Navratri 2017: शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक जानिए क्या है मां दुर्गा के नौ रूपों से जुड़ी कहानियां
2017 के शारदीय नवरात्र 21 सितंबर से शुरू होंगे और 30 सितंबर तक चलेंगे। नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा होती है। आइए जानते हैं मां दुर्गा के नौ रूपों के बारे में..
नई दिल्ली:
नवरात्र में माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरुपो की पूजा होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार लोग चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य रूप से मनाते है। नौ दिन और रात्रि के समावेश होने के कारन इस पर्व को नवरात्र के नाम से जाना जाता है।
2017 के शारदीय नवरात्र 21 सितंबर से शुरू होंगे और 30 सितंबर तक चलेंगे। नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा होती है। आइए जानते हैं मां दुर्गा के नौ रूपों के बारे में..
देवी दुर्गा के नौ रूपो में सबसे पहला रूप ‘शैलपुत्री’ का हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण माँ दुर्गा का यह स्वरूप ‘शैलपुत्री’ कहलाया है। मां के दाहिने हाथ में भगवान शिव द्वारा दिया गया त्रिशूल है जबकि मां के बाएं हाथ में भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं और इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है।
दुर्गा के दूसरे रूप को माँ ब्रह्मचारिणी कहते हैं , नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है।ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
मां दुर्गा का ब्रह्मचारिणी रूप, हिमालय और मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने भगवान नारद के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठिन तपस्या की, जिससे खुश होकर ब्रम्हाजी ने इन्हे मनोवांछित वरदान दिया जिसके प्रभाव से ये भगवान शिव की पत्नी बनीं। मां इस रूप में दाहिने हाथ में जप की माला है और बायें हाथ में कमण्डल है।
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के रुपधारी माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इनकी दस भुजाएं हैं। मां के इन दस हाथों में ढाल, तलवार, खड्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा और बाणों से भरा तरकश है। इनके मस्तक पर घण्टे के आकार का आधा चन्द्रमा भी सुशोभित है।देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती है। इसके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इसके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दोनों हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख सम्पदा का वरदान देती है।
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान हैं।
श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है।
नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं अगर मां कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं, तो उनके विवाह का योग जल्दी बनता है। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो उनके लिए कात्यायनी देवी के मंत्र का जप अति लाभदायक होता है। माना जाता है कि मां कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने खुद उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था।
दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है।
नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा-अर्चना और स्थापना की जाती है। अपनी तपस्या के द्वारा इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। अतः इन्हें उज्ज्वल स्वरूप की महागौरी को अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, शारिरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया है। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सदा सुख और शांति देती है।
मां महागौरी की उत्पत्ति के संदर्भ में कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं जिससे देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं जिसकी वजह से इनका नाम गौरी पड़ा।
दुर्गा की नवम शक्ति का नाम सिद्धि है। ये सिद्धिदात्री हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माता इन्हीं को माना गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है।
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Irrfan Khan Death Anniversary: अपनी पत्नी के लिए जीना चाहते थे इरफान, कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान शेयर की थी दिल की इच्छा
-
अरिजीत सिंह ने अपने कॉन्सर्ट के दौरान माहिरा खान से मांगी माफी, देखें सिंगर ने क्या कहा?
-
Aamir Khan Children: आमिर की सलाह नहीं सुनते उनके बच्चे, भावुक आमिर ने शेयर किया दिल का दर्द
धर्म-कर्म
-
Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया के दिन करें तुलसी के ये उपाय, आर्थिक तंगी होगी दूर!
-
Guru Gochar 2024: 1 मई को गुरु गोचर से बनेगा कुबेर योग, जानें आपकी राशि पर इसका प्रभाव
-
Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी के दिन जरूर करें ये उपाय, धन से भर जाएगी तिजोरी
-
Shiv Ji Ki Aarti: ऐसे करनी चाहिए भगवान शिव की आरती, हर मनोकामना होती है पूरी