जबरदस्ती कूटनीति कोई और नहीं, बल्कि अमेरिका ने पेश किया
जबरदस्ती कूटनीति कोई और नहीं, बल्कि अमेरिका ने पेश किया
बीजिंग:
अमेरिकी अधिकारियों ने लिथुआनिया के खिलाफ चीन के वैध जवाबी उपायों को सार्वजनिक रूप से जबरदस्ती कूटनीति के रूप में बार-बार गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। यह अमेरिका द्वारा लिथुआनियाई सरकार का समर्थन करने और चीन के नियंत्रण के लिए थाईवान के इस्तेमाल को सहयोग करने के लिए एक राजनीतिक साजिश है। चीन के खिलाफ जबरदस्ती कूटनीति का इस्तेमाल करने से अमेरिका की प्रवचन बदमाशी का पाखंड और छल दिखता है।वर्तमान में चीन-लिथुआनिया संबंध संकट में हैं, और यह बहुत स्पष्ट है कि क्या सही है और क्या गलत। लिथुआनिया की सरकार ने विश्वासघात किया और एक-चीन सिद्धांत को नष्ट किया, उसका अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने व्यापक रूप से विरोध किया। लेकिन अमेरिका ने राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए चीन के वैध उपायों को जबरदस्ती कूटनीति के रूप में करार दिया, जो चोर द्वारा चोर को पकड़ने के लिए चिल्लाने जैसी बात है।
इतिहास में पीछे मुड़कर देखें, तो यह पता लगाना मुश्किल नहीं है कि जबरदस्ती कूटनीति अमेरिका का पेटेंट है। इस अवधारणा का मूल बल, राजनीतिक अलगाव, आर्थिक प्रतिबंध, तकनीकी नाकाबंदी आदि तरीकों का उपयोग कर दूसरे देशों को अमेरिका की मांगों का पालन करने के लिए मजबूर करना है, ताकि अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके और अमेरिकी शैली के आधिपत्य को बनाए रखा जा सके। इन वर्षों में अमेरिका ने बार-बार की जाने वाली कार्रवाइयों के माध्यम से दुनिया को जबरदस्ती कूटनीति का एक उत्कृष्ट मामला प्रदान किया है।
अमेरिका के लिए जबरदस्ती कूटनीति अपने टूलबॉक्स में एक अविभाज्य हथियार है। हालांकि, बहुपक्षवाद, आपसी लाभ और उभय जीत वाले वैश्वीकरण के युग में जबरदस्ती कूटनीति के लिए कोई रास्ता नहीं है। भिन्न-भिन्न तथ्य इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि अमेरिकी शैली की जबरदस्ती कूटनीति अंत में जरूर विफल होगी।
आखिरकार कौन दुनिया में जबरदस्ती कर रहा है? कौन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और बहुपक्षीय नियमों को नष्ट कर रहा है? अंतर्राष्ट्रीय समुदाय स्पष्ट रूप से देख सकता है। अमेरिका जबरदस्ती कूटनीति पर भरोसा करके खुद को वास्तव में शक्तिशाली नहीं बना सकता है। इसके बजाय, वह दुनिया से तेजी से अलग हो जाएगा, और अंतत: विफल हो जाएगा।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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