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शांघाई सहयोग संगठन के ढांचे के तहत अफगानिस्तान की स्थिरता कायम करें

शांघाई सहयोग संगठन के ढांचे के तहत अफगानिस्तान की स्थिरता कायम करें

Updated on: 20 Aug 2021, 09:20 PM

बीजिंग:

हाल में अफगान स्थितियों के परिवर्तन पर विश्व का ध्यान आकर्षित किया गया है। क्योंकि अफगान स्थितियों के विकास से आसपास के सभी देशों के हितों को सीधा प्रभाव पड़ेगा। इस के प्रति विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और पश्चिमी ताकतों के जबरन हस्तक्षेप की तुलना में, अफगानिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन के ढांचे के तहत शांति और स्थिरता कायम कराना अधिक उपयुक्त है।

2001 में स्थापित शंघाई सहयोग संगठन का उद्देश्य क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना और संयुक्त रूप से आतंकवाद का मुकाबला करना है। लेकिन यह इस वर्ष भी था कि अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी के बहाने अफगानिस्तान में युद्ध शुरू किया। अब जबकि बीस साल बीत चुके हैं, काबुल हवाई अड्डे से भागने के अराजकता की ²श्य ने अमेरिका की अफगानिस्तान नीति की पूर्ण विफलता की घोषणा की है! उधर शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ ने क्षेत्रीय संघर्षों और आतंकवाद विरोधी अभियानों को हल करने में लगातार सकारात्मक परिणाम हासिल किए हैं। वर्तमान में, भारत और पाकिस्तान की तरह अफगानिस्तान भी शंघाई सहयोग संगठन का एक आधिकारिक सदस्य है। हाल के वर्षों में, शंघाई सहयोग संगठन ने क्षेत्रीय संघर्षों में मध्यस्थता करने, शांतिपूर्ण विकास को बढ़ावा देने और आतंकवादी ताकतों का मुकाबला करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अफगानिस्तान में स्थितियों का विकास जारी है। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने तालिपान की सर्वसम्मत निंदा की। लेकिन चीन और रूस आदि देशों ने आशा जतायी है कि अफगानिस्तान में स्थिति को जल्द से जल्द स्थिर करने के लिए शांतिपूर्वक बातचीत की जाएगी। उधर अफगान तालिबान ने एक नए देश की स्थापना की घोषणा की है। तालिबान के वरिष्ठ नेता हाशिमी ने 18 तारीख को जारी एक साक्षात्कार वीडियो में कहा कि अफगानिस्तान कभी भी पश्चिमी व्यवस्था को नहीं अपनाएगा, लेकिन तालिबान कोई युद्ध या दुश्मन भी नहीं चाहता। अफगानिस्तान एक समावेशी नई सरकार की स्थापना करेगा और देश में शांति के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है।

यह एक सकारात्मक संकेत है। किसी भी देश की सरकार के लिए, शासन की वैधता अपने ही लोगों के हितों को बढ़ावा देने से आती है। विभिन्न देशों के अलग-अलग इतिहास और राष्ट्रीय परिस्थितियाँ हैं, और अन्य देशों पर अपना मॉडल जबरन थोपने का कई सफल उदाहरण नहीं है। पिछले 20 वर्षों में, अफगानिस्तान में संसदीय लोकतंत्र को लागू करने के लिए अमेरिका के प्रयास पूरी तरह से विफल रहे हैं, और अफगान लोग अभी भी दुनिया के सबसे गरीब और पिछड़े राज्य में हैं। 2 मिलियन से आम आदमी मारे गए, और अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी और अंतहीन युद्धों में यातनाएं सहन करना पड़ता है। इसलिए, जितनी जल्दी हो सके शांति और स्थिरता प्राप्त करके और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करके ही यह वास्तव में सभी पक्षों के हितों के अनुरूप हो सकता है। अगस्त की शुरूआत में अफगानिस्तान पर हुई दोहा बैठक में चीन, अमेरिका, रूस और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने अपना अपना रुख व्यक्त किया। उधर तालिबान के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने चीन, रूस और अन्य प्रमुख पड़ोसी देशों का भी दौरा किया। चीनी पक्ष ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन अफगानिस्तान को राष्ट्रीय सुलह हासिल करने, लोगों की आजीविका को बढ़ावा देने और अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद करने की उम्मीद करता है। साथ ही आतंकवादी ताकतों के लिए कोई जगह नहीं देनी चाहिये।

ध्यान रहे कि तालिबान अब वही तालिबान नहीं है जो 20 साल पहले का था। विदेशी ताकतों के जबरन हस्तक्षेप के बिना, अफगानिस्तान ईरान जैसे देश के रूप में विकसित हो सकता है, जो अपने धार्मिक प्रभाव के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकता है। और इसी प्रक्रिया में एससीओ अहम भूमिका निभा सकता है। हाल के दिनों में, पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान से अपने दूतावासों को निकाल दिया है, लेकिन चीन, रूस और शंघाई सहयोग संगठन के अन्य सदस्य देशों ने ऐसा नहीं किया है। तालिबान ने काबुल में चीनी और रूसी दूतावासों के लिए भी सख्त सुरक्षा उपाय अपनाए। अफगानिस्तान के आसपास के सभी क्षेत्र एससीओ के सदस्य देश हैं। इसलिये अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थिति को रोकने के ²ष्टिकोण से हो, या शरणार्थियों की आमद, चरमपंथी ताकतों की घुसपैठ, या पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के ²ष्टिकोण से हो, एससीओ के ढांचे में अफगानिस्तान में स्थिरता हासिल करने का प्रयास करना सबसे उपयुक्त है।

अफगानिस्तान की स्थिति के प्रति भारत में तेज प्रतिक्रिया नजर आ रही है। भारत को डर है कि तालिबान की शक्ति मध्य एशिया में चरमपंथी ताकतों के उदय को बढ़ावा देगी, और उसे यह भी डर है कि अफगानिस्तान में भारत का अरबों डॉलर का निवेश व्यर्थ हो जाएगा। भारतीय पक्ष के संदेह के जवाब में, तालिबान के आधिकारिक प्रतिनिधि सोहेल शाहीन ने 18 तारीख को कहा कि तालिबान अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे निर्माण पर विदेशी निवेश का स्वागत करता है। उधर भारत ने अफगानिस्तान में बड़ी मात्रा में बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश किया है, और भारत की दीर्घकालिक योजना में अफगानिस्तान के क्षेत्र में एक तेल और गैस पाइपलाइन का निर्माण भी शामिल था। हालांकि, सभी बुनियादी ढांचे का सुचारू संचालन शांति पर निर्भर करता है। अफगानिस्तान भूमिगत संसाधनों से समृद्ध देश है। यदि अफगानिस्थान को जल्द से जल्द स्थिर किया जा सकता है, तो जल्द ही बुनियादी ढांचे का निर्माण सही रास्ते पर होगा। भारत और अफगानिस्तान, जो दोनों शांघाई सहयोग संगठन के सदस्य देश हैं, इससे लाभान्वित हो सकते हैं।

( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )

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