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अमेरिका क्यों मौजूद है?

अमेरिका क्यों मौजूद है?

Updated on: 31 Aug 2021, 06:40 PM

बीजिंग:

हाल में खाबुल हवाई अड्डे पर हुए हादसे ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा है। सैकड़ों लोगों की जान चली गई। हालांकि, इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि आतंकवादी बमबारी के पीड़ितों की तुलना में, अमेरिकी सैनिकों द्वारा गोलीबारी से अधिक हताहत जन्म की गयी हैं! खुद को बचाने के लिए अमेरिकी सेना ने काबुल हवाई अड्डे पर भीड़ पर बेरहमी से गोली चलाने से नहीं हिचकिचाया, और बड़ी संख्या में निर्दोश नागरिकों को मारने में भी संकोच नहीं किया!

इधर के वर्षों में अमेरिका द्वारा किये गये युद्धों का सिंहावलोकन करते हुए, चाहे मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका या कहीं और, अमेरिकी सेना द्वारा मारे गए नागरिकों की संख्या हमेशा तथाकथित आतंकवादियों या तानाशाही से अधिक रही है। काबुल हवाई अड्डे की घटना एक अकेला साक्ष्य नहीं है। इसी तरह के उदाहरणों में कोसोवो बमबारी में मारे गए नागरिक, इराक में आतंकवाद विरोधी अभियानों में अमेरिकी विमान के बम विस्फोटों द्वारा नष्ट किए गए कई खंडहर और बेघर नागरिक सब शामिल हैं। सीरियाई युद्ध के दौरान अमेरिकी सैन्य मिसाइलों ने बड़ी संख्या में नागरिकों और उनके घरों को नष्ट किया। यहां तक कि जापान, जो अमेरिका का मित्र देश है, में स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों में भी अमेरिकी सिपाहियों द्वारा गोली मार दी गई और बलात्कार किये गये पीड़ितों की भी बड़ी संख्या है। विदेशों में अमेरिकी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों के प्रति हम यह पूछते हैं: अमेरिकी सरकार कैसा शासक है? इसे निर्दोश नागरिकों के जीवन की परवाह क्यों नहीं है?

अमेरिका को लोकतंत्र के प्रकाशस्तंभ के रूप में कहा जा रहा है, और अमेरिकियों का मानना है कि वे भगवान के चुने हुए हैं। राष्ट्रपति लिंकन के लोगों के लिए, लोगों के द्वारा और लोगों के के नारे ने दुनिया भर को उत्सुक बना दिया था। लेकिन अमेरिका वास्तव में कैसा दिखता है? दुनिया भर में फैली न्यू कोरोना वायरस महामारी के कारण लोगों की नजरों में एक अजीब अमेरिका दिखने लगा है। संक्रमणों की संख्या 38 मिलियन से अधिक हो गई है, और मौतों की संख्या 6.4 लाख तक हो गई है। अमेरिका ने, जिसके पास दुनिया में सबसे पर्याप्त चिकित्सा प्रणाली है, महामारी-विरोधी कोशिशों में निरंतर विफल रहने के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों और वैक्सीन कच्चे माल के मामले में स्वार्थी प्रथाओं को अपनाया है। एक ओर, अमेरिका के मध्यम और निम्न वर्ग के लोग महामारी की स्थिति में अपनी जान नहीं बचा सकते हैं, पर दूसरी ओर सरकार उचित महामारी विरोधी उपाय करने से इनकार करती है। इन सबके सामने लोगों के लिए गुस्से वाले सवालों को दबाना मुश्किल है: यह कैसी व्यवस्था है? यह किस लिए है? यह पूंजीगत लाभ के उद्देश्य के लिए है या मानव जीवन?

राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक बार अमेरिकन फस्र्ट का नारा बुलंद किया था। हालांकि, वर्तमान महामारी में लोगों ने साफ तौर पर देखा है कि किन किन लोगों को फस्र्ट या प्राथमिकता दी गयी है। अमेरिका का दुनिया में चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश है। अमेरिकी दवा कंपनियों ने दुनिया के आधे से अधिक दवा अनुसंधान और विकास का संचालन किया है और अधिकांश नई दवाओं के बौद्धिक संपदा अधिकार हैं। लेकिन इस देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं गंभीर रूप से पिछड़े हैं और मध्यम व निम्न वर्गों को कवर करने वाली बुनियादी चिकित्सा सेवाएं प्राप्त नहीं हैं। चिकित्सा देखभाल पर बड़ी पूंजी के एकाधिकार ने अमेरिका में निजी चिकित्सा देखभाल पर चिकित्सा व्यय की एकाग्रता को जन्म दिया है। दूसरे शब्दों में, अमेरिकी चिकित्सा प्रणाली अमीरों के लिए तैयार है।

अमेरिकी राजनेताओं का कहना है कि किसी देश के अस्तित्व का अर्थ प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और हितों की समान रूप से रक्षा करना है। हालांकि महामारी में, अमेरिका में कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं ने बुनियादी स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए मध्यम और निम्न वर्गों की संभावना को सीमित कर दिया, जो अमेरिका में उच्च मृत्यु दर का एक महत्वपूर्ण कारण है। यह पूंजी है जो अमेरिकी चिकित्सा प्रणाली में हेरफेर करती है। इसका उद्देश्य लोगों के लिए नहीं, बल्कि लाभ के लिए है। यह महामारी से लड़ने में अमेरिका की विफलता का मूल कारण है। उदाहरण के लिए, मार्च 2020 के बाद से अमेरिका में जॉनसन एंड जॉनसन और फाइजर जैसी प्रमुख कंपनियों के शेयर की कीमतों ने ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाए हैं। इनमें से, फाइजर की 2021 में परिचालन आय में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 68.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत श्रमिकों और गिरते मध्यम वर्ग को कठिनाई से गुजरना है और महामारी और आर्थिक मंदी का शिकार बनना है।

अमेरिका में जो निर्णय लेती है, वह वास्तव में मतदाताओं की इच्छा नहीं है, पर पूंजी का एकाधिकार है। पूंजी का एकाधिकार न केवल बाजार है, बल्कि इसके पीछे राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण भी है। अमेरिकी हित समूहों ने महामारी के प्रति अमेरिकी सरकार की नीति को काफी हद तक प्रभावित किया है। दोनों पार्टियों के अमेरिकी राजनेताओं द्वारा प्रस्तावित महामारी विरोधी उपाय पूंजी समूहों के हितों पर आधारित हैं। सरकार के पूंजी पहले तर्क के तले राज्य प्रणाली की कमजोरियों को बदलने की इच्छा या क्षमता नहीं है। पूंजी सब कुछ से ऊपर है की प्रणाली देश की घरेलू और विदेशी नीतियों को निर्धारित करती है।

न्यू कोरोना वायरस महामारी ने दुनिया को अमेरिका के चेहरे की पहचान करा दी है। अमेरिका अब एक ऐसा देश होने का दावा नहीं कर सकता है जो लोगों के लिए है, लेकिन अगर इस शब्द लोगों को पूंजी से बदल दिया जाए, तो सब कुछ समझना आसान है। ऐसी व्यवस्था न तो दुनिया के लोगों के लिए फायदेमंद है और न ही अमेरिका के मध्यम और निम्न वर्ग को। जो इससे लाभान्वित होते हैं, वे ही अमेरिका के अधिकार पिरामिड के शीर्ष पर बैठने वाले हैं! हालांकि, जो अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका फिर भी बिना कोई हिचकिचाहट के साथ विकल्प करेगा, जिसमें विदेशी युद्ध शुरू करना या अन्य देशों और अपने देश लोगों के जीवन का बलिदान करना शामिल है। यही है अमेरिका!

(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

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