National Doctor's Day 2023: कौन थे डॉ. बिधान चंद्र रॉय?
भारत रत्न डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय ही वो शख्स थे, जिनके सम्मान में आज राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जा रहा है. आइये उनके बारे में जानें...
नई दिल्ली:
'डॉक्टर भी सेना के जवानों जैसे देश की रक्षा करते हैं' ये वाक्य हैं भारत रत्न डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय के. आज की तारीख हर किसी के लिए खास है, आज पूरा देश हर साल की तरह इस साल भी राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस के तौर पर मना रहा है. इस दिन हम हमारे जीवनदाता और जीवन रक्षक डॉक्टर्स और स्वास्थ कर्मियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं, उनके द्वारा दिन रात किए जा रहे मानवता के काम की सरहाना करते हैं. और इस सम्मान के पीछे है एक शख्सियत की उम्दा छवि, जिनका नाम है डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय...
हम में से कई लोग इस नाम को पहली बार सुन रहे होंगे, संभव है कि हम इन्हें जानते भी न हों, मगर असल में यही हैं जिनकी वजह से आज का ये खास दिन और भी ज्यादा खास हो जाता है. तो इसलिए आइये आज जानें कि आखिर कौन थे भारत रत्न डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय और देश के लिए उन्होंने क्या कुछ किया था...
कौन थे डॉ. बिधान चंद्र रॉय ?
सन् 1882 में आज ही के दिन पटना में जन्मे बिधान चंद्र रॉय पेशे से डॉक्टर थे. उन्हें अपनी शिक्षा, कॉलेज में दाखिले और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के चलते कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. यूं तो वे पढ़ने-लिखने में काफी तेज थे, उन्होंने गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर कलकत्ता विश्वविद्यालय से चिकित्सा की पढ़ाई की थी. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे लंदन के बारथोलोम्यू अस्पाताल पहुंचे, मगर वहां उन्हें दाखिला नहीं मिला, क्योंकि वे एशियाई मूल के थे.
मगर यहां उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि बार-बार प्रयास किया. और फिर करीब 30 बार के प्रयास के बाद आखिरकार उनका दाखिला हो ही गया. वो इतने होनहार थे, कि आगे चलकर उन्हें रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन का सदस्य भी चुना गया. हालांकि लंदन में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दोबारा अपने देश भाररत लौट आए, इसके बाद उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और सन् 1925 से अपनी राजनैतिक यात्रा शुरू की. जब 1947 में भारत के आजादी के बाद सन् 1948 में उन्हें बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया, तो उन्हें लोगों का खूब समर्थन मिला. इसके बाद सन् 1961 में उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत रत्न से नवाजा गया. और तारीक 1 जुलाई 1962 को वो हमें अलविदा कह गए.
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