एक-एक सांस के लिए मोहताज होती जा रही ज़िंदगी, प्रदूषण नियंत्रण दिवस के क्या है मायने
प्रदूषण को नियंत्रण करने में हम असफल साबित हो रहे हैं. इसका सबूत एयर विजुअल और ग्रीनपीस द्वारा जारी वायु प्रदूषण की रिपोर्ट है जिसमें भारत के सात शहर दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है.
नई दिल्ली:
हवा में कभी जिंदगी तैरती थी...अब वहीं हवा अभिशाप बनती जा रही है. जिंदगी को जीने के लिए जिस हवा की जरूरत होती है वहीं अब जानलेवा साबित हो रही है. इसके लिए जिम्मेदार हम और आप हैं. जीवन को हर शानो-शौकत से नवाजने के लिए हमने प्राकृतिक का ऐसा दोहन किया कि अब वो हमसे बदला ले रही है. पेड़ों को हमने काट दिया...गंदगी को फैलाया....हवा में जहरीला पदार्थ छोड़ा और अब सब पलट कर वापस लौट रहा है हमारी तरफ. आज राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस है तो सांसों के लिए मोहताज होती जा रही जिंदगी पर चर्चा करना जरूरी है.
2 दिसंबर 1984 को भोपाल में गैस त्रासदी हुई थी. 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था. 5 लाख से अधिक लोग इस गैस की चपेट में आए थे और 25,000 लोगों की मौत हो गई थी. उस दिन को याद करते ही आंखों के सामने लाशें तैरने लगती है जिनका घुट-घुट कर दम निकला था. इस भयावह दिन को याद करते हुए राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है.
भारत में 22 शहर हैं सबसे ज्यादा प्रदूषित
लेकिन इसका कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है. प्रदूषण को नियंत्रण करने में हम असफल साबित हो रहे हैं. इसका सबूत एयर विजुअल और ग्रीनपीस द्वारा जारी वायु प्रदूषण की रिपोर्ट है जिसमें भारत के सात शहर दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है. रिपोर्ट में टॉप 10 प्रदूषित शहरों में भारत के अलावा 02 पाकिस्तान और चीन का एक शहर शामिल है. वहीं, अगर दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों की बात करें तो इसमें 22 शहर भारत के, 5 शहर चीन के, 2 शहर पाकिस्तान के और 1 शहर बांग्लादेश का शामिल है. प्रदूषण जिंदगी का दुश्मन बनता जा रहा है. रिपोर्ट में जो बात सामने आई है वो हैरान करने वाला है. हर साल 70 लाख लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से हो रही हैं.
प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में प्रति वर्ष तकरीबन 70 लाख लोगों की असमय मौते हो रही हैं.
सिगरेट नहीं पीकर भी अपने अंदर ले रहे हैं जहर
देश की राजधानी दिल्ली तो गैस चेंबर में तब्दील होती जा रही है. वायु प्रदूषण का लेवल बढ़ता जा रहा है. दिल्ली की हवा में सांस लेना हर रोज़ करीब 40 से 50 सिगरेट पीने के बराबर है. सोचिए बिना सिगरेट पीए आपके अंदर जहर जा रहा है.
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वायु प्रदूषण पर नज़र रखने वाले एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्याएलआई) और शिकागो विश्वविद्यालय स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में खराब हवा के कारण इंसान की जिंदगी करीब 7.5 साल कम हो रही है.
जिंदगी के सात साल प्रदूषण की वजह से हो रहे हैं कम
1998 में प्रदूषण की वजह से हमारी जिंदगी औसत 3.7 साल कम हो रही थी. लेकिन 1998 और 2006 के बीच उत्तर भारत में प्रदूषण 72 प्रतिशत बढ़ा है. जिसकी वजह से हमारे जिंदगी की साले कम होती जा रही हैं. वहीं, भारत में हर 3 मिनट में एक बच्चा वायु प्रदूषण से हो रही बीमारियों से मर रहा है.
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई है वो बेहद ही डराने वाली है. 2017 में करीब 2 लाख बच्चों की मौत ज़हरीली हवा से हुई यानी लगभग साढ़े पांच सौ बच्चों की हर रोज़ मौत.
लांसेट के 2015 के रिपोर्ट में कहा गया था कि 10 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है.
भारत में 8 में से एक मौत प्रदूषण की वजह से हो रही है
मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ने वालों को फुर्सत मिले तो सरकार के ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट की तरफ ध्यान दे जिसमें कहा गया है कि भारत में हर 8 में से एक मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है.
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प्रदूषण नियंत्रण दिवस एक दिन मनाने भर से कुछ नहीं होने वाला है. अब तक जितने भी आंकड़े सामने आए है वो बेहद ही परेशान और डराने वाला है. मंदिर-मस्जिद के नाम पर...गौ रक्षा के नाम पर हम सड़क पर उतर जाते हैं...सरकार को कोसते हैं...लेकिन प्रदूषण जो धीरे-धीरे हमें बीमार कर रहा है...हमें मार रहा है उसके लिए सड़क पर नहीं उतर रहे हैं. उस दिशा में काम नहीं कर रहे हैं. आंखें खोलिए और देखिए कि आपके आसपास प्रदूषण को बढ़ाने वाली वजह कौन सी है...उसे खत्म कीजिए. पेड़ लगाइए, हरियाली को वापस लाइए...नहीं तो जिस जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए आप पर्यावरण से खिलवाड़ करते आ रहे हैं वहीं जिंदगी नहीं बचेगी.
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