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महामारी में दोषों की चर्चा छोड़कर टीम भावना से कार्य करने की आवश्यकता

कोविड रेस्पांस टीम की ओर से आयोजित 'हम जीतेंगे पॉजिटिविटी अनलिमिटेड' व्याख्यानमाला के समापन समारोह में मोहन भागवत ने कहा, " सारे भेद भूलकर, दोषों की चर्चा छोड़कर कार्य करने की आवश्यकता है.

Updated on: 15 May 2021, 08:47 PM

highlights

  • आरएसएस के संचालक डॉ. भागवत ने कहा है कि महामारी काल में मन को पाजिटिव रखना है
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपनी क्षमता के अनुसार सेवा कार्य कर रहे हैं

नई दिल्ली:

भारत में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर अब थोड़ी शांत पड़ने लगी है. बीते कुछ दिनों से कोरोना के दैनिक मामलों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. आज भी कोरोना के मामलों में कमी आई है. पिछले 24 घंटे में भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के 3.26 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं. इसी के साथ देश में कोरोना के कुल मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 2.43 करोड़ से अधिक हो गया है. बीते 24 घंटे के दौरान कोरोना वायरस से 3890 मरीजों की जान चली गई है, जिन्हें मिलाकर अब देश में मरने वालों की कुल संख्या 2.66 लाख से अधिक हो गई है. वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि महामारी काल में मन को पाजिटिव रखना है और शरीर को कोरोना निगेटिव रखना है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपनी क्षमता के अनुसार सेवा कार्य कर रहे हैं. मोहन भागवत ने महामारी के समय दोषों की चर्चा छोड़कर टीम भावना से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया है. उन्होंने महामारी के समय में अफवाहों को रोकने पर भी जोर दिया.

कोविड रेस्पांस टीम की ओर से आयोजित 'हम जीतेंगे पॉजिटिविटी अनलिमिटेड' व्याख्यानमाला के समापन समारोह में मोहन भागवत ने कहा, " सारे भेद भूलकर, दोषों की चर्चा छोड़कर कार्य करने की आवश्यकता है. अपने आप को ठीक रखना, प्रयासों की निरंतरता रखना, धैर्य रखें. सक्रिय रहें. प्रतिकार शक्ति को मजबूत बनायें, प्राणायाम, दीर्घ श्वसन, सूर्य नमस्कार श्वसन क्षमता और मन को भी मजबूत बनाते हैं. आहार ठीक रखें, सात्विक आहार, शरीर की शक्ति बढ़ाने वाला आहार करें."

मोहन भागवत ने कहा कि शरीर को कमजोर करने वाले कार्य न करें. खाली न रहें. परिवार के साथ संवाद करें, कुटुम्ब को प्रशिक्षित करने का समय मिला है, उसका उपयोग करना है. उन्होंने कहा कि जन प्रबोधन एवं जन सहयोग एक महत्वपूर्ण कार्य है, उनके साथ संवाद करके उनके साथ सहभागी होने का समय है नियम, व्यवस्था और अनुशासन के साथ समाज की चिंता करनी है. यह परिस्थिति हमारे सद्गुणों की परीक्षा है.