विश्व की छत पर स्थित तिब्बत एक पवित्र और आकर्षक स्थल है ।वहां के समाज में धार्मिक माहौल गहराई से घुला हुआ है। धर्म तिब्बतियों के जीवन में काफी अहम स्थान रखता है। तिब्बती लोगों के घर में आम तौर पर सूत्र कक्ष और बौद्ध प्रतिमा दिखाई देती है ।वहां के पहाड़ों पर अकसर सूत्र पताका नजर आते हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार अब तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों की संख्या 1700 से अधिक हो गयी है और भिक्षु व भिक्षुणियों की संख्या लगभग 46 हजार है। इसके अलावा तिब्बत में चार मस्जिदें और एक कैथलिक चर्च भी है। वहां प्राचीन समय से रह रहे मुसलमानों की संख्या 12 हजार से ज्यादा है और ईसाई धर्म के अनुयाइयों की संख्या लगभग सात सौ है।
जोखांग मठ तिब्बती स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के पुराने क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। उसका निर्माण सन 647 में हुआ था ,जिसका इतिहास ल्हासा शहर से भी पुराना है । तिब्बती बौद्ध धर्म में जोखांग मंदिर का सर्वोपरि स्थान है। वह तिब्बत में अब तक सुरक्षित थुपो काल में सबसे शानदार इमारत है और सबसे पुरानी मिट्टी और लकड़ी से बनी इमारत भी मौजूद है। जोखांग मंदिर तिब्बत ,थांग राजवंश ,नेपाल और भारत के वास्तु निर्माण की शैलियों से मिश्रित है ,जो तिब्बती धार्मिक निर्माण की आदर्श मिसाल है। वर्तमान में जोखांग मंदिर का क्षेत्रफल 25,100 वर्गमीटर से अधिक है और वहां 108 बुद्ध भवन हैं। वहां सुरक्षित दुर्लभ निधि बेशुमार हैं । उल्लेखनीय बात है कि जोखांग मंदिर तिब्बती बौद्ध धर्म के विभिन्न समुदायों का समान पवित्र स्थल है। रोज बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री पूजा अर्चना और परिक्रमा करने के लिए वहां जाते हैं ।
द्रपुंग मंदिर ल्हासा शहर के पश्चिम में दस किमी. दूर एक पहाड़ पर स्थित है। वह तिबब्ती बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा मंदिर है। उसे कानतान और सेरा मंदिर के साथ ल्हासा के तीन बृहद मंदिरों में से एक कहा जाता है। द्रपुंग मंदिर का निर्माण वर्ष 1416 में हुआ । वहां के भिक्षुओं की संख्या दस हजार तक पहुंची थी। इस मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण भवन त्सो छिंग भवन का क्षेत्रफल 2 हजार वर्गमीटर था और उसमें 183 विशाल काष्ठ-स्तंभ हैं। द्रपुंग मंदिर में गेलुग समुदाय के चार स्कूल भी हैं । कई बाल व युवा भिक्षु वहां अध्ययन करते हैं। सूत्रों के बारे में तर्क वितर्क करना वहां का एक विशिष्ट ²श्य है। द्रपुंग मंदिर में तरह-तरह की धार्मिक गतिविधियां आयोजित होती हैं। सबसे बड़ा और मशहूर कार्यक्रम तिब्बती पंचाग के अनुसार 30 जून को अनुयायियों के दर्शन के लिए बुद्ध के विशाल थांगखा चित्र को दिखाना होता है। बुद्ध के थांगखा चित्र की ऊंचाई 30 मीटर है और चौड़ाई 20 मीटर है। इस जुलाई में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ल्हासा यात्रा के दौरान खासकर द्रपुंग मंदिर का दौरा किया था।
ताशिलुनपो मंदिर शिकाजे शहर में स्थित है। उसका निर्माण वर्ष1447 में हुआ। कई बार विस्तार के बाद वर्तमान में ताशिलुनपो मंदिर का क्षेत्रफल 1 लाख 50 हजार वर्ग मीटर हो चुका है। वहां कुल 3,600 कमरे हैं और 57 सूत्र भवन हैं। ताशिलुनपो में सबसे महान इमारत महान मैत्रेयी बौद्ध भवन और हर पीढ़ी वाले पंचन लामा के पगोडा भवन हैं। उल्लेखनीय बात है कि ताशिलुनपो मंदिर पंचन लामा का मुख्य मंदिर है। इस साल की 8 अगस्त को 11वें पंचन लामा ताशिलुनपो मंदिर वापस आये। उन्होंने कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये। उन्होंने बुद्ध की पूजा अर्चना की, लामाओं का नेतृत्व कर सामूहिक रूप से सूत्र सुनाये और लोगों को आशीर्वाद दिया।
धर्म और मंदिर तिब्बती संस्कृति में बड़ा महत्व रखते हैं। अगर तिब्बत को सही माइने में जानना चाहते हैं ,तो आपको जरूर उन मंदिरों का दौरा करना चाहिए।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS