महाराष्ट्र के एक पुलिसकर्मी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का ड्यूटी दोबारा ज्वाइन करने का ऑफर ठुकरा दिया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति के साथ सहानुभूति दिखाते हुए दोबारा ड्यूटी ज्वाइन करने का ऑफर दिया था। जिसे उसने ठुकरा दिया है।
महाराष्ट्र रिजर्व पुलिस फोर्स के इस कर्मचारी जहीरुद्दीन शमसुद्दीन बेदादे के वकील मोहम्मद इरशाद हनीफ ने कोर्ट में कहा, 'इस्लाम में अस्थाई दाढ़ी रखने की अवधारणा नहीं है।'
चीफ जस्टिस ने पुलिसकर्मी के वकील से कहा, 'हम आपके लिए बुरा महसूस करते हैं। आप जॉइन क्यों नहीं कर लेते?'
बता दें कि इस व्यक्ति के वकील ने कोर्ट से मामले में जल्द सुनवाई की मांग थी। लेकिन वकील के साफ जवाब नहीं देने के चलते चीफ जस्टिस ने जल्द सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकरा दिया।
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इससे पहले मुस्लिम व्यक्ति जहीरुद्दीन को शुरू में दाढ़ी रखने की इजाजत दी गई थी। इसके लिए शर्त यह थी कि यह छंटी और साफ हो। लेकिन बाद में कमांडेंट ने इस मंजूरी को वापस ले लिया और इस व्यक्ति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी।
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर 2012 को इस पुलिसकर्मी के खिलाफ फैसला दिया था।
अदालत ने कहा था कि फोर्स एक सेक्युलर एजेंसी है और यहां अनुशासन का पालन जरूरी है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि दाढ़ी रखना मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि यह इस्लाम के बुनियादी उसूलों में शामिल नहीं है।
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हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ इस मुस्लिम व्यक्ति ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2013 में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी थी।
तब से इस केस की सुनवाई विचाराधीन है। उस वक्त उनके वकील ने सैन्य बलों के लिए 1989 के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा था कि नियमों में दाढ़ी रखने की इजाजत है।
वकील की यह भी दलील थी कि इस्लाम के हदीस कानून के तहत दाढ़ी रखना जरूरी है और यह पैगंबर मोहम्मद की तरफ से बताई गई जीवन शैली का मामला है।
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Source : News Nation Bureau