उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने शिक्षा एवं नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के एक कानून को बरकरार रखने के बंबई उच्च न्यायालय (बंबई हाईकोर्ट) के आदेश पर रोक लगाने से बुधवार को इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की एक पीठ ने कहा कि यह मामला काफी समय से लंबित रहा है और इसमें विस्तृत सुनवाई जरूरी है.पीठ ने मराठा आरक्षण के समर्थन एवं विरोध में दायर कई याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई के लिए 17 मार्च की तारीख तय की.
पीठ ने कहा, ‘हम 17 मार्च की तारीख तय कर रहे हैं ताकि इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हो सके. हम यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि किसी स्थगन की अनुमति नहीं होगी. इसके समर्थन और विरोध में सभी जवाब अगली सुनवाई की तारीख से पहले दायर कर दिए जाएं.’
मराठाओं के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने सुनवाई शुरू होते ही कहा कि राज्य निर्धारित सीमा से हटकर ऐसा आरक्षण नहीं दे सकता है. उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया जिसमें कुछ संशोधनों के साथ मराठाओं को आरक्षण देने वाले राज्य के कानून को बरकरार रखा गया था. पीठ ने बुधवार को कहा कि वह मामले के गुण-दोष के आधार पर सुनवाई नहीं करेगा और इस संबंध में कोई भी अंतरिम राहत देने के लिए उसे विस्तार से सुनवाई करने की जरूरत है.
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इसने कहा कि शीर्ष अदालत ने इस संबंध में पहले से ही एक आदेश पारित किया है कि जो भी नियुक्तियां की गई हैं वह याचिकाओं के नतीजों पर निर्भर करेगी. शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई, 2019 को शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के कानून की संवैधानिक वैधता के परीक्षण का फैसला किया. हालांकि, उसने कुछ संशोधनों के साथ कानून को बरकरार रखने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक से इनकार कर दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि 2014 से पूर्व प्रभाव के साथ आरक्षण की अनुमति के उच्च न्यायालय के फैसले के पहलू लागू नहीं होंगे. एक वकील ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ने करीब 70,000 रिक्तियों के लिए 2014 से ही आरक्षण को प्रभावी करने का आदेश दिया है, इस पर शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि आरक्षण पर उच्च न्यायालय का आदेश पूर्व प्रभाव से लागू नहीं होगा.’
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सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम, 2018 नौकरियों एवं दाखिलों में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के उद्देश्य से लाया गया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और यह व्यवस्था दी कि नौकरी में आरक्षण 12 प्रतिशत से अधिक एवं दाखिलों में यह 13 प्रतिशत से अधिक नहीं हो. पीठ ने आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखे जाने संबंधित उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली जे लक्ष्मण राव पाटिल और वकील संजीत शुक्ला द्वारा दायर पांच याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. इसने महाराष्ट्र सरकार की उस दलील को भी माना कि मराठा समुदाय सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है और इसकी प्रगति के लिए ऐसा कदम उठाना राज्य का कर्तव्य है.