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ये कपल माउंट एवरेस्ट फतह करना चाहता था, लेकिन इस कीमत पर नहीं...

ये कहानी है पुणे के कुलकर्णी कपल की जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह करने का सपना देखा था, लेकिन 58 वर्षीय शरद कुलकर्णी ने अपने इस सपने के रास्ते में हमेशा के लिए अपनी पत्नी अंजलि को खो दिया

Updated on: 06 Jun 2019, 01:39 PM

highlights

  • माउंट एवरेस्ट को फतह करने के सपने के लिए कुलकर्णी कपल को चुकनी पड़ी बड़ी कीमत
  • पति की बाहों में गई पत्नी की जान
  • मदद के लिए चिल्लाता रह गया पति

नई दिल्ली:

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने का सपना हर पर्वतारोही देखता है. लेकिन उसे उस सपने की कीमत किसी अपने की जान देकर चुकानी पड़े, ये वो कभी नहीं चाहेगा. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे कपल की कहानी बताने वाले हैं जिसे अपने सपने की काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. ये कहानी है पुणे के कुलकर्णी कपल की जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह करने का सपना देखा था, लेकिन 58 वर्षीय शरद कुलकर्णी ने अपने इस सपने के रास्ते में हमेशा के लिए अपनी पत्नी अंजलि को खो दिया. पति की गोद में पत्नी ऑक्सीजन के लिए तड़पती रही और पति को उसे वही छोड़कर आना पड़ा.

पति मदद के लिए चिल्लाता रहा और पत्नी तड़पती रही

शरद के मुताबिक एवेरेस्ट की चोटी पर उनके पहुंचने का सपना लग भग पूरा हो चुका था, लेकिन लोगों की भीड़ ज्यादा होने के कारण बीच में ही उनकी पत्नी का ऑक्सीजन का सिलेंडर खत्म हो गया. पत्नी अंजलि अपने पति की बाहों में तड़प रहीं और शरद अपने मुंह से मास्क हटाकर बचाव के लिए आवाज़ लगाते रहे पर लोगों की भीड़ इतनी ज्यादा थी की कोई मदद नहीं मिल पायी और शरद कुलकर्णी अपनी पत्नी को मरता हुआ देखते रहे. आखिर में पत्नी ने दम तोड़ दिया और शेरपा (गाइड) लाश के पास से उन्हें घसीटकर वहां से ले गया. दरअसल शरद के शेरपा को इस बात का डर था कि कहीं उनका भी ऑक्सीजन समाप्त ना हो जाये. इसलिए शेरपा यानी कि शरद के गाइड ने उनकी तड़पती पत्नी के पास से उनको खींचकर वहां से नीचे की तरफ ले आया.

(अंजलि कुलकर्णी)
ठाणे के कुलकर्णी कपल ने माउंट एवरेस्ट को फतह करने का सपना 15 साल पहले देखा था और इसकी हर जरूरी तैयारी भी की थी. इसके लिए इन दोनों ने 1 साल की ट्रेनिंग भी ली थी. दोनों पूरी तरह से फिट थे पर इस बात से अंजान थे कि कुदरत की इस गोद में एक अनहोनी इनका इंतेज़ार कर रही है. घटना की जानकारी मिलते ही शरद के बेटे शांतनु कुलकर्णी काठमांडू के लिए निकल पड़े. चुनौती थी अपनी मां के शव को एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर से वापस लाना. शांतनु बताते हैं एवरेस्ट की चोटी पर लाशों का अंबार है क्योंकि जिनकी मौत यहां पर होती है उनके शव को नीचे ले आना आसान नहीं है. ऐसे में इंडियन एंबेसी ने शांतनु की मदद की. इंडियन एंबेसी की मदद से ही सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर और अंजली के शव को वापस लाया जा सका.

23 मई को गई थी कई लोगों की जान

आपको बता दें कि बीती 23 मई को एवरेंस्ट पर चढ़ाई के दौरान जिन तीन लोगों की मौत हुई थी उनमें अंजलि के अलावा, ओडिशा की 49 वर्षीय कल्पना दास, पुणे के 27 वर्षीय निहाल भगवान शामिल थे. शरद के परिवार को विश्वास नहीं हो रहा कि अब अंजली कुलकर्णी हमेशा के लिए उनसे दूर हो चुकी है. शरद और अंजलि ने एवरेस्ट से लौटने के बाद 50 साल के बाद के जीवन पर एक किताब लिखने की योजना बनाई थी. लेकिन सारे सपने अधूरे रह गए.