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शहीद मदनलाल ढींगरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को अग्नि में बदल दिया

मदनलाल ढींगरा इंग्लैण्ड में अध्ययन करने गये थे लेकिन देश भक्ति के रंग में ऐसे रंग गए कि उन्होनें अंग्रेज अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

Updated on: 13 Aug 2021, 05:19 PM

highlights

  • 17 अगस्त सन 1909 को लन्दन की पेंटविले जेल में मदनलाल ढींगरा को हुई फाँसी
  • इण्डिया हाउस उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था
  • खुदीराम बोस और कन्हाई लाल दत्त जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से मदनलाल ढींगरा बहुत क्रोधित थे 

नई दिल्ली:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में मदनलाल ढींगरा का स्थान अप्रतिम है. एक संपन्न परिवार को जन्म लेने और लंदन में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे मदनलाल ढींगरा के लिए देश की आजादी सर्वोपरि थी. भारतीय स्वतंत्रता  संग्राम की चिनगारी को अग्नि में बदल दिया.  मात्र 25 वर्ष के अपने अल्प जीवन में उन्होंने देशप्रेम की ऐसी अलख जगायी कि इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया. मदनलाल ढींगरा इंग्लैण्ड में अध्ययन करने गये थे लेकिन देश भक्ति के रंग में ऐसे रंग गए कि उन्होनें अंग्रेज अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी. कर्जन वायली की हत्या के आरोप में उन पर मुकदमा चलाया गया. 23 जुलाई 1909 को ढींगरा मामले की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई.

अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और 17 अगस्त सन 1909 को लन्दन की पेंटविले जेल में फाँसी पर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गयी. मदनलाल मर कर भी अमर हो गये. मदन लाल ढींगरा ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि "मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं."  

अंग्रेजी हुकूमत में पिता और भाई थे अफसर

पंजाब प्रान्त के अमृतसर जिले के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में 18 सितंबर सन 1883 को जन्मे मदनलाल ढींगरा के पिता दित्तामल सिविल सर्जन थे. और उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था. मदनलाल ढींगरा के छह भाई और एक बहन थे. मदनलाल के बड़े भाई भी अंग्रेजीराज में उच्च पद पर आसीन थे. पूरा परिवार अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से युक्त महिला थीं. परिवार के कई सदस्यों का अंग्रेजों की नौकरी में होना और परिवार का पाश्चात्य रहन-सहन भी मदनलाल के मन में अंग्रेजों के प्रति कोई नरमी नहीं ला सकी.  

विद्यार्थी जीवन में उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल क्रांतिकारियों के प्रति हमदर्दी रखने के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया. अब युवा मदनलाल ढींगरा के सामने जीवनयापन के लिए नौकरी करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. पहले उन्होंने एक क्लर्क के रूप में, फिर शिमला में आने वाले अंग्रेज पर्यटकों और अधिकारियों के लिए तांगा संचालित करने का काम किया. इसके बाद कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश लिया.

लन्दन में पढ़ाई के दौरान ढींगरा इंडिया हाउस के संपर्क में आए. वहां पर उनकी मुलाकात  विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई. सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ढींगरा की प्रखर देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए.

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इण्डिया हाउस उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था. ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे. मदनलाल ढींगरा और अन्य क्रांतिकारी इसके लिए वायसराय लार्ड कर्जन और बंगाल एवं असम के पूर्व लेफ्टीनेंट गवर्नर बैम्पफ्यल्दे फुलर को दोषी मानते थे. इसलिए लंदन में ढींगरा ने दोनों की हत्या करने की योजना बनायी.

कर्जन वायली का वध

मदनलाल ढींगरा लार्ड कर्जन और बैम्पफ्यल्दे फुलर की हत्या के ताक में थे। लंदन में रहकर वे दोनों से संबंधित ससूचना इकट्ठा करते रहे. इसी बीच उन्हें सूचना मिली कि1 जुलाई सन 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये कर्जन और फुलर आ रहे हैं. कार्यक्रम में भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। लेकिन उक्त दोनों अधिकारियों के आने में किसी कारण से विलंब हो गया. फलस्वरुप जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं. उसके बाद ढींगरा ने अपने पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया.