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चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' में शामिल हुआ नेपाल और अमेरिका, चिंतित हुआ भारत

शुक्रवार को इसके लिए नेपाल के उप प्रधानमंत्री कृष्ण बहादुर महारा की उपस्थिति में दोनों देशों के बीच एमओयू साइन किए गए

Updated on: 13 May 2017, 09:57 AM

highlights

  • चीन के ओबीओआर में शामिल हुआ नेपाल और अमेरिका
  • ओबीओआर में शामिल होने के लिए भारत पर भी बढ़ा दबाव

नई दिल्ली:

चीन के पेइचिंग में 14 और 15 मई को आयोजित होने वाले वन बेल्ट वन रोड  (ओबीओआर) फोरम में अब पड़ोसी देश नेपाल ने भी शामिल होने का फैसला किया है।

शुक्रवार को इसके लिए नेपाल के उप प्रधानमंत्री कृष्ण बहादुर महारा की उपस्थिति में दोनों देशों के बीच एमओयू साइन किए गए। नेपाल के ओबीओर में शामिल हो जाने के बाद दक्षिणी एशिया में भारत एक मात्र ऐसा देश है जो चीन के इस महत्वाकांक्षी योजना में शामिल नहीं है।

नेपाल के इस परियोजना में शामिल होने के बाद चीन के कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इसमें भारत शामिल नहीं होता तो भविष्य में वो एशिया में अलग-थलग पड़ सकता है।

भारत के अलावा दक्षिणी एशिया में नेपाल ही एक मात्र ऐसा देश था जो ओबीओआर में शामिल नहीं हुआ था। इस परियोजना में पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव और म्यनमार ने पहले ही शामिल हो चुके हैं।

इससे पहले अमेरिका ने भी ओबीओआर में शामिल होने का फैसला किया था। अमेरिका के इस फैसले का दबाव भारत पर भी पढ़ना तय है।

अमेरिका के ओबीओर में शामिल होने के फैसले के बाद भारत पर भी इस फोरम में शामिल होने का दबाव बढ़ेगा। हालांकि भारत ने अभी तक इस फोरम में शामिल होने या फिर अपने प्रतिनिधि को भेजने पर कोई फैसला नहीं किया है।

लेकिन अमेरिका के इस यू टर्न से संभव है कि भारत भी चीन के वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव में शामिल होने पर विचार कर सकता है। वैसे भारत के इस फोरम में शामिल होने पर फैसला अमेरिका के इस इनिशिएटिव को लेकर नीति पर बहुत हद तक निर्भर करेगा।

भारत जहां मानता रहा है कि चीन ने इस परियोजना के लिए बाकी देशों को भरोसे में नहीं लिया वहीं अमेरिका इसमें शामिल होने को लेकर अब अलग दलीलें दे रहा है।

अमेरिका ने कहा है कि वो इस परियोजना में इसलिए शामिल हो रहा है क्योंकि इससे चीन पर अपनी योजना को और पारदर्शी बनाने के लिए दबाव पड़ेगा। इसके साथ ही चीन को काम में अंतर्राष्ट्रीय मानकों और पर्यावरण का ध्यान भी रखना पड़ेगा।

अमेरिका इस फैसले के बाद अब उन विकसित देशों के उस समूह में शामिल हो गया है जो अपना प्रतिनिधि मंडल पेइचिंग भेज रहे हैं। भारत के अलावा चीन से मतभेद रखने वाले जापान और दक्षिण कोरिया ने भी अपने प्रतिनिधियों को चीन भेजने का फैसला किया है।

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन के इस परियोजना से भारत को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है। इसलिए अगर भारत इसमें अपना प्रतिनिधि नहीं भी भेजता है तो कोई नुकसान नहीं होने वाला।

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन भारत के खिलाफ दुर्भावना ही रखता है जिसका उदाहरण CPEC है जो शिनजियांग को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की फिराक में है जो उसने ब्लूचिस्तान में बनाया है। जबकि गिलगित-ब्लूचिस्तान इलाके पर भारत अपना दावा पेश करता रहा है।

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इस ओबीओआर प्रोजेक्ट को लेकर चीन का दावा है कि इससे सभी देशों को फायदा होगा। लेकिन चीनी कंपनियों के दबाव को झेलते हुए चीन बाकी देशों को इसके फायदे बांट पाएगा इसपर अभी संशय है। इस प्रोजेक्ट के तरह 6 आर्थिक गलियारे बनाए जाने की योजना है लेकिन अभी तक किसी देश को इसका रोड मैप उपलब्ध नहीं कराया गया है।

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