हर साल 17 नवंबर को विश्व समय पूर्व जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों से समयपूर्व जन्म पर ज्यादा ध्यान देने, संबंधित अध्ययन को मजबूत करने और कारगर कार्रवाई करने की अपील की, ताकि समय से पहले पैदा हुए शिशुओं की स्वास्थ्य समस्याएं व मृत्यु दर को कम किया जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 1.5 करोड़ शिशु समय से पहले पैदा होते हैं, जो 37 सप्ताह के गर्भ को पूरा करने में विफल होते हैं। उनमें दस लाख शिशुओं की मृत्यु समय से पहले जन्म संबंधी जटिलताओं के कारण हो जाती है। समय से पहले जन्म नवजात मृत्यु का प्रमुख कारण है।
शोध के अनुसार भले ही समय से पहले जन्म लेने वाले कई बच्चे भाग्यशाली होते हैं, जो जीवित बच जाते हैं, फिर भी उन्हें सीखने की अक्षमता और ²ष्टि और सुनने की समस्याओं सहित आजीवन अक्षमताओं का सामना करना पड़ता है। नवजात शिशु की जान नाजुक होती है और समय से पहले प्रसव इसे और भी कमजोर बना देता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार हालांकि 60 प्रतिशत समयपूर्व जन्म के मामले अफ्ऱीका व दक्षिण एशिया में आते हैं। लेकिन वह सचमुच एक वैश्विक मामला है। सबसे अधिक समय से पहले जन्म लेने वाले देशों में ब्राजील, भारत, चीन, नाइजीरिया और अमेरिका आदि देश शामिल हैं। आइए हम हाथ में हाथ डालकर उन समय से पहले आए नन्हे स्वर्गदूतों की देखभाल करें।
भारत के पड़ोसी देश चीन में दूसरे बच्चे की नीति के व्यापक रूप से लागू करने के साथ न केवल द्वितीय-बाल अर्थव्यवस्था और जनसांख्यिकीय लाभांश पर लोगों का ध्यान केंद्रित हुआ है, बल्कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य भी एक अभूतपूर्व रणनीतिक ऊंचाई तक पहुंचा है।
चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन आयोग ने औपचारिक तौर पर समय से पहले जन्म (शिशु) हस्तक्षेप अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया, जो मातृ व शिशु स्वास्थ्य योजना का एक हिस्सा है। साथ ही सामाजिक सहायता बल और सामाजिक कल्याण ने भी इस कार्य में भाग लिया। जिससे समाज के विभिन्न जगतों ने समयपूर्व जन्म की स्थिति और समय से पहले जन्मे बच्चों के परिवारों पर ज्यादा ध्यान दिया। ताकि समय से पहले जन्मे शिशुओं की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सके, उन शिशुओं की मृत्यु दर कम की जा सके, और जनसंख्या की वृद्धि को प्राप्त करते हुए जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।
(चंद्रिमा - चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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Source : IANS