नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार ने बुधवार को उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रूपरेखा तय कर दी है।
उत्तर प्रदेश से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नामों का चयन स्पष्ट रूप से यूपी चुनाव के लिए भाजपा की प्राथमिकताओं को दिखाता है।
बुधवार को कैबिनेट में शामिल किए गए राज्य के सात मंत्रियों में से छह गैर सवर्ण हैं।
नए शामिल किए गए मंत्रियों में से चार विभिन्न ओबीसी जाति समूहों से हैं।
अनुप्रिया पटेल और पंकज चौधरी कुर्मी जाति से हैं, जबकि बी. एल. वर्मा लोध समुदाय से हैं। इसके अलावा एस. पी. सिंह बघेल एक ओबीसी (गड़रिया) हैं, हालांकि वह एक अनुसूचित जाति (एससी) होने का दावा करते हैं। इस मुद्दे पर उनका मामला विचाराधीन है।
भानु प्रताप वर्मा दलित हैं और कौशल किशोर भी दलित (पासी समुदाय) हैं।
एकमात्र ऊंची जाति से आने वाले अजय मिश्रा हैं, जो कि एक ब्राह्मण हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने केवल गैर-यादव ओबीसी को चुना है, जिसका अर्थ है कि सत्ताधारी पार्टी जानबूझकर ओबीसी एकता को तोड़ने और समाजवादी पार्टी (सपा) को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है।
कैबिनेट विस्तार से यह भी स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अब ओबीसी और दलितों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जो मतदाताओं के सबसे बड़े हिस्से से आते हैं।
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, उच्च जातियों पर ध्यान केंद्रित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे पास एक मुख्यमंत्री हैं, जो ठाकुर समुदाय से हैं और एक उप मुख्यमंत्री भी हैं, जो ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। पार्टी स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि वह समाज के उन वर्गों की सत्ता में भागीदारी चाहती है, जिन्हें उनका हक नहीं मिला है।
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Source : IANS