जालसाजी के लिए उत्सुक अमेरिकी खुफिया एजेंसी दुनिया को फिर से बेवकूफ नहीं बना सकती
जालसाजी के लिए उत्सुक अमेरिकी खुफिया एजेंसी दुनिया को फिर से बेवकूफ नहीं बना सकती
बीजिंग:
24 अगस्त को तथाकथित 90-दिवसीय ट्रैसेबिलिटी जांच की समय सीमा पूरी हुई, जो अमेरिकी सरकार द्वारा अपनी खुफिया एजेंसी के लिए निर्धारित की गई थी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रेसबिलिटी जांच रिपोर्ट का सार्वजनिक संस्करण कुछ दिनों के भीतर जारी होने की उम्मीद है। रिपोर्ट चाहे जो भी निष्कर्ष दे, तथ्य यह है कि खुफिया विभाग वैज्ञानिक तरीकों को पता लगाने की क्षमता का संचालन करता है, जो कि एक पूर्ण राजनीतिक हंगामा है।अमेरिकी खुफिया एजेंसी के लिए, धोखाधड़ी केवल एक काली रणनीति है, और इसकी अधिक कपटी विधि मॉकबर्ड प्रोजेक्ट के माध्यम से विभिन्न देशों के मीडिया कर्मियों की हेरफेर करना है। यह योजना 1940 के दशक में शुरू हुई थी। सीआईए ने इसका उपयोग दुनिया भर के पत्रकारों और मीडिया संगठनों के सूचना माध्यमों को नियंत्रित करने, जनमत में हेरफेर करने और अन्य देशों में शासन परिवर्तन को उकसाने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किया था। 1950 के दशक में ग्वाटेमाला में वामपंथी सरकार का पतन सीआईए की जनमत के आक्रामक होने की उत्कृष्ट कृति थी।
अब भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी मीडिया में हेरफेर करके लोगों को भ्रमित करने की कोशिश करती है। इस साल मई में वॉल स्ट्रीट जर्नल ने तथाकथित पहले से अज्ञात अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट जैसी जानकारी का हवाला देते हुए एक लेख प्रकाशित किया और नवंबर 2019 में वूहान वायरस अनुसंधान संस्थान के 3 शोधकताओं की बीमारी की कहानी को गढ़ा।
राजनीति से विज्ञान को प्रभावित नहीं किया जा सकता। कोरोना वायरस की ट्रेसबिलिटी के बारे में इस साल मार्च के अंत में जारी चीन-डब्ल्यूएचओ की संयुक्त शोध रिपोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला है कि वायरस का लैब से लीक होना बेहद असंभव है । भविष्य में, वैश्विक ट्रेसबिलिटी कार्य नए सिरे से शुरू करने के बजाय इसी आधार पर किया जाना चाहिए।
चीन हमेशा वैज्ञानिक ट्रेसबिलिटी का समर्थन करता है और इसमें भाग लेना जारी रखेगा। चीन अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की साजिश को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
(साभार----चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
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