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भारत का सच्चा दोस्त कौन बनेगा ?

भारत का सच्चा दोस्त कौन बनेगा ?

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IANS
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(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

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आजकल अमेरिका के इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी तथा क्वाड जैसे विषयों पर मीडियाओं का निरंतर आकर्षण खींचा गया है। बेशक, तथाकथित इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी या क्वाड सब अमेरिका द्वारा चीन का सामना किया जाने के औजार हैं। इंडो-पैसिफिक रणनीति और इस के तहत दूसरे तंत्रों से कैसे निपटें, यह चीन-अमेरिका प्रतियोगिता में पक्षों का चयन करने का सवाल है। लेकिन, भारत के लिए कौन शत्रु है और कौन मित्र, यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

भारत में कुछ व्यक्तियों का मानना है कि चीन और भारत के बीच सीमांत विवाद हैं, जबकि अमेरिका चीन के खिलाफ काम कर भारत की मदद कर रहा है, इसलिए भारत को अमेरिकी खेमे में शामिल होना चाहिए। बेशक है कि चीन और भारत के बीच सीमा की समस्या मौजूद है, लेकिन यह विवाद कैसे पैदा हुआ था ? जब चीन गरीब और कमजोर था, तब चीन पर साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद ने क्रूरता से अत्याचार किया था। उस समय भारत पर शासन करने वाले ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने स्थानीय तिब्बती अधिकारियों को अवैध शिमला संधि पर हस्ताक्षर करने और मैकमोहन रेखा खींचने के लिए मजबूर करने का अवसर लिया था। लेकिन, पुराने चीन की सभी सरकारों ने इस अवैध सीमा रेखा को मान्यता देने से इनकार कर दिया, और न ही आजाद हुए नए चीन को। चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद, इसने अपने अधिकांश पड़ोसियों के साथ निष्पक्षता और तर्कसंगतता, आपसी समझ और सामंजस्य, और इतिहास के सम्मान के सिद्धांतों के आधार पर सीमा संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं। और चीन समान सिद्धांतों के आधार पर भारत के साथ सीमा मुद्दे को निपटाने के लिए भी तैयार है। हालांकि, भारत में कुछ लोगों ने, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से विरासत में मिली विचारधारा का पालन करते हुए, न केवल चीन से मैकमोहन रेखा को स्वीकार करने की मांग की, बल्कि चीन पर और अधिक अनुचित मांगें पेश कीं। यह निश्चित रूप से चीन के लिए अस्वीकार्य है, और यह चीन -भारत सीमा संघर्षों का मूल कारण भी है।

उधर कुछ भारतीय दोस्तों का मानना है कि अमेरिका और भारत दोनों लोकतंत्रीय प्रणाली को लागू करते हैं, इसलिए भारत और अमेरिका समान मूल्यों को साझा करते हैं। पर वास्तव में, ये लोग अमेरिका के स्वभाव को नहीं समझते हैं। अमेरिका शून्य से पैदा होने का देश नहीं है। उस समय जब ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने दुनिया के आधे से अधिक हिस्से पर शासन किया था, तब उन्होंने उत्तरी अमेरिका में रहने वाले रेड इंडिन्यस की बेरहमी से हत्या की थी, और उनकी जमीन पर लूट मारा था। इसके बाद, श्वेत उपनिवेशवादियों के एक समूह ने, जो लंदन के आदेशों का पालन करना जारी रखने के लिए तैयार नहीं थे, एक देश यानी संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना की थी। अमेरिका एक ऐसा देश है जो अपनी स्थापना के बाद से रक्त और आग के साथ रहा है। अपने 200 से अधिक वर्षों के इतिहास में, केवल 20 वर्षों के लिए अमेरिका युद्ध में शामिल नहीं हुआ। जब भी उसे लगता है कि अपने हितों को खतरा है, तो अमेरिका हमला करने से कभी नहीं हिचकता।

तो क्या अमेरिका भारत का मित्र हो सकता है? चीन को रोकने के नजरिए से ऐसा लगता है कि अमेरिका और भारत के बीच कुछ समान हित हैं। अमेरिका भारत के आर्थिक विकास की मदद करने और भारत को तकनीकी सहायता प्रदान करने का दावा कर रहा है। लेकिन, अमेरिका का सार शेर जैसे एक शिकारी है, उसे हमेशा मांस खाना और खून पीना पड़ता है, उधर विकासशील देश हमेशा इसके शिकार होते हैं। अमेरिका की समृद्धि, उसके शक्तिशाली हथियारों और डॉलर के वित्तीय आधिपत्य पर आधारित है, जिस पर वह दुनिया भर से संपत्ति लूट कर रहा है। जभी कोई देश का विकास अमेरिकी आधिपत्य को छूता है, तब तो अमेरिका इसके खिलाफ हर संभव कदमों से दबाव डालेगा। यह वर्तमान चीन-अमेरिका संघर्षों का मूल कारण है।

तो क्या चीन भारत का सच्चा दोस्त हो सकता है? चीन एक ऐसा देश है जो अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती के आधार पर मुक्त हुआ है और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की है। चीन हमेशा एक शांतिपूर्ण विदेश नीति अपनाता है और समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धांत के आधार पर अन्य देशों के साथ संबंधों का विकास करने को तैयार है। चीनी प्रधान मंत्री चाओ एनलाई और भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रसिद्ध पंचशीर सिद्धांतों की वकालत की थी। यह सच है कि नये चीन ने भी एक बार अमेरिकी आक्रमण का विरोध करने के लिए कोरिया युद्ध में भाग लिया, और भारत सहित पड़ोसी देशों के साथ सीमा संघर्ष भी किया। हालाँकि, चीन ने जो युद्ध किया, वह साम्राज्यवादी देशों के आक्रमणकारी युद्धों से पूरी तरह से अलग है। चीन ने अन्य देशों की भूमि पर आक्रमण नहीं किया, और चीन अपने पड़ोसी देशों को सैन्य धमकी कभी नहीं दी।

चीन और अमेरिका में कौन हो सकता है भारत का सच्चा दोस्त? और कौन भारत के साथ-साथ शांति की राह पर चल सकेगा? यह कुछ भारतीय व्यक्तियों द्वारा गंभीरता से विचार करने योग्य प्रश्न है। किसी भी देश का मूल्यांकन करने में उसके इतिहास और सार को देखना पड़ता है। चीन ने हमेशा शांतिपूर्ण सहयोग की विदेश नीति का पालन किया है। बिना पक्षपात के देखें, तो यह स्वीकार करना होगा कि न तो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल और न ही अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ चीन के मैत्रीपूर्ण सहयोग ने भारत के हितों को थोड़ा भी खतरा दिया है। चीन भारत के साथ मिलकर समान विकास की राह पर चलने को तैयार है। उधर अमेरिका भी शांति का दावा कर रहा है, लेकिन वह पूरी दुनिया में सैन्य ठिकाने क्यों रखते हैं? उसके विमानवाहक क्यों दुनिया के सभी महासागरों पर घूमते रहे हैं? वह डॉलर के आधिपत्य के सहारे पूरी दुनिया की संपत्ति को नियमित रूप से क्यों लूट करता है? सतह पर, भारत और अमेरिका में एक ही प्रणाली है, लेकिन संक्षेप में, भारत और अमेरिका साथी यात्री नहीं हैं। किसके साथ दोस्ती करनी है, और किसके साथ एक ही राह पर चलता है, यह एक ऐसा निर्णय है जिसे बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है !

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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Source : IANS

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