नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर तीन तलाक के मुद्दे पर अपना विरोध जताया है। सरकार का कहना है कि ट्रिपल तलाक का प्रावधान महिलाओं के साथ लैंगिग भेदभाव करता है, और महिलाओं की गरिमा ऐसी चीजें हैं, जिस पर समझौता नहीं किया जा सकता।
आइये देखते हैं क्या हलफनामे में:
# लैंगिक न्याय महत्वपूर्ण है। किसी भी तरह की परंपरा या प्रथा जिसमें पुरुषों द्वारा सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रुप से महिलाओं को तकलीफ पहुंचाई जाए वो लैंगिक न्याय के खिलाफ है।
# जीवन में मानवीय गरिमा, सामाजिक सम्मान और स्वाभिमान महिलाओं के मानव अधिकार के महत्वपूर्ण अंग हैं।
# हर किसी को संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिये, चाहे वो किसी भी धर्म का हो।
# महिलाओं के सम्मान से किसी भी तरह का समझौता नहीं हो सकता।
# भारत ने महिला समानता पर कई अंतर्राष्ट्रीय हस्ताक्षर भी किये हैं।
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# जहां तक महिलाओं की गरिमा और लैंगिक न्याय को लेकर पर्सनल लॉ की समीक्षा की जानी चाहिये।
#पर्सनल लॉ का अगर मौलिक अधिकारों से मतभेद है तो उसे खतम कर देना चाहिये
# ट्रिपल तलाक, हलाला और बहुविवाह इस्लाम सम्मत नहीं हैं।
आपको बता दें की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ट्रिपल तलाक पर पहले ही हलफनामा दायर कर चुका है। हलफनामे में कहा है कि पर्सनल लॉ को सामाजिक सुधार पर दोबारा से नहीं लिखा जा सकता। तलाक की वैधता सुप्रीम कोर्ट तय नहीं कर सकता।
इन देशों में ट्रिपल तलाक अवैध है:
मिस्र: 1929 से
सूडान: 1935 से
सीरिया: 1953 से
पाकिस्तान: 1961 से
बांग्लादेश: 1971 से