राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में यमुना नदी में खनन की अनुमति क्षतिपूर्ति अध्ययन के बिना ही दे दी गयी है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली एनजीटी की पीठ ने सहारनपुर के नुनीयारी ऐतहमल गांव में यमुना नदी में रेत, बजरी या बोल्डर के खनन के लिये शांति इंटरप्राइजेज को राज्य पर्यावरण प्रभाव आंकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा दी गयी क्लीयरेंस के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते समय यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ता का कहना है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी रेत खनन निर्देशिका,2020 के मुताबिक क्षतिपूर्ति अध्ययन के बाद ही रेत खनन की अनुमति दी जा सकती है।
इसके जवाब में एसईआईएए ने कहा कि उसने सिर्फ एक साल के लिये उक्त कंपनी को खनन का आदेश देने का निर्णय लिया है। उसके बाद अधिक समय के क्लीयरेंस के लिये परियोजना प्रस्तावक समुचित प्राधिकरण से अनुमोदित क्षतिपूर्ति अध्ययन पेश करेगा।
इस पर एनजीटी ने कहा कि एसईआईएए की इस दलील से यह स्पष्ट पता चलता है कि उसने क्षतिपूर्ति अध्ययन के बगैर ही क्लीयरेंस दिया है। इसके अलावा परियोजना प्रस्तावक भी नियमों के तहत जरूरी क्षतिपूर्ति अध्ययन की अनुपस्थिति पर ध्यान दिये बगैर याचिका को लेकर बहस कर रहा है।
एनजीटी ने इसके बाद क्लीयरेंस को खारिज कर दिया और कहा कि कानून प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही नयी क्लीयरेंस दी जायेगी। अब तक सहारनपुर में यमुना नदी में जो भी खनन हुआ, वह अवैध है और इस पर परियोजना प्रस्तावक की दलील सुनने के बाद इसके परिणाम पर एसईआईएए और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समुचित तरीके से एक माह के भीतर विचार करेगा।
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Source : IANS