Advertisment

कोविड के बीच बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के लिए मेधा पाटकर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

पिछले साल स्वत: संज्ञान लेने के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार प्रत्येक राज्य द्वारा गठित उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) में वायरल संक्रमण की संवेदनशीलता के आधार पर कैदियों का वर्गीकरण शामिल नहीं था.

author-image
Ritika Shree
New Update
social activist Medha Patkar

social activist Medha Patkar( Photo Credit : गूगल)

Advertisment

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने देश में मौजूदा कोविड की पृष्ठभूमि में 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों को रिहा करने के लिए एक समान तंत्र अपनाकर देशभर की जेलों में भीड़ कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. याचिका में तर्क दिया गया है कि पिछले साल स्वत: संज्ञान लेने के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार प्रत्येक राज्य द्वारा गठित उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) में वायरल संक्रमण की संवेदनशीलता के आधार पर कैदियों का वर्गीकरण शामिल नहीं था. इन कैदियों को तत्काल आधार पर रिहा किया जाना चाहिए. अधिवक्ता एस.बी.तालेकर द्वारा तैयार और अधिवक्ता विपिन नायर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, यहां सबसे अतिसंवेदनशील लोग वृद्ध/बुजुर्ग कैदी हैं, जिनके संक्रमित होने की अधिक संभावना है (विशेष रूप से 70 वर्ष उम्र से ऊपर के कैदी).

याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल के अनुसार, 16 मई, 2021 को महाराष्ट्र, मणिपुर और लक्षद्वीप को छोड़कर सभी जेलों में 70 वर्ष से अधिक आयु के कैदियों की कुल संख्या 5,163 थी और कोविड की 88 प्रतिशत मौतें 45 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में हुईं. याचिका में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश, मिजोरम, बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य ने महामारी के बीच बुजुर्ग कैदियों को रिहा करने पर विचार नहीं किया है. याचिका में कहा गया है कि यह ध्यान देने योग्य है कि गुजरात और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में स्थिति इस संबंध में सबसे खराब है. याचिका में कहा गया है, "हालांकि राजस्थान और गुजरात के एचपीसी ने इस अदालत के निर्देश के अनुसार कैदियों को रिहा करने का निर्देश दिया है, लेकिन संक्रमण के प्रति संवेदनशील होने के आधार पर बुजुर्ग कैदियों की रिहाई पर विचार करने की आवश्यकता है."

आगे तर्क दिया गया है कि कुछ राज्यों में एचपीसी ने स्वास्थ्य के बजाय कानून व्यवस्था पर अधिक जोर दिया है और बुजुर्ग कैदियों की रिहाई की जरूरत को नजरअंदाज कर दिया है. याचिका में कहा गया है कि लंदन में इंपीरियल कॉलेज की कोविड प्रतिक्रिया टीम ने बताया है कि सत्तर के दशक में रोगसूचक व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत 20 गुना अधिक होती है. मेधा पाटकर ने शीर्ष अदालत से राज्य सरकारों को उनके हितों की रक्षा के लिए अंतरिम जमानत या आपातकालीन पैरोल पर बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की. याचिका में सुझाव दिया गया है कि कैदियों की ऐसी श्रेणी को उचित चिकित्सा सुविधाओं के साथ भीड़भाड़ वाली जेलों में स्थानांतरित किया जा सकता है.

HIGHLIGHTS

  • देशभर की जेलों में भीड़ कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है
  • याचिका में कहा गया है कि गुजरात और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में स्थिति इस संबंध में सबसे खराब

Source : IANS

Medha Patkar Supreme Court COVID elderly prisoners social activist
Advertisment
Advertisment
Advertisment