चीन और भारत दोनों की साझा नियति है। दोनों को हजारों वर्षों से चली आ रही सभ्यताएं प्राप्त हैं, और दोनों देशों के लोगों को अपनी-अपनी संस्कृतियों पर गर्व और आत्मविश्वास है। लेकिन आधुनिक काल से ही चीन और भारत पश्चिमी साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के आक्रमण और दमन से पीड़ित रहे। आजादी होने के बाद भी आधुनिक लक्ष्य को साकार करने की हमारी यात्राएं भी बाधाओं से भरी हैं। हालांकि, इतिहास की जिम्मेदारी हमें बताती है कि एक समृद्ध और मजबूत देश का निर्माण करना और एशियाई सदी के गौरव को फिर से महसूस करना हमारा कर्तव्य ही है।
पर शक्तिशाली देश के सपने की परिभाषा अलग होती है। पिछले सदियों से, पश्चिमी ताकतों ने एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में उपनिवेशवादी शासन कायम कर अनगिनत धन पर कब्जा कर लिया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दुनिया का औद्योगिक, आर्थिक और वित्तीय केंद्र यूएसऐ में स्थानांतरित हो गया। अमेरिका ने दो विश्व युद्धों के दौरान हथियार बेचकर भारी मुनाफा कमाया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मार्शल योजना के माध्यम से यूरोप और जापान को नियंत्रित किया। दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बनने के बाद अमेरिका ने अन्य देशों पर बलपूर्वक आक्रमण किया और अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया। क्या अमेरिका के द्वारा जो किया गया, वही एक महान शक्ति की परिभाषा है?
आज का युग बदल गया है और शक्तिशाली देश के सपने का असली अर्थ यह है कि हम किस तरह का शक्तिशाली देश बनना चाहते हैं। अमेरिका के द्वारा दूसरे देशों पर निरंतर आक्रमण किया गया, और आतंकवाद को नियंत्रण से बाहर कर दिया गया है, ऐसी कार्यवाहियां अंतत: पतन का कारण बनेंगी। उधर भारत और चीन की पूर्वी सभ्यताओं की प्राचीन काल से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की विशेषता रही है।
वर्तमान में, दुनिया अभूतपूर्व परिवर्तनों का सामना कर रही है। शांति और विकास वर्तमान युग की मुख्य धारा है। सभी देश साझा भाग्य वाले समुदाय में रहते हैं। उनका आपसी सहयोग से ही साझा विकास किया जाएगा। इतिहास से यह साबित है कि चीन और भारत का सबसे समृद्ध काल बल द्वारा विस्तार किया जाने का काल नहीं था। नए युग में नए विचारों के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। किसी भी देश की महान शक्ति का उपयोग मानव जाति को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि युद्ध मशीन बनाने के लिए। उधर चीन और भारत के लिए, हमें संस्कृति, प्रौद्योगिकी, शिक्षा जैसे पहलुओं में एक अग्रणी शक्ति बनने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हम एक बार फिर अतीत के युग के जैसे विचारधारा और संस्कृति में दुनिया का मार्गदर्शन कर सकें।
ऐसी ²ष्टि की प्राप्ति सभ्यता पर निर्भर करती है, न कि सैन्य और शस्त्र विस्तार पर। अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान केंद्रित करके ही हम सामने मौजूद समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। विश्व के इतिहास ने साबित कर दिया है कि केवल निरंतर उच्च वृद्धि से ही अधिकांश लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है और आर्थिक संरचना के उन्नयन को महसूस किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षा को लोकप्रिय बनाना और बुनियादी ढांचे के निर्माण को जोरों से बढ़ावा देना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वास्तव में, सामाजिक शासन और शहरीकरण के मामले में अभी बहुत कुछ काम है।
विकास के मुद्दों के बारे में लोग हमेशा पूंजी, प्रौद्योगिकी, बाजार और प्रतिभा जैसे कारकों पर जोर देते हैं। वास्तव में सबसे महत्वपूर्ण कारक जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वह है शांतिपूर्ण विकास के लिए अनुकूल वातावरण। ब्रिक्स तंत्र और शांघाई सहयोग संगठन ऐसे संगठन होते हैं जो चीन और भारत के हितों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। जिनमें भारत अपनी वित्तीय व्यवस्था और सेवा कारोबार की श्रेष्ठता से सक्रिय भूमिका निभा सकता है। सुरक्षा, ऊर्जा और आतंकवाद विरोधी में शांघाई सहयोग संगठन के सदस्यों के बीच सहयोग के लिए बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। ब्रिक्स तंत्र और शांघाई सहयोग संगठन के सहारे, चीन और भारत आर्थिक और राजनीतिक सहयोग कर सकते हैं, और उनके बीच मौजूद जटिल मुद्दों को हल करने में भी मदद मिल पाएगी।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
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Source : IANS