न्याय व बुराई की सीमा पर चल रहे हैं एंथोनी फौसी
न्याय व बुराई की सीमा पर चल रहे हैं एंथोनी फौसी
बीजिंग:
आपको शायद अमेरिका के व्हाइट हाऊस में आयोजित महामारी ब्रीफिंग में इस बुजुर्ग व्यक्ति की याद आ सकती है। जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह बोला कि लोग कीटनाशक पीने या उसका इंजेक्शन लगाने से कोविड-19 वायरस को खत्म किया जा सकता है। तो इस बुजुर्ग ने बेबस नजर डाल दी। ठीक है, वे तो एंथोनी फौसी हैं। वे अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं, अमेरिकी राष्ट्रीय एलर्जी और संक्रामक रोगों के अनुसंधान प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हैं, और हवाई हाऊस के महामारी विशेष कार्य दल के महत्वपूर्ण सदस्य भी हैं।अभी तक फौसी ने छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों को सेवाएं दी हैं। उन्हें राष्ट्रपति स्वतंत्रता मेडल मिल चुका है, जो विज्ञान, संस्कृति, खेल और सामाजिक गतिविधियों आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले अमेरिकी आम लोगों के लिए सबसे बड़ा सम्मान है। उनके अलावा उन्हें अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान मेडल , लोक सेवा के लिए मैरी वुडार्ड लास्कर पुरस्कार, चिकित्सा और जैव चिकित्सा अनुसंधान में अल्बानी मेडिकल सेंटर पुरस्कार आदि पुरस्कार मिल चुके हैं। हालांकि वे अनगिनत वैज्ञानिक शोधों से जुड़े रहे हैं, लेकिन कोविड-19 महामारी ने उन्हें एक अजीब स्थिति में डाल दिया है।
वर्ष 2020 में जब कोविड-19 महामारी का प्रकोप अमेरिका में फैलने लगा, तो उनके और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के बीच कई मुद्दों पर मतभेद नजर आए। अमेरिकी मीडिया न्यूयार्क टाइम्स को विशेष इन्टरव्यू देते समय फौसी ने खुले दिल से कहा कि ट्रंप सरकार की सेवा देने के दौरान उनकी चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती रही। दोनों के बीच विचारों का टकराव न्यूयार्क में कोविड-19 के पुष्ट मामलों की संख्या में तेज वृद्धि होने के बाद शुरू हुआ। फौसी ने ट्रंप को स्थिति की गंभीरता बताने की बड़ी कोशिश की, लेकिन ट्रंप ने हमेशा इसे कम करना चाहा। उदाहरण के लिये ट्रंप ने अकसर यह कहा कि स्थिति इतनी गंभीर नहीं, है न? लेकिन उस समय फौसी ने सीधे जवाब दिया कि हां जी, स्थिति तो ऐसी गंभीर हो गयी है। बाद में दोनों के बीच अंतर्विरोध ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट बन गये। क्योंकि फौसी के विचार में व्हाइट हाउस द्वारा आयोजित न्यूज ब्रीफिंग को विज्ञान के आधार पर जनता के स्वास्थ्य के लिये लाभ देना चाहिये। लेकिन ट्रंप तथा उनके साथियों के बयान वैज्ञानिक वास्तविकता के बिलकुल विपरीत हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद ट्रंप चले गये, और जो बाइडेन राष्ट्रपति बने। फौसी के चेहरे पर खोई-सी मुस्कान फिर आ गयी। उस समय उन्होंने यह सोचा था कि आखिर वे वैज्ञानिक ²ष्टि से न्याय के लिये आवाज दे सकेंगे। लेकिन उन्हें पता नहीं था कि अमेरिका सरकार का सिद्धांत यह है कि राजनीतिक लाभ हमेशा विज्ञान के ऊपर है। जैसे कोविड-19 वायरस के स्रोत मामले पर अमेरिकी राजनीतिज्ञों ने सबसे पहले वायरस प्रयोगशाला रिसाव से फैला की आवाज विश्व की हर कोने पर पहुंचायी। फिर उन्होंने वुहान वायरस अनुसंधान प्रतिष्ठान को इस आवाज से जोड़ दिया, और चीन को बदनाम किया।
इस मामले में फौसी ने पहले से स्पष्ट रूप से अपना विचार प्रकट किया था कि इस वायरस को कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता। क्योंकि उनका रुख अमेरिकी राजनीतिक सोच के विपरीत है। इसलिये अमेरिकी राजनीतिज्ञों ने बारी बारी उन पर हमला किया। चीन को बदनाम करने और चीन के विकास को रोकने में अमेरिका सरकार फौसी का बलिदान कर सकती है। वे या तो सहयोग करेंगे या गायब हो जाएंगे। इतने बड़े राजनीतिक दबाव में फौसी को बेसब्री से अपनी रक्षा करनी पड़ती है। फिर लोगों ने यह देखा कि कोविड-19 वायरस के स्रोत के प्रति फौसी के बयान में ऐसा बदलाव हुआ है कि सबसे पहले वायरस प्रकृति से आया है, फिर किसी भी संभावना से इंकार नहीं कर सकते, और अंत में वायरस शायद प्रयोगशाला से आ सकता है।
वास्तव में फौसी के मन में यह बात बहुत स्पष्ट है कि अमेरिका में वायरस का स्रोत मामला एक वैज्ञानिक मामला नहीं है, वह तो बहुत पहले से एक राजनीतिक मामला बन चुका है। एक पक्ष में फौसी गंदी अमेरिकी राजनीति में फंसकर एक राजनीतिक जोकर नहीं बनना चाहते, और अपनी व्यावसायिकता व नैतिकता को नहीं छोड़ना चाहते। पर दूसरी तरफ उन्हें चिंता है कि वे अमेरिका-चीन संघर्ष में बलि का बकरा बन सकते हैं। न्याय व बुराई की सीमा पर चल रहे फौसी के मन से केवल यह वाक्य निकला मुझे बहुत दर्द हो रहा है।
( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
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