तिब्बत में तथाकथित मानवाधिकार का मुद्दा कुछ पश्चिमी लोगों द्वारा प्रचार का विषय रहा है। उनके विवरण में तिब्बत में कोई मानवाधिकार नहीं है। लेकिन वास्तव में, तिब्बत में सभी जातीय समूहों के लोगों को देश के दूसरे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तरह ही अपने स्वयं के मामलों के स्वामी होने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। तिब्बती लोगों के धार्मिक विश्वास का भी पूरी तरह से संरक्षण किया गया है। ऐतिहासिक ²ष्टिकोण से, तिब्बती लोग अभूतपूर्व और व्यापक मानवाधिकारों का आनंद ले रहे हैं।
13वीं सदी में युआन राजवंश के समय से ही तिब्बत को केंद्र सरकार के अधीन में रखा गया था। लेकिन पुराने तिब्बत के काल में वहां सामंती भू-दास की व्यवस्था लागू की गयी थी। और सर्फ मालिक के वर्ग, जो कि जनसंख्या में केवल 5 प्रतिशत भाग रहता था, के पास तिब्बत में अधिकांश कृषि योग्य भूमि, चरागाह, जंगल और पशुधन का स्वामित्व था। उधर 90 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले सफीं के पास लगभग कुछ भी नहीं था, और उन्हें सामंती प्रभुओं की तरफ से क्रूर दंड का सामना करना पड़ा था। यह कहा जा सकता है कि पुराने तिब्बत में दुनिया में मानवाधिकारों के सबसे गंभीर उल्लंघन किया गया था। तिब्बती ऐतिहासिक अभिलेखागार के आधिकारिक दस्तावेजों के संकलन में संरक्षित ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह देखा जा सकता है कि पुराने तिब्बत में, सफीं को बिल्कुल भी इंसान नहीं माना जाता था और उनके पास कोई अधिकार नहीं था। सन 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति होने के बाद तिब्बती लोगों को एक नया जीवन मिला। खासकर लोकतांत्रिक सुधार के बाद से, तिब्बत में भूदासत्व को समाप्त कर दिया गया और क्षेत्रीय जातीय स्वायत्तता को लागू किया गया। सभी जातीय समूहों के लोगों को राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और समाज में समान अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त है। तिब्बती लोगों के जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता में सुधार जारी है, उनकी स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार जारी है, और औसत जीवन प्रत्याशा का विस्तार जारी है।
उत्तरजीविता और विकास प्राथमिक मानव अधिकार हैं। शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद से बीते 70 वर्षों में तिब्बत में गरीबी की समस्या को पूरी तरह से हल कर दिया गया है, और तिब्बती लोगों ने भी समृद्ध जीवन के प्रारंभिक विकास लक्ष्य को प्राप्त किया है। 2019 के अंत तक, तिब्बत में सभी 6.2 लाख गरीब लोगों को गरीबी से मुक्त कराया गया है और तिब्बत में ऐतिहासिक रूप से पूर्ण रूप से गरीबी की समस्या को समाप्त कर दिया गया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद से तिब्बत में आर्थिक और सामाजिक विकास और मानवाधिकार की स्थितियां इतिहास के सबसे अच्छे दौर में प्रवेश होने लगी हैं। तिब्बती लोगों के जीवन स्तर में लगातार सुधार हो रहा है। इसके अलावा, देश के विकसित क्षेत्रों की तुलना में तिब्बत नई तकनीकों के उपयोग के मामले में पिछड़ा नहीं है। आज तिब्बती लोग अन्य चीनी विकसित शहरों के लोगों की तरह ही उत्पादन और जीवन में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं, और यहां तक कि दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में भी मोबाइल संचार बेस स्टेशन और ई-कॉमर्स सेवा नेटवर्क स्थापित हो चुके हैं। किसी भी समाज में विकास का मूल उद्देश्य आदमी ही है और तिब्बत में सबसे बड़ा परिवर्तन भी आदमियों पर नजर आया है। आज, तिब्बती लोग अपने भाग्य के स्वामी और सामाजिक धन के निर्माता और उपयोगकर्ता बन गए हैं।
तिब्बती लोग अच्छी तरह जानते हैं कि तिब्बत में सभी विकास और प्रगति को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और केंद्र सरकार के मजबूत नेतृत्व और समर्थन से अलग नहीं किया जा सकता है। 1951 में केंद्र सरकार ने तिब्बती लोगों की इच्छा के अनुसार तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार करने का फैसला कर लिया। लाखों सर्फ़ों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त की। यह तिब्बत के इतिहास में एक युगांतरकारी महान परिवर्तन माना जाता है। संविधान के अनुसार, तिब्बती लोग देश के सभी जातीय समूहों के लोगों की तरह कानून द्वारा निर्धारित सभी राजनीतिक अधिकारों का आनंद लेते हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में सभी नागरिक, जो 18 वर्ष की आयु तक पहुंच चुके हैं, को मतदान करने और चुने जाने का अधिकार है। वे सीधे तौर पर अपने जिले के जन प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जो राष्ट्र, प्रांत और नगर स्तरीय जन प्रतिनिधि सभा के सदस्यों का चुनाव करते हैं। तिब्बती लोगों को अपने राजनीतिक अधिकारों का बेहतर प्रयोग करने में सक्षम बनाने के लिए, सरकार तिब्बती जातीय कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण को भी बहुत महत्व देती है। वर्तमान में, तिब्बत में सभी स्तरों की सरकारों, न्यायालयों और अभियोजकों के मुख्य अधिकारी सभी तिब्बती जातीय के हैं। इसके अलावा, तिब्बती पारंपरिक संस्कृति की रक्षा और विरासत के रूप में मिलने के लिए, सरकार ने तिब्बती धार्मिक दस्तावेजों के संरक्षण और प्रकाशन को भी भारी वित्त पोषित किया है। और तिब्बती महाकाव्य राजा गेसर और अन्य पारंपरिक संस्कृति को अध्ययन करने के लिए विशेष संगठनों की स्थापना भी की गयी है। पूरे तिब्बत में मुफ्त शिक्षा लागू की गयी है, और प्राइमरी स्कूस से लेकर कॉलेज तक तिब्बती छात्रों के लिए सभी खचरें का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है।
तिब्बत की वास्तविकता ने यह बता दिया है कि तिब्बती लोगों को सामंती भू-दास व्यवस्था से छुटकारा मिलने के बाद अभूतपूर्व और व्यापक मानव अधिकार प्राप्त हो गया है। कोई भी इस तथ्य को अस्वीकृत नहीं कर सकता है कि पुराने तिब्बत के काल की तुलना में आज तिब्बत में मानवाधिकार की लम्बी छलांग हो गयी है। लेकिन दलाई गुट और चीन विरोधी ताकतों ने जानबूझकर भू-दास व्यवस्था के युग के अंधेरे, बर्बरता और क्रूरता को नजरअंदाज कर दिया है। उनका उद्देश्य चीन में अराजकता पैदा करने, चीन को विभाजित करने और अंतत: चीन का पतन करने की अपनी कुआकांक्षा को साकार करना है। तिब्बत में तथाकथित मानवाधिकारों का मुद्दा इसी में निहित है।
( साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )
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Source : IANS