वीर सावरकर पर मोहन भागवत का बड़ा बयान- देश में बदनाम करने की चली थी मुहिम, लेकिन...
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने मंगलवार को वीर सावरकर पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन किया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि आज के भारत में वीर सावरकर के बारे में सही जानकारी का अभाव है. सावरकर के विचारों की जरूरत है.
नई दिल्ली:
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने मंगलवार को वीर सावरकर पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन किया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि आज के भारत में वीर सावरकर के बारे में सही जानकारी का अभाव है. सावरकर के विचारों की जरूरत है. आज के समय में सावरकर के जिन बातों की जरूरत है वो इस पुस्तक में है. सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली है. भारत की राष्ट्रीयता के कारण बदनाम किया जाता है, क्योंकि उनकी दुकान बंद हो सकती है. मोहन भागवत ने आगे कहा कि सर सैयद अहमद मुस्लिम असंतोष के जनक हैं.
भागवत ने सड़कों के नाम बदलने पर सहमति जताई हुए कहा कि बहुत राष्ट्रभक्त मुस्लिम हैं, जिनके नाम गूंजने चाहिए. हमारी पूजा विधि अलग-अलग है, लेकिन पूर्वज एक ही हैं. बहुत राष्ट्रभक्त है. बंटवारे में पाकिस्तान जाने वालों को वहां प्रतिष्ठा नहीं मिली. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद सावरकर को बदनाम किया गया.
उन्होंने आगे कहा कि जब ये कोलाहल होने लगी कि हम एक नहीं दो हैं तब सावरकर ने हिंदुत्व की बात की. हिंदुत्व एक ही है जो सनातन है. हम जानते हैं कि अब 75 वर्ष बाद हिंदुत्व को जोर से बोलने की जरूरत है. अलगाववाद की बात विशेषधिकार की बात नहीं हो सकता. सावरकर ने यही कहा था कि किसी का तुष्टिकरण नहीं. सावरकर की एक के बाद एक भविष्यवाणी सत्य हुई है. 2014 के बाद परराष्ट्रनीति सुरक्षा नीति के पीछे चलेगी, जोकि साफ हो गया है.
मोहन भागवत ने आगे कहा कि सावरकर ने कभी आंख मूंद कर कुछ भी स्वीकार नहीं किया. चिंतन के बाद स्वीकार करते थे. वे मुसलमानों से नफरत नहीं करते, वे उर्दू भी जानते थे. प्रजातंत्र में विचार के कई प्रवाह हैं. सावरकर की विचारों की उदारता जो नहीं जानते वहीं बदनाम करते हैं. सावरकर ने बयान दिया था कि गांधी जी की देश को जरूरत है. गांधी जी अपने स्वास्थ्य को ठीक रखते हुए कार्य करे, क्योंकि उनकी जरूरत है. अम्बेडकर और गांधी जी सबने सराहा है, लेकिन छुद्र व्यक्तियों ने सावरकर बारे में तुच्छ बातें और निंदा की है.
उन्होंने आगे कहा कि बराबरी से चलो, कर्तव्यों में बराबरी और फल में भी बराबरी, अल्पसंख्यक कोई नहीं है. हमारी मातृभूमि विभाजित नहीं हो सकती. लोहिया भी अखंड भारत की बात करते थे.
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