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टार्गेट किलिंग से दहशत में गैर-कश्मीरी, पलायन से 90 के दशक की यादें ताजा

टीआरएफ आतंकियों पर लगाम लगाने के लिए स्थानीय स्तर पर शाम 5 बजे से कुछ घंटे इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. साथ ही जगह-जगह आकस्मिक बैरिकेडिंग कर सघन जांच अभियान भी चलाया जा रहा है.

Updated on: 19 Oct 2021, 11:09 AM

highlights

  • पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन फिलहाल साजिश में कामयाब
  • जम्मू-कश्मीर से खौफजदा गैर-कश्मीरी लोगों का पलायन तेज
  • अक्टूबर के महीने में ही आतंकियों ने मारे 11 गैर-कश्मीरी

श्रीगनर:

कश्मीर में कई गैर-स्थानीय स्ट्रीट वेंडर्स और श्रमिकों पर हाल ही में हुए आतंकी हमलों के बाद दहशत फैल गई है. अब यहां काम करने वाले बाहरी राज्यों के लोग घाटी से भागने लगे हैं. इस महीने ही अब तक 11 गैर-कश्मीरी लोगों को आतंकियों के नए प्लान टार्गेट किलिंग के तहत निशाना बनाया जा चुका है, जिससे बाहर से आए लोगों में डर का माहौल है. इनके पलायन को देख दो दशक पहले का दौर ताजा हो रहा है, जब कश्मीरी पंडितों ने आतंकी हिंसा के डर से अपना घर-बार छोड़ दिया था. हालांकि केंद्र सरकार ने टार्गेट किलिंग को देखते हुए सेना को खुली छूट दे दी है. इस बीच टीआरएफ आतंकियों पर लगाम लगाने के लिए स्थानीय स्तर पर शाम 5 बजे से कुछ घंटे इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. साथ ही जगह-जगह आकस्मिक बैरिकेडिंग कर सघन जांच अभियान भी चलाया जा रहा है. इस बीच पुंछ के जंगलों में सेना का सर्च ऑपरेशन 9वें दिन भी जारी है. सूबे के बदलते हालातों के बीच सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने के लिए अमित शाह जल्द ही जम्मू-कश्मीर का दौरा करने वाले हैं.  

बड़गाम, अनंतनाग, पुलवामा से भी पलायन
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिकू के मुताबिक बड़गाम, अनंतनाग और पुलवामा से सैकड़ों लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है. इनमें कई सारे गैर-कश्मीरी पंडित परिवार भी हैं जो घाटी छोड़ रहे हैं. ये 1990 की वापसी की तरह है. घाटी में पलायन जारी है. गौरतलब है कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां हालात थोड़े सुधरे थे. इसके बाद जुलाई में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि घाटी में हालात सुधर रहे हैं और इसे देखते हुए लोग वापस भी लौट रहे हैं. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि हाल के सालों में 3 हजार 841 कश्मीरी प्रवासी युवा कश्मीर वापस लौटे हैं और उन्हें नौकरी दी गई है. सरकार ने ये भी बताया था कि अभी कश्मीरी पंडित और डोगरा हिंदू समुदाय के 900 परिवार घाटी में रह रहे हैं.

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इस महीने मारे गए 11 गैर-कश्मीरी
यह अलग बात है कि आतंकियों ने कुछ दिन पहले श्रीनगर के ईदगाह इलाके में स्थित सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और टीचर दीपक चंद की भी गोली मारकर हत्या कर दी थी. दीपक के एक रिश्तेदार ने न्यूज एजेंसी से कहा था, 'कश्मीर हमारे लिए स्वर्ग नहीं, नरक है. घाटी में 1990 जैसे हालात हो रहे हैं. उस समय हिंदुओं खासकर कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. आज भी यही हालात हैं. सरकार हमारी रक्षा करने में नाकाम रही है.' बाहरी मजदूरों का एक बड़ा वर्ग जम्मू भी पलायन कर रहा है. इसी महीने अब तक 11 गैर-कश्मीरी मारे जा चुके हैं. 

बिहार के मजदूर ज्यादा कर रहे पलायन
गैर कश्मीरी लोगों पर हो रहे आतंकी हमलों से डरा गैर-स्थानीय श्रमिकों का एक समूह श्रीनगर रेलवे स्टेशन पर अपने मूल राज्यों में वापस जाने के लिए एकत्र हुआ है. बिहार के भागलपुर के 60 वर्षीय दिनेश मंडल ने कश्मीर छोड़ने का फैसला किया है. वह पिछले 40 साल से नियमित रूप से कश्मीर में आइसक्रीम बेच रहे थे. उन्होंने कहा, 'स्थिति खराब है. गैर-स्थानीय लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. विक्रेताओं और मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है. हम इन परिस्थितियों में कश्मीर में और नहीं रह सकते.'

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परिवार भी बना रहा घर लौटने का दबाव
एक अन्य आइसक्रीम विक्रेता सतीश कुमार ने कहा, 'हर कोई डरा हुआ है. पहले वेंडरों को सड़कों पर निशाना बनाया जाता था, लेकिन अब लोगों पर उनके कमरों पर हमला किया जा रहा है. हमने शनिवार को कुलगाम में दो गैर-स्थानीय लोगों के मारे जाने के बाद कश्मीर छोड़ने का फैसला किया है.' कुमार ने कहा, 'स्थानीय लोग हमसे कहते हैं कि रुक जाओ, लेकिन हम कश्मीर में कैसे रह सकते हैं, जब हमे अपने कमरों में भी अपनी जान जाने का खतरा है. अगर यह समस्या खत्म हो जाती है और शांति बहाल हो जाती है, तो हम कश्मीर लौटने के बारे में सोचेंगे.'