logo-image

चुनाव आयोग ने अखिलेश और मुलायम के बीच सिंबल पर फैसला सुरक्षित रखा, सोमवार को होगी घोषणा

समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच चल रहे घमासान का फैसला अब 16 जनवरी को आ सकता है। हालांकि सूत्रों के मुताबिक मुलायम सरेंडर कर सकते हैं।

Updated on: 14 Jan 2017, 08:01 AM

highlights

  • चुनाव आयोग में समाजवादी पार्टी का घमासान थम गया है
  • मुलायम सिंह पार्टी का मार्गदर्शक बनने को तैयार हो गए हैं
  • मुलायम के बाद अब अखिलेश की हुई समाजवादी पार्टी

New Delhi:

समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच चल रहे घमासान का फैसला 16 जनवरी को आ सकता है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

हालांकि, सूत्रों के मुताबिक चुनाव आयोग में मुलायम सिंह यादव नरम रूख अख्तियार करते हुए पार्टी के नैशनल प्रेसिडेंट की दावेदारी को छोड़ते हुए मार्गदर्शक मंडल में जाने को तैयार हो गए हैं। 

चुनाव आयोग में शुक्रवार मुलायम-शिवपाल और अखिलेश-रामगोपाल यादव के खेमे के बीच करीब चार घंटे तक चली बैठक में चुनाव आयोग ने दोनों पक्ष को सुनते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

चुनाव आयोग में अखिलेश का पक्ष रख रहे वरिष्ठ एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले में बहस पूरी हो चुकी है। उन्होंने कहा, 'चुनाव आयोग का फैसला दोनों पक्षों को सर्वमान्य होगा।'

रामगोपाल के नेतृत्व में बुलाए गए पार्टी अधिवेशन में मुलायम को पार्टी के नैशनल प्रेसिडेंट के पद से हटाकर मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया था वहीं अखिलेश को पार्टी का नैशनल प्रेसिडेंट बना दिया गया था। इसके साथ ही सपा उत्तर प्रदेश के प्रेसिडेंट पद से शिवपाल यादव को बर्खास्त कर दिया गया था। साथ ही अखिलेश ने अमर सिंह को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया था।

इसके बाद सपा दो फाड़ हो गई थी और फिर मुलायम-शिवपाल और अखिलेश-रामगोपाल खेमे ने चुनाव आयोग में साइकिल चुनाव चिह्न को लेकर दावेदारी पेश की थी।
चुनाव चिह्न पर दावेदारी को लेकर चुनाव आयोग ने दोनों खेमों को 9 जनवरी को अपना-अपना बहुमत पेश करने का समय दिया था।

इस बीच मुलायम और अखिलेश के बीच कई दौर की बात चली लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया। हालांकि चुनाव चिह्न के जब्त किए जाने की आशंका को देखते हुए मुलायम सिंह ने नरम रूख अख्तियार करते हुए चुनाव आयोग में साइकिल चुनाव चिह्न को लेकर कोई दावेदारी पेश नहीं की।

पार्टी के नैशनल प्रेसिडेंट के पद से हटाए जाने के बाद मुलायम ने अपने पक्ष में बहुमत जुटाने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई। वहीं अखिलेश को करीब 200 से अधिक विधायकों का समर्थन मिला।