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सुभाष चंद्र बोस की जयंती : नेता जी ने ऐसा क्या कहा कि हिटलर भी हो गया उनका कायल

अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम को जब-जब याद किया जाएगा तब-तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम जरूर आएगा. नेताजी ही हैं जिन्होंने कहा था 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा'.

Updated on: 23 Jan 2020, 10:35 AM

नई दिल्ली:

अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम को जब-जब याद किया जाएगा तब-तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का नाम जरूर आएगा. नेताजी ही हैं जिन्होंने कहा था 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा'. उन्होंने कहा था कि सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है. उन्होंने कहा था कि सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है. उनकी कही हुई बातें, उनका जीवन और आजादी के लिए उनका संघर्ष आज भी प्रेरणा देता है. सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी यानी आज ही के दिन 1897 में हुआ था. आइए जानते हैं नेताजी सुभाष चंद्रबोस के बारे में.

सुभाष चंद्र बोस के पिता कटक शहर के जाने-माने वकीलों में से एक थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस तरह से विचलित कर दिया था कि वह आजादी की लड़ाई में कूद गए थे. बोस की शुरुआती शिक्षा 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' से हुई थी. उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की. लेकिन अंग्रेजों के लिए उन्हें काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था. जिसके कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. एक बड़े पद से देश के लिए इस्तीफा देने से पूरा देश हैरान था.

इस्तीफा देकर जब वह भारत लौटे तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की. हालांकि उनका यह मानना नहीं था कि आजादी अंहिसा से मिल सकती है. वह जोशीले क्रांतिकारियों के दल में प्रिय बन गए थे. महात्मा गांधी और नेताजी के आजादी पाने के रास्तों में भले ही मतभेद था लेकिन वह हमेशा एक दूसरे की भावना का सम्मान करते थे.

1938 में बोस कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने और राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया. गांधी जी लगातार बोस का विरोध कर रहे थे. लेकिन अगले साल फिर 1939 में बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. लेकिन महात्मा गांधी के विरोध को देखते हुए बोस ने खुद ही इस्तीफा दे दिया.

बोस इसके बाद योजना बनाने में जुटे थे लेकिन इसी बीच दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया. बोस को लगा कि अगर ब्रिटेन के दुश्मनों से मिल जाया जाए तो अंग्रेजी हुकूमत को हरा कर आजादी मिल सकती है. हालांकि उनके विचारों पर अंग्रेजी हुकूमत को शक था और इसी कारण उन्हें कोलकाता में नजरबंद कर दिया गया. लेकिन बोस वेश बदलने में माहिर थे. कुछ ही दिनों में वह अपने घर से भाग निकले और वहां से जर्मनी पहुंच गए. वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात भी की.

हिटलर से नेताजी की मुलाकात

आजादी दिलाने के प्रयासों के क्रम में नेताजी एक बार हिटलर से मिलने के लिए गए थे. उस समय का एक बेहद ही मशहूर किस्सा है. वह यह कि हिटलर से मिलने से पहले नेताजी को एक कोठरी में बिठा दिया गया. उस समय दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा और हिटलर को जान का खतरा था. इसलिए हिटलर के कई बॉडी डबल था. यानी उसके जैसे ही दिखने वाले लोग.

थोड़ी देर में नेता जी से मिलने के लिए हिटलर की शक्ल का एक शख्स आया और नेताजी से हाथ मिलाया. नेताजी ने हाथ मिलाया और मुस्कुरा कर बोले आप हिटलर नहीं हैं. मैं उनसे मिलने के लिए आया हूं. वह शख्स सकपका गया और वहां से चला गया. थोड़ी देर बाद हिटलर जैसा एक और शख्स मिलने के लिए आया जिससे नेता जी ने मिलने से इनकार कर दिया.

इसके बाद हिटलर को खुद आना पड़ा. हिटलर से मिल कर नेता जी बोले ''मैं सुभाष चंद्र बोस हूं..भारत से आया हूं..आप हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें क्योंकि मैं मित्रता के बीच में कोई दीवार नहीं चाहता.'' नेता जी का विश्वास देख कर हिटलर उनका कायल हो गया. नेता जी ने जब पूछा कि आखिर आपने मेरे हमशक्लों को कैसे पहचाना? तो नेता जी ने कहा कि 'उन दोनों ने अभिवादन के लिए पहले हाथ बढ़ाया जबकि मेहमान ऐसा करते हैं.'

आजाद हिंद फौज की स्थापना

आजाद हिंद फौज की स्थापना 1942 में साउथ ईस्ट एशिया में हुआ था. INA की शुरुआत रास बिहारी बोस और मोहन सिंह ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान की थी. जब बोस जर्मनी में रह रहे थे तो उसी दौरान जापान में रह रहे आजाद हिंद फौज के संस्थापाक रास बिहारी बोस ने उन्हें आमंत्रिक किया और 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में नेताजी को आजाद हिंद फौज की कमान सौंपी. आजाद हिंद फौज में 85000 सैनिक शामिल थे और उसका नेतृत्व लक्ष्मी स्वामीनाथन कर रही थीं.