NEET-JEE Exam: विरोध के बावजूद सरकार क्यों करा रही परीक्षा, ये हैं वजह
राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) और संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) के आयोजन को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है. कोरोना वायरस महामारी के दौर में इन परीक्षाओं को टालने की मांग की जा रही है.
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) और संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) के आयोजन को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है. कोरोना वायरस महामारी के दौर में इन परीक्षाओं को टालने की मांग की जा रही है. छात्रों अभिभावकों के साथ अब तमाम विपक्षी दल भी इन परीक्षाओं को लेकर विरोध में उतर आए हैं. नीट की परीक्षा 13 सितंबर, जबकि संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) एक से छह सितंबर के बीच आयोजित होनी है. भारी विरोध के बावजूद केंद्र सरकार तय समय पर ही परीक्षा कराने पर अड़ी हुई है. हालांकि इसके पीछे भी अहम वजह हैं.
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नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की मानें तो जेईई और नीट जैसी प्रतियोगिता परीक्षाओं को कराया जाना अनिवार्य है. क्योंकि एंड परीक्षा को दिए हुए छात्रों को दाखिला नहीं मिल सकता है. सरकार की ओर से इन परीक्षाओं को कराने के पीछे की वजह यह भी मानी जा रही है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई (मुख्य) और नीट में यदि और देरी हुई तो छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा. हर साल की तरह इस साल भी लाखों छात्रों ने अपनी कक्षा 12 की परीक्षाएं दी हैं और अब प्रवेश परीक्षाओं का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
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एनटीए के मुताबिक, एक शैक्षणिक कैलेंडर वर्ष को बचाने के लिए और कई उम्मीदवारों के एक वर्ष को बचाने के लिए प्रवेश परीक्षाओं का संचालन करना आवश्यक है. एनटीए ने कहा कि अगर इसे शून्य वर्ष मानते हैं, तो हमारी प्रणाली एक सत्र में दो साल के उम्मीदवारों को कैसे समायोजित कर पाएगी. सर्वोच्च न्यायालय भी इन परीक्षाओं को स्थगित करने के संबंध में रिट पिटीशन को खारिज कर चुकी है. छात्रों को लंबे और पूर्ण शैक्षणिक वर्ष को बर्बाद नहीं किया जा सकता है.
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वर्तमान वर्ष 2020-21 का अकादमिक कैलेंडर भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है, क्योंकि प्रवेश परीक्षाओं की अनुपस्थिति में, इंजीनियरिंग और चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रमों के पहले सेमेस्टर में प्रवेश अब तक नहीं हो सके हैं. इसने छात्रों के शैक्षणिक कैरियर पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. एनटीए के मुताबिक कई निजी संस्थान, विदेशी और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, जो इन परीक्षाओं पर निर्भर नहीं हैं, ने आभासी कक्षाओं का सहारा लिया है और सत्र शुरू किया है. इस परिदृश्य में, एक सत्र चूक उन छात्रों के लिए नुकसानदेह होगी जो सरकार प्रणाली में विश्वास करते हैं और सरकारी कॉलेजों में अध्ययन करने की इच्छा रखते हैं.
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