एमसीडी चुनाव परिणामः मुख्य विपक्षी दल के लायक भी नहीं बची कांग्रेस, जानें हार के कारण
सवाल यह उठता है कि पिछले तीन साल से लगातार कमजोर प्रदर्शन कर रही कांग्रेस आखिर क्यों हर मोर्चे पर पिछड़ जा रही है।
नई दिल्ली:
दिल्ली निगम चुनाव संपन्न हो गया है। बीजेपी ने एक बार फिर तीनों नगर निगमों पर अपना कब्जा जमा लिया है। विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेस एक बार फिर इस बार भी आम आदमी पार्टी से पिछड़कर तीसरे नंबर पर पहुंच गई है।
इस बीच हार की जिम्मेदारी लेते हुए दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा, 'मैं इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए एक साल तक पार्टी में कोई पद नहीं लूंगा।'
सवाल यह उठता है कि पिछले तीन साल से लगातार कमजोर प्रदर्शन कर रही कांग्रेस आखिर क्यों हर मोर्चे पर पिछड़ जा रही है। कौन सा ऐसा कारण है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी निगम चुनाव के साथ साथ हर राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार रही है। आखिर कांग्रेस मोदी के काट नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं।
अगर कारणों की पड़ताल की जाए तो पहली बात तो यह सामने आती है कि निगम में चुनाव में नेतृत्व की कमी साफ तौर पर देखने को मिली। टिकट बंटवारे को लेकर प्रदेश के कई बड़े नेता साफ तौर पर नाराज दिखे और कईयों ने पार्टी भी छोड़ दी।
मतदान से ठीक पहले कई बड़े नेता जिसमें पार्टी का सिख चेहरा अरविंदर सिंह लवली ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन कर लिया। माकन और लवली के बीच गैप उस समय साफ तौर पर देखने को मिला जब माकन को मीडिया के जरिए पता चला कि लवली ने पार्टी छोड़ दिया है।
लवली ने न सिर्फ पार्टी छोड़ी बल्कि अपने साथ कई नेताओं और वोट बैंक को भी लेकर बीजेपी में शामिल हो गए। लवली दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार में शिक्षा मंत्री थे। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
चुनाव से पहले बरखा सिंह ने भी पार्टी छोड़ दी। साथ ही दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित भी कांग्रेस के लिए प्रचार नहीं की। इसका कारण माना जाता है कि माकन अभी तक शीला दीक्षित के साथ अपने पुराने मतभेद नहीं भुला पाए हैं।
जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी उन्होंने साफ तौर पर आरोप लगाया कि टिकट बंटवारे के समय उन्हें नजरअंदाज किया गया। इन नेताओं को पार्टी छोड़ने के बाद न तो नेतृत्व ने मनाने की कोशिश की नहीं इन नेताओं से यह जानने की कोशिश की आखिर ये नेता पार्टी छोड़कर क्यों जा रहे हैं।
निगम चुनाव में कोई भी पार्टी अपने बड़े बड़े नेताओं को प्रचार में नहीं उतारा लेकिन शीर्ष नेतृत्व हमेशा नजर बनाए रखे। वहीं कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से गौण रहा।
पिछले कई चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में नाकाम रही। चुनाव प्रचार में फीकापन देखने को मिला। दिल्ली में रहते हुए राहुल गांधी न तो चुनाव प्रचार के लिए निकले न हीं अपने कार्यकर्ताओं के अंदर जीत की जोश भर पाए।
हाल ही में हुए दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। जिसके बाद उम्मीद जगी थी कि शायद कांग्रेस निगम चुनाव में कुछ कर पाए। लेकिन एक बार फिर आम आदमी पार्टी उससे आगे निकल गई।
चुनाव जीतने की योजना की बात करें तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद जीत की योजना को लेकर बैठक करते थे लेकिन कांग्रेस ने इस चुनाव को पूरी तरह से माकन के सहारे छोड़ दिया।
कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली की नैया पार लगाने का जिम्मा अजय माकन को सौंपा था लेकिन माकन न तो सबको साथ लेकर चल पाए न ही पार्टी की नैया पार लगा पाए।
अब ऐसे में राजनीतिक जगत में कांग्रेस को लेकर यह भी सवाल उठने लगा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को आखिर क्या हो गया है। आखिर क्यों विपक्षी दल मोदी की काट (बिहार चुनाव को छोड़कर) ढूंढ़ पाने में नाकाम हो रहे हैं।
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