मालदीव न्यूज नेटवर्क के वरिष्ठ संपादक हमदान शकील ने 23 जुलाई को कोरोना वायरस महामारी : नस्लवाद, जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने और महामारी का राजनीतिकरण शीर्षक लेख प्रकाशित किया, जिसमें बताया गया कि पश्चिमी देश कोरोना के स्रोत की खोज का राजनीतिकरण कर रहे हैं, जिसका मतलब तथ्यों को विकृत करना और चीन पर जिम्मेदारी थोपना है।
शकील ने कहा कि कोरोना महामारी फैलने के बाद झूठी सूचनाओं के प्रसार के कारण, एशिया, विशेष रूप से चीन पर वायरस के प्रसार के अपराधी होने का आरोप लगाया गया। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने इसे ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। वुहान प्रयोगशाला रिसाव कथन को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने चीन विरोधी एजेंडे के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया था। और बाद में कई अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और मीडिया ने इसे एक साजिश बताते हुए इसकी निंदा की। कुछ पश्चिमी देश वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव डाल रही कोविड-19 महामारी को खत्म करने में शक्ति नहीं लगा रहे हैं और वैज्ञानिक तरीके से वायरस के स्रोत की खोज भी नहीं कर रहे हैं। इसके बजाय, वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर झूठ फैलाने के जरिए चीन पर जिम्मेदारी थोपने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के साथ एक अत्यधिक विशिष्ट और सम्मानित अनुसंधान संस्थान है और इसकी बेहद कम संभावना है कि वायरस इस प्रयोगशाला से आया हो। पश्चिम में लंबे समय से मौजूद नस्लवाद ने चीन के खिलाफ सभी प्रकार की नकारात्मक टिप्पणियों को जन्म दिया है। और इन विचारों ने वायरस के स्रोत का पता लगाने के मामले में चीन के खिलाफ आरोपों को बढ़ावा दिया।
उनका मानना है कि कोरोना वायरस के स्रोत का पता लगाने पर अनुसंधान आसान नहीं है। वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में एचआईवी, इबोला और अन्य वायरस के स्रोतों का अध्ययन करने में कई साल बिताए हैं, और अभी भी वे इनके परिणामों को लेकर सहमत नहीं हैं। लेकिन इन तथ्यों से जाहिर है कि वायरस के स्रोत की खोज एक वैज्ञानिक कार्य है, और कोरोना वायरस के स्रोत की खोज का राजनीतिकरण करना निस्संदेह भविष्य में इस तरह की महामारी से लड़ने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों में बाधा डालेगा।
(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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Source : IANS