जलवायु परिवर्तन के मंच पर चीन और भारत के सुर मिले
जलवायु परिवर्तन के मंच पर चीन और भारत के सुर मिले
बीजिंग:
जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के समक्ष खड़ी एक बड़ी चुनौती है, जिससे निपटना हर देश व क्षेत्र की जि़म्मेदारी है। यह भी देखने में आ रहा है कि कुछ पश्चिमी देश अपनी जि़म्मेदारी को उचित ढंग से नहीं निभा रहे हैं। हालांकि वे विकासशील देशों से इस संकट के हल के लिए बार-बार आह्वान करते हैं या फिर उन्हें इस बारे में पर्याप्त कदम न उठाने का दोष देते हैं, जबकि कार्बन उत्सर्जन व जलवायु को खराब करने में सबसे बड़े दोषी कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया हैं। इस संबंध में वर्ष 1850 के बाद से अब तक प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों की सूची जारी हुई है। इस रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि उक्त तीन देशों के अलावा रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, बेल्जियम, फिनलैंड व न्यूजीलैंड आदि उत्सर्जन फैलाने में आगे रहे हैं, पर चीन व भारत जैसे विकासशील देश इस मामले में बहुत पीछे हैं।जलवायु परिवर्तन संबंधी वेबसाइट कार्बन ब्रीफ द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1850 से 2021 के बीच अमेरिका का प्रति व्यक्ति संचयी कार्बन उत्सर्जन चीन के मुकाबले लगभग 8 गुना अधिक रहा है, जबकि भारत की तुलना में करीब 30 गुना ज्यादा। साथ ही अमेरिका का ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन का स्तर विश्व के कुल उत्सर्जन का 20 फीसदी है, जो सबसे अधिक है।
इस बीच भारत और चीन के बड़े नेताओं में कम से कम इस बात पर सहमति तो नजर आती है कि जलवायु परिवर्तन पर विकसित राष्ट्रों को अपनी जि़म्मेदारी निभानी चाहिए। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग जहां चीन द्वारा दिए जा रहे योगदान का उल्लेख करते रहे हैं, वहीं पश्चिमी देशों से आगे आकर इस संकट को दूर करने की अपील भी कर चुके हैं। उधर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वैश्विक नेताओं को संबोधित करते हुए ग्लासगो में कहा कि जैसे-जैसे दुनिया ग्रीन हाउस गैसों में कटौती करने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को बढ़ा रही है, अमीर देशों को अपना योगदान 100 बिलियन डॉलर सालाना से बढ़ाकर 1 ट्रिलियन डॉलर करने की जरूरत है, जिस पर वर्ष 2009 में सहमति बनी थी।
इतना ही नहीं चीन, भारत, क्यूबा और वेनेजुएला समेत समान विचारधारा वाले 25 विकासशील देशों की बैठक में समूह के सदस्यों से अपने हितों की रक्षा के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस अल्बटरे ने की।
इससे जाहिर होता है कि विकासशील देश, जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी जि़म्मेदारी तो समझते हैं, लेकिन वे विकसित राष्ट्रों के बेवजह आरोपों को सहने के लिए तैयार नहीं हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अमीर देशों को अपनी गलतियों का अहसास होगा।
(अनिल आजाद पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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