बड़ी मात्रा के विमान और मिसाइल के अलावा, अमेरिका की परमाणु हथियारों की संख्या भी दुनिया में शीर्ष पर है। लेकिन अमेरिका की सैन्य शक्ति इसके आर्थिक आधिपत्य की सेवा करने के लिए ही है। 2019 में अमेरिका का जीडीपी पूरे यूरोपीय संघ को पार कर 214.3 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। जो अमेरिकी डॉलर की एकाधिकार स्थिति का साथ करता है, जबकि अमेरिका इस स्थिति का उपयोग दुनिया से लगातार धन प्राप्त करता रहा है।
हालांकि, न्यू कोरोना वायरस महामारी के फैलने से अमेरिकी आधिपत्य के पीछे की कमजोरियां स्पष्ट रुप से दिखने लगी है। अमेरिका में लगभग चार करोड़ लोगों को संक्रमित होने का पता चला है, 6.5 लाख लोग मारे गए हैं, हर जगह अस्पताल अभिभूत हैं और पीड़ित लोगों की शिकायतें सुनायी जा रही हैं। एक महामारी से अमेरिका की अक्षमता क्यों साबित की जा सकती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका हमेशा ऐसे प्रतिद्वंद्वी का सामना किया करता है, जो वास्तव में कमजोर होते हैं। जब उसके सामने एक काफी शक्तिशाली चुनौती सामने आयी हो, तो अमेरिका की कमजोरी तुरंत जाहिर होने लगी है।
हालांकि अमेरिका की सैन्य शक्ति अब तक मजबूत है, लेकिन अमेरिका के पास इतने ज्यादा विमान वाहक और मिसाइल का विन्यास करने के लिए काफी खर्च चाहिये। वित्तीय नींव के बिना अमेरिकी सेना का स्थान भी हिलाया जाएगा। वर्तमान में अमेरिका का ऋण स्तर 280 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जो इसके जीडीपी से 30 प्रतिशत अधिक है। हर अमेरिकी व्यक्ति के लिए 85,000 अमेरिकी डॉलर का भार वहन करना है। लेकिन आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए अमेरिका ने क्यू ई की नीतियां करना जारी किया, और इसके परीणामस्वरूप यू.एस. डॉलर का निरंतर मूल्यह्रास होने लगा है। 17 अगस्त को अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के आंकड़ों के अनुसार 30 देशों ने अमेरिकी ऋण बेचना शुरू किया है। इस साल जून तक रूस ने लगभग 96.43 प्रतिशत अमेरिकी ऋण बेच दिया है। अगस्त में, जापानी सरकार ने भी अपने पास के 34 प्रतिशत अमेरिकी ऋण बेच दिया। इससे यू.एस. बांड की कीमतों में उतार-चढ़ाव आएगा और डी-डॉलराइजेशन एक अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति बनेगा।
लेकिन ऋण की बिक्री से शायद अमेरिकी डॉलर के आधिपत्य को नहीं हिलाया जाएगा, क्योंकि अमेरिका स्विफ्ट इंटरनेशनल पेमेंट एंड क्लियरिंग सिस्टम को ²ढ़ता से नियंत्रित कर रहा है, जो विश्व व्यापार का महत्वपूर्ण तरीका है। पर अमेरिकी डॉलर के लिए वास्तविक खतरा आरोही डिजिटल मुद्रा है। शोध के आंकड़ों के अनुसार अभी तक 81 देशों के केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं को जारी करने की खोज कर रहे हैं, जिन का जीडीपी विश्व के 90 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी द्वारा शुरू किए गए निपटान तंत्र को भी एक दर्जन से अधिक यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा मान्यता दी गई है, जिसका अर्थ है कि यूरोपीय संघ अमेरिकी डॉलर से त्याग कर रूस व ईरान आदि के साथ व्यापार कर सकेगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अधिक देशों के तंत्र में शामिल होने से डॉलर आधिपत्य का अंत होगा।
हम जानते हैं कि अमेरिका का आधिपत्य मुख्य रूप से डॉलर के आधिपत्य से आधारित है। डॉलर की इमारत ढहने के बाद अमेरिका के हाथों में केवल विमान वाहक और मिसाइलें होंगी। हालांकि, परमाणु छड़ी न केवल अमेरिका के हाथ में है। यदि अमेरिका अन्य देशों के खिलाफ परमाणु हमला बोले, तो इसे भी विनाशक प्रहार का सामना करना पड़ेगा। साथ ही जैसे-जैसे अन्य देश प्रौद्योगिकी में आगे बढ़ते हैं, तब पारंपरिक सैन्य शक्ति में अमेरिका का वर्चस्व भी छोटा बन रहा है। वर्तमान में चीन और रूस आदि ने भी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान और सुपरसोनिक मिसाइल विकसित किए हैं, जिनकी कुछ तकनीक अमेरिका से कहीं अधिक है। यदि अमेरिका मनमानी से आधिपत्य वाली नीतियों का पालन करे, तो उसे निश्चित रूप से सख्ती दंडित किया जाएगा।
आज की दुनिया में सभी देश एक साझा भाग्य वाले समुदाय में रहते हैं। मानव जाति को आपसी परामर्श और सहयोग के ढ़ंग से आम चुनौतियों का समाधान करना चाहिये। आधिपत्य का कार्य अलोकप्रिय है और विश्व की जनता इसका विरोध करेगी। किसी भी देश, जो आधिपत्य की नीति का अनुसरण कर रहा है, को अपनी शैली को बदलना चाहिये, ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन प्राप्त कर सके और मानव जाति के लिए उज्जवल भविष्य की शुरूआत कर सके।
( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
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Source : IANS