मोदी सरकार ने दिये संकेत, तीन तलाक पर नए कानून की जरूरत नहीं
तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि तीन तलाक पर किसी नये कानून की जरूरत नहीं है।
नई दिल्ली:
तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि तीन तलाक पर किसी नये कानून की जरूरत नहीं है। सरकार का कहना है कि घरेलू हिंसा से निपटने वाले कानून समेत मौजूदा कानून इसके लिए पर्याप्त हैं।
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह पूछे जाने पर की तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कैसे नये कानून की जरूरत नहीं है तो सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'अगर कोई पति तलाक-तलाक-तलाक बोलता है, तो अब विवाह समाप्त नहीं होगा।'
उन्होंने कहा, 'तलाक-ए-बिद्दत वैध नहीं माना जायेगा। विवाह के प्रति उसकी जवाबदेही बनी रहेगी, पत्नी ऐसे व्यक्ति को पुलिस के समक्ष ले जाने और घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिये स्वतंत्र है।'
पीटीआई की खबर के मुताबिक, वरिष्ठ अधिकारी ने संकेत दिया कि इस प्रथा पर रोक के लिए दंड प्रावधान मौजूद हैं।
वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'सरकार इस मुद्दे पर संरचनात्मक एवं व्यवस्थित तरीके से विचार करेगी। प्रथम दृष्टया इस फैसले को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि पीठ ने बहुमत ने इसे असंवैधानिक और अवैध बताया है।'
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बहुमत के आधार पर ऐतिहासिक फैसला देते हुए भारतीय मुस्लिम समुदाय में सैकड़ों वर्ष से प्रचलित तीन बार तलाक बोलकर एक झटके में निकाह तोड़ दिए जाने को 'असंवैधानिक' व 'मनमाना' करार दिया और कहा कि यह 'इस्लाम का हिस्सा नहीं' है।
हालांकि दो न्यायाधीशों द्वारा दिए अल्पमत फैसले में कहा कि 'तलाक-ए-बिदत' मुस्लिम समुदाय के पर्सनल लॉ का मुद्दा है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं करता।
पांच जस्टिस की संविधान पीठ में शामिल चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने अल्पमत का फैसला सुनाते हुए छह महीने के लिए एकसाथ तीन तलाक पर रोक लगा दी और कहा कि इस बीच सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।
जस्टिस खेहर, न्यायमूर्ति नजीर, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस कुरियन जोसेफ वाली संसदीय पीठ ने अपने 395 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'तमाम पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 3:2 के बहुमत से तलाक-ए-बिदत (एक ही बार में तीन तलाक दिया जाना) को रद्द किया जाता है।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला शायरा बानो, मुस्लिम संगठनों और चार अन्य महिलाओं की ओर से दायर याचिका पर सुनाया है।
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